top of page

सत्य

By Soumya Bhardwaj


हताश हो या किसी की तलाश में हो?

जिसे कभी पाया नहीं, क्या उसी की 'काश' में हो?

लापता हो? या गुमनाम?

या क्या सिर्फ़ जीवन की लाश में हो?


पर्दों के पीछे तो सर पर है ताज,

मगर उस मुखौटे के बिना तुम हो नहीं किसी के ख़ास।


ज्ञानी कहो या मूर्ख, संवाद विचार का नहीं।

आडंबर कहो उसे या दिगंबर,

इस कोलाहल में न पाप, न पुण्य कोई।


अथाह प्रेम उस अज्ञात से,

पर्यटक मात्र तेरे पैर, कहूँ,

जो है मस्तिष्क से परे, उसे ही तेरा आख़िरी सैर कहूँ।


ना आए समझ तो घबराना नहीं।

समझना चाहा था, यही कर दी थी सारी ग़लती।

माफ़ी मिलेगी।

भटक कर ही सही,

या तो 'काश' और 'तलाश' के बीच बीत जाएगी सारी ज़िंदगी।


By Soumya Bhardwaj



Recent Posts

See All
आज से नौ महीने बाद...

By Saloni Duggal आज से नौ महीने बाद हमारी दुनिया बदलने वाली है, हमारी खुशियाँ एक नन्ही-सी जान में बसने वाली हैं। हमारा छोटा-सा फ़रिश्ता आने वाला है, जिसकी हँसी में हमारा सुकून छिप सा जाने वाला है। वो

 
 
 
काश हम कभी मिले ही ना होते…

By Saloni Duggal काश हम कभी मिले ही ना होते, तो इतने गिले ही ना होते। हम कभी बिछड़े ना होते, दिल हमारे इस कदर बिखरे ना होते। काश वो दिन आया ही ना होता, तुमने हमारे रिश्ते को आज़माया ही ना होता। वो खेल

 
 
 
তুমি আমি।

By Prasun Mukherjee তোমার চারে আমার চারে অনেক ফারাক। দুয়ে দুয়ে আমার, তোমার শূন্য চারে। তোমার লোভে ভাঙছে আমার শান্তির নীড়। ডুবছে দেখি সকল খুশি অন্ধকারে। তোমার রাতে আমার রাতে অনেক ফারাক। তোমার রাতে ত

 
 
 

Comments

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating
bottom of page