Chanchal Mann
- Hashtag Kalakar
- Aug 6
- 2 min read
By Divyanshi Solanki
कहीं कोई ख्वाब था मुझ में
जो शायद अब मर गया है
कोई छोटा बच्चा खिलखिलाता था
जो अब जिंदगी से डर गया है
ये कैसी बेचैनी कैसा इज़्तराब है ?
ये कैसा खालीपन है जो मुझ में भर गया है?
गर मैं कोशिश करूं तुम्हें समझाने की
क्या समझ पाओगे हाल–ए –दिल मेरा?
कभी कभी मुझे यूं लगता है
कुछ नहीं मुस्तकबिल मेरा
कोई और होता तो शायद इल्ज़ाम लगा कर
मन हल्का कर लेता मैं
मगर आइने में देखता हूं तो दिखता है कातिल मेरा
TWO
फिर नई कलम, नया पन्ना
और वही पुराना ग़म
ये ख्याल मुझे आज भी सताता है ,
क्या मैं तेरे काबिल हूं?
अब तक मुझे लगता था कि
में फराख़ – दिल हूं
मगर अब लगता है मैं फक़त
साहिल पर कहीं नक्श–ए –पा हूं
जिसे आती लहर मिटा जाती है
में भी खुदको मिटा दूं या
फिर से नक्श बनाऊं अब?
रंज –ए –दिल किसको सुनाऊं अब?
मुश्त–ए –खाक फिसलती दिखती है
खुद की परछाई बदलती दिखती है
वही कहानी, वही जिंदगी ,
वही पुराने हम , फिर नई कलम , नया पन्ना और वही पुराना ग़म
THREE
मैं खिश्त – खिश्त बिखरा
मैं ज़ार – ज़ार रोया
कर बैठा उससे मोहब्बत
और फिर बेशुमार रोया
मैं वो था जो आफ़ाक़ से
मुख्तसर तकल्लुफ भी न करता था
मैं वो हूं के उसके शब –ए – इंतजार में रोया
मैं दिल कैसे संभालू? सब्र कैसे आए मुझे?
वो बहुत करीब था मेरे जब मैं
फिराक़ –ए –यार में रोया
FOUR
फिर आओगे जब तुर्बत पे मेरी
क्या लगता है ? क्या होगा?
नदामत से भर जाओगे तुम?
या आज़ार सा कुछ अदा होगा?
वक्त–ए –जुदाई में जाना
क्या लगता है? क्या होगा?
हसरत–ए –दीद भी होगी
फुरकत का ज़हरा होगा
सितम ये है कि तुमने कहा था फिर मिलेंगे
मगर अब न फिर होगी ना ही फर्दा होगा
फिर आओगे जब तुर्बत पे मेरी
क्या लगता है? क्या होगा?
By Divyanshi Solanki

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