न अंत ,न आरंभ
- Hashtag Kalakar
- 2 days ago
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By Soumya Bhardwaj
न मुसलमान, न हिंदू, न सिख हूँ मैं,
न ही जातियों से खंडित,
एक बुझी दीप हूँ मैं।
न ईद, न होली, न लोहड़ी की चाह है,
न माथे पर सिंदूर हो, न ही हो बुर्क़ा।
संसार के पगडंडियों में फँसे इंसानों की वास्तविक एक ही राह है।
चाहे 'ॐ' जपो या 'एक ओंकार',
इन शब्दों के जाल में ही उलझ कर रह जाता है यह नश्वर संसार।
चाहे शव को जलाओ या उसे दफ़नाओ,
उस पल के 'शमशान वैराग्य' की चाहे कितनी ही तस्बीहें पढ़ो,
अगले ही क्षण उसे भूल कर वापस लालच ही करते हो , क्यों?
रुद्राक्ष हो या हो मिस्बाह,
राम हो या हो रहीम,
जातियों और धर्मों के पूजा-पाठ और नमाज़ में खो चुका है यह जीव|
और विडंबना ऐसी कि लापता ,
ख़ुदा ही ढूँढता फिर रहा है उसके अवशेष।
By Soumya Bhardwaj

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