इंसान : योग्यता की पहचान में
- Hashtag Kalakar
- Aug 16
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By Kavayanjali Uttam Uppalwad
शायद मैं योग्य हूँ ही नहीं,
न स्नेह के, न सराहना के समीप कहीं।
न अधिकार है मुझे प्रश्न उठाने का,
न साहस है स्वयं को परख पाने का।
जब तक जंजीरों में जकड़ा रहा,
हर दृष्टि को मैं सहज दिखा।
धीमे क़दम, झुकी हुई दृष्टि,
तब तक ही बनी रही सबकी सृष्टि।
पर जैसे ही सीधी हुई मेरी चाल,
हर चेहरा करने लगा सवाल।
अब मेरा मौन भी बोझ बनता है,
और स्वर मेरा अपराध गिनता है।
क्या मैंने अपनी पहचान की पुकार,
उनसे कर डाली, जो समझ ही न सके विचार?
या मैं ही उलझा रहा उस कसौटी की रेखा में,
जो बनी ही थी भ्रम की रेखा में?
अब स्वयं ही उठाता हूँ परख की लेखनी,
स्वयं पर करता हूँ निर्णय की दृष्टि धनी।
शायद यही तो मनुष्य की रीत है,
पहले ढूँढता है छाया, फिर आत्म-प्रतीति है।
By Kavayanjali Uttam Uppalwad

Good
बहुत सुन्दर ♥
Good👍
Good,, 🌹🌹
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