top of page

सरहद पर धुआँ-धुआँ-सा ....

Updated: Jul 17

By Nandlal Kumar


यूँ हाथ दबाकर गुजर जाना आपका मज़ाक तो नहीं,

आज तो रूमानियत है कल मेरा दर्दनाक तो नहीं।


ये सरहद पर धुआँ-धुआँ-सा क्यों है,

ज़रा देखना कहीं फिर गुस्ताख़ पाक तो नहीं।


क्यों माथे से लगा लूं ताबीज़-ए-वाइज़ को,

धातु ही तो है तेरे कूचे की खाक तो नहीं।


बड़े मुल्क हर जंग में पीठ थपथपाते हैं,

कहीं यह असलहा बेचने का फ़िराक़ तो नहीं।


पास बुलाने से पहले ग़ुलों को सोचना चाहिए,

बेताब है भँवरा नीयत उसकी नापाक तो नहीं।


By Nandlal Kumar






Recent Posts

See All
रहता है।

By Nandlal Kumar इलाही मेरे दिल के दरवाज़े पे तू बेकार रहता है, माफ़ करियो इस घर में मेरा यार रहता है। उस हुस्न पे नज़र ठहरे तो कैसे...

 
 
 
चाहता हूँ।

By Nandlal Kumar तुमसे ये बात अकेले में कहना चाहता हूँ, ज़ुल्फ़ों  की नर्म छाँओं में रहना चाहता हूँ। आप कह दिए हैं कि मैं बहुत गमगीन रहता...

 
 
 
Nari Sashaktikaran Ki Ghazal

By Nandlal Kumar नारी सशक्तिकरण की ग़ज़ल। गज़ल में शीर्षक देने की परंपरा नहीं रही है, नहीं तो मैं शीर्षक देता "मुझे वास्तविक आज़ादी दो"...

 
 
 

Comments

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating
bottom of page