चाहता हूँ।
- Hashtag Kalakar
- Jan 11
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By Nandlal Kumar
तुमसे ये बात अकेले में कहना चाहता हूँ,
ज़ुल्फ़ों की नर्म छाँओं में रहना चाहता हूँ।
आप कह दिए हैं कि मैं बहुत गमगीन रहता हूँ,
क्यों छू दिया ज़ख्म को अब रोना चाहता हूँ।
आँख है कि झील, ज़ुल्फ है कि घटा,
बनायी है तेरी तस्वीर दिखाना चाहता हूँ।
रोज़ो-शब तलाश करते-करते थक गए हैं पाँव,
खुशी ढूंढने की आदत बुरी छोड़ना चाहता हूँ।
तेरे गम में जिंदगी बहुत देर शराब-अलूदा रही,
अब जीने का कोई अच्छा बहाना चाहता हूँ।
हाय वो बरसात, वालो से तेरी झड़ती वो बूंदे,
शीशे जैसा शबाब फिर देखना चाहता हूँ।
मोहब्बत को, इबादत को तुम बहकना कहते हो,
तो मैं सौ-सौ बार बहकना चाहता हूँ।
By Nandlal Kumar

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