Mushaira 3
- Hashtag Kalakar
- Dec 1
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By Manas Saxena
लबों पर जो बात थी
उन्हें दिल में दबाए रखा,
ना जाने क्यूँ इज़हार-ए-इश्क से
मैं यूँही डरता रहा।
इस एक खौफ ने मुझको
कहीं का नहीं छोड़ा,
तुम्हें दूर से देख
जीते हुए मरता रहा थोडा।
कभी ताबीज पहने,
कभी धागे बंधवाए
तो कभी जाके नजूमियों को
अपने हाथ दिखाये।
किसी ने बोला सब्र कर,
तो किसी ने डराया
सिर्फ मैं जानता हूँ कि
उस वहम के जंगल से
कैसे मैं वापस आया |
थक गया हू मैं अब
इन किस्सों से, उन झूठे दिलासों से
इन लकीरों से, उन धुन्धले खुलासो से।
अब अज़ीयत है बस
इस वहम-ए-गुमान पर
कब तक ये दिल जलेगा मेरा
सिर्फ मेरे ही एक अनकहे बयान पर।
छोड़ रहा हूँ अब ये सितारों
और किस्मत की बातें
अब आकर तुम ही ख़तम करदो
अज़ियात की ये रातें।
थक गया हूं मैं
अब तुम ही पहल करो
आके तुम ही कुछ मर्ज़ करो
और मेरे इस
दिल के इस मसले का हल करो ||
By Manas Saxena

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