Mushaira 4
- Hashtag Kalakar
- Dec 1
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By Manas Saxena
शायर हूँ, लफ़्ज़ों से खेलना आता है
हर एहसास को अल्फाज़ों में ढालना आता है,
एक रोज़ जो तेरा ज़िक्र छेड़ता हूँ
अपने दिल से मैं
हर मिसरा फीका
हर अल्फ़ाज़ फ़र्ज़ी नज़र आता है |
चांदनी रातों में तेरा ख्याल आता है,
तुम्हारी हर एक साँस से
मुझे आराम आता है,
और कैसे कह दू की
तुझसे मोहब्बत नहीं मुझे
जो अगर नींद में भी पूछे
तो मुझसे पहले
तेरा नाम आता है |
तुम्हारी दीद मेरे अल्फ़ाज़ों को
रोज़ आज़माती है
और मेरे अल्फ़ाज़ रोज़ हार जाते हैं
कितनी ही आजमाइश करूं
तुमसे कुछ कहने की मैं
लेकिन तुम्हें देख कर मेरे अल्फ़ाज़
मेरी नामंज़ूरी से हार जाते हैं ||
By Manas Saxena

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