top of page

रहता है।

Updated: Jul 17

By Nandlal Kumar


इलाही मेरे दिल के दरवाज़े पे तू बेकार रहता है,

माफ़ करियो इस घर में मेरा यार रहता है।


उस हुस्न पे नज़र ठहरे तो कैसे ठहरे,

जो कभी फूल बनता है कभी रुख़्सार रहता है।


सँवारते ही उलझ जाती है मेरी ज़िंदगी,

जैसे तुम्हारे लट तुम्हारे चेहरे पर सवार रहता है।


मेरी आशाओं की तरह मिटने लगे हैं अक्षर,

पर तेरा खत तेरी खुशबू से सरोवार रहता है।


न पूछो क्यों शेर इतना असरदार रहता है,

लिखते वक्त एक तीर ज़िगर के आर-पार रहता है।


By Nandlal Kumar





Recent Posts

See All
सरहद पर धुआँ-धुआँ-सा ....

By Nandlal Kumar यूँ हाथ दबाकर गुजर जाना आपका मज़ाक तो नहीं, आज तो रूमानियत है कल मेरा दर्दनाक तो नहीं। ये सरहद पर धुआँ-धुआँ-सा क्यों है,...

 
 
 
चाहता हूँ।

By Nandlal Kumar तुमसे ये बात अकेले में कहना चाहता हूँ, ज़ुल्फ़ों  की नर्म छाँओं में रहना चाहता हूँ। आप कह दिए हैं कि मैं बहुत गमगीन रहता...

 
 
 
Nari Sashaktikaran Ki Ghazal

By Nandlal Kumar नारी सशक्तिकरण की ग़ज़ल। गज़ल में शीर्षक देने की परंपरा नहीं रही है, नहीं तो मैं शीर्षक देता "मुझे वास्तविक आज़ादी दो"...

 
 
 

Comments

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating
bottom of page