मुझ पे बस तुम्हारा ही इख़्तियार रहे
By Sandeep Sharma मुझ पे बस तुम्हारा ही इख़्तियार रहे मैं चाहता हूँ मुझे बस तुम से ही प्यार रहे कीमत भले जो अदा हो इसकी बस तुम्हारे लबों...
मुझ पे बस तुम्हारा ही इख़्तियार रहे
एक तेरी तस्वीर ही कब तक मुसलसल देखूँ
हादसों के बिना ज़िन्दगी अधूरी होती है
मेरी उम्मीद को किसी दिन तोड़ क्यों नहीं देते
सदा
Ghazals of Ordinance
Ghazal
खरीदकर: (ग़ज़ल)
दफा करते है