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सोने के पायल

By Anjali Kumari


"जानती हो फिर उन्होंने क्या कहा.... कहा कि यह सोने के पायल नहीं.... सोने की ज़ंजीर है... सोने की ज़ंजीर” यह कहते ही मनीषा के आंखों से मोती के दो बड़े-बड़े कण गिर पड़े। 

कल विवाह के वर्षगाँठ पर मुकुल ने मनीषा को पार्टी में सबके सामने सोने के पायल दिये थे। उसने चुप-चाप ले लिया, बिना कुछ कहे, बिना मुस्कुराए। मुकुल ने जब तिरछी आँखों से, गुस्से भरी नज़रों से उसकी ओर देखा तो वह हल्का सा मुस्कुरा दी।

कभी- कभी मुस्कुराना कितना कठिन होता है। ऐसा लगता है मानो, सौ बिच्छू एक साथ आपको डंक मार रहे हों पर आपको तड़पने की इजाज़त भी न हो! आपको  फिर भी मुस्कुराना पड़ रहा हो। इस प्रकार की कठिनाइयों का सामना मनीषा को लगभग रोज़ करना पड़ता है। मनीषा, 18 वर्ष की स्त्री, जिसका विवाह पिछले वर्ष ही हुआ। 17 वर्ष की आयु में वह लड़की से औरत बन चुकी थी। उसके जैसी न जाने कितनी ही लड़कियाँ, अपनी पढ़ाई, अपने सपने छोड़कर विवाह के पवित्र बंधन में बंध जाती हैं। विवाह के तथाकथित दायित्वों को समझने में उनकी कच्ची बुद्धि और निश्छल मन असमर्थ रह जाते हैं जिसे अक्सर समाज उनकी चूक समझता है।

मनीषा भी अपनी कच्ची उम्र और अनुभव के चलते इस रिश्ते को ढंग से निभाने में चूक गयी। इसी कारण उसके ससुराल में कोई भी उसे पसंद नहीं करता। मुकुल एक कंपनी में काम करता है। दिन भर जो डाँट वह दफ़्तर में खाता है, उसका सारा गुस्सा मनीषा पर निकालता है। कभी उसके बाल खींचता है तो कभी उसे सिगरेट से जलाता है, कभी तो उसे पीटते-पीटते घर से बाहर निकाल देता है। जब गुस्सा शांत होता है तो वापस घर ले आता है। मनीषा का इस दुनिया में उसकी माँ और एक सहेली, जो कि पड़ोस के घर की बहू है, के अलावा और कोई नहीं है। माँ को पहले ही दो बार दिल का दौड़ा पड़ चुका है, अतः वह उनसे अपनी व्यथा कह नहीं सकती। वह चुपचाप अपने पति और ससुराल वालों का अत्याचार सहती रहती है, अपने दिल की सारी बात अपनी सहेली अर्पिता को बताकर।

मुकुल जब भी मनीषा को पीटता, वह कहता “ये रोना- धोना किसी और के सामने करना। तुझे क्या लगता है तेरे रोने से तू बच जाएगी? जब तक मेरा वो कमीना मालिक मुझे डाँटेगा, तेरे साथ ऐसा ही होता रहेगा।” मुकुल एक भी मौका नहीं गंवाता यह जताने के लिए कि मनीषा का अस्तित्व केवल उस से मार खाने तक ही सीमित है। वह उसे घर से निकलने नहीं देता, इस डर से कि कहीं वह किसी से कुछ कह न दे। मानो, उसे घर के अंदर ही क़ैद कर दिया गया हो। अर्पिता के समझाने पर वर्षगाँठ  से दो दिन पहले मनीषा ने हिम्मत जुटाकर मुकुल से कहा था “आइंदा कभी मुझे हाथ भी लगाने की कोशिश की तो ठीक नहीं होगा। मैं पुलिस को सब बता दूँगी।” दो दिनों तक सब शांत रहा पर ये शांति कितने देर ठहरती? तूफ़ान को तो आना ही था। वर्षगाँठ के दिन मुकुल ने सबके सामने मनीषा को सोने के पायल उपहार स्वरूप दिया। मुकुल का यह बदला स्वभाव मनीषा के सहमे मन को और अधिक आतंकित करने लगा। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती, मेहमानों के जाने पर मुकुल ने फिर उस पर हाथ उठाया और कहा “इसे सोने के पायल समझने की भूल मत करना, पायल नहीं ज़ंजीर है ये। बाहर से कोई भी देखेगा तो बस सोना नज़र आएगा पर जब भी तू देखेगी तो याद कर लेना कि ये पायल नहीं.... " 

अगले दिन मनीषा ने अर्पिता को रोते हुए सब बता दिया। अर्पिता सब कुछ सुनती रही पर कहा कुछ नहीं। कहती भी क्या, आख़िर उसकी उम्र भी तो 20 वर्ष ही थी। दोनों के अंदर आग जल रही थी पर इस आग में ताप कभी इतनी नहीं बढ़ पायी कि वह सोने को पिघला सके।


By Anjali Kumari


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