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मन

By Garima Bajpai


"इस चमकती धूप में हमेशा इंसान कि परछाई उसका साथ देती है और यह धूप जब अंधेरों में लुप्त हो जाती है तो परछाई को भी अपने अंदर समेट लेती है। यही जीवन की सच्चाई है जिसे हर कोई जीवन के आखिरी पड़ाव में समझता है।अगर नारी का जन्म लिया है तो सम्मान से जीना चाहिए। अपनी आत्मा से कभी नहीं गिरना चाहिए ताकि उसके जीवन में उसके साथ जितनें भी रिश्ते जुड़े उन रिश्तों पर वो गर्व कर सकें। और यही सोच हर पुरुष को भी रखनी चाहिए।"- कहते -कहते सुधा खड़ी हो जाती है।


" ओफ हो! तुम्हारे ये भाषण सुनते-सुनते तो मेरे कान पक गये। आजकल के समाज में इन भाषणों की कोई महत्वता नहीं है।यह खाली सुनने में अच्छे लगते है तुम्हें तो तुम्हारी ही तरह भाषण देने वाला पति मिलना चाहिए।"- चिल्लाती हुई रानी सुधा के पास से उठकर कमरे में तैयार होने चली जाती है।


[ सुधा और रानी दोनों बचपन की खास दोस्त हैं। दोनों ने देहरादून के हास्टल में अपनी पढ़ाई पूरी की है और अब दोनों नौकरी की तलाश में हैं इनके माता-पिता कानपुर में रहते हैं परन्तु सुधा और रानी की परवरिश देहरादून में होने के कारण वहां की हरी-भरी वादियों का इतना असर पड़ा की वो इसे छोड़ना ही नहीं चाहती बल्कि यहां पर रहकर अपना जीवन संवारना चाहतीं हैं।]


रानी-"चलो सुधा मैं तैयार हो गयी । अब तुम भी जल्दी करो।काश! हम दोनों इस इंटरव्यू में पास हो जायेंगे।"


सुधा-"सही कहा दोस्त। चल मैं भी तैयार हो गयी।"


[ दोनों जल्दी-जल्दी इंटरव्यू के लिए पहुंची। इंटरव्यू के लिए पहले रानी को बुलाया गया। रानी जैसे ही पहुंची चौक गयी आफिसर का चेहरा एकदम काला और आंखें बहुत सख्त उस पर चश्मा, चेहरे में बहुत ज्यादा गंभीरता थी।]


रानी ( घबराती हुई )-"क्या मैं अंदर आ सकती हूं।"


आफिसर-"हां आइये।"


[रानी ने जाते ही अपनी फाइल आफिसर के आगे रख दी। आफिसर ने जब फाइल देखी तो बहुत सख्त स्वर में रानी की तारीफ करने लगा]


आफिसर-"आपकी फाइल से लग रहा है कि आप बहुत योग्यता प्राप्त है आपने कंप्यूटर का भी कोर्स किया है हमारे यहां एक जगह खाली है आप कल से आ जाना।"


रानी-"धन्यवाद सर। मैं कल से आ जाऊंगी।"


[ रानी आफिसर को धन्यवाद देती हुई बाहर आ जाती है]


रानी -" मेरा इंटरव्यू अच्छा रहा अब तू जा अगर भगवान चाहेंगा तो हम दोनों को यहीं नौकरी मिल जायेगी।"


सुधा-"सर मैं अंदर आ सकती हूं?"


आफिसर ( नज़र नीचे किये हुए) -"हां आइये।"


 [ आफिसर जैसे ही नजर उठाकर सुधा की तरफ देखता है तो दंग रह जाता है। सुधा गुलाबी साड़ी पहने इतनी सुन्दर लग रही थी कि जो देखे देखता रह जाये। उसके काले कमर तक बाल जिसे सुधा ने बहुत लापरवाही से ढीली चोटी कर रखी थी। और आफिसर उसे देखता ही रहा।]


सुधा ऊंचे स्वर में-" सर!"।


आफिसर ( चौंकते हुए)-"हां आप खड़ी क्यूं है कृपया बैठिए।"


[ सुधा थोड़ा धबराते हुए बैठ गयी और फिर आफिसर को अपनी फाइल दी।]


आफिसर ( फाइल पढ़ते हुए)-"आपका काम बहुत अच्छा है आप पहले भी एक जगह काम कर चुकी हैं फिर आपने वहां क्यूं छोड़ा।"


सुधा-" काम तो मैंने वहां बहुत लग्न से किया परन्तु वहां का आफिसर गंभीर नहीं था और मुझे ज्यादा बोलने वाले लोग पसन्द नहीं इसलिए मैंने वो नौकरी छोड़ दी।"


[ सुधा के इन शब्दों को सुनकर आफिसर पहले की भांति गंभीर हो गया।]


आफिसर-" फाइल में आपकी योग्यता को देखकर मैं बहुत प्रभावित हुआ हूं। अगर आप चाहें तो हमारे यहां एक लड़की चार महीने के लिए बाहर गयी है आप चाहें तो कल से उस लड़की का काम संभाल सकती हैं।"


सुधा-" धन्यवाद! मैं कल से आ जाऊंगी।"


 [ सुधा चली जाती है परन्तु आफिसर का मन पहले इतना अशांत नहीं था जितना कि सुधा को देखने के बाद हुआ। सुधा के बाहर आते ही।]


रानी-" क्या हुआ इंटरव्यू में दोस्त।"


सुधा-" कल से मैं भी तेरे साथ आऊंगी।चल अब घर चलते हैं।"


                          २


[ घर आकर दोनों बहुत खुश थी और थोड़ी देर बाद दोनों खाना खाते समय बातें करने लगी।]


रानी-"यार एक बात बता तुझे अपना आफिसर कैसा लगा। कहीं पहले वाले की तरह बातूनी तो नहीं बोल न।"


सुधा-"मुझे तो ठीक लगे। वो गंभीर और समझदार हैं।"


रानी-"सच में! मुझे तो बिल्कुल भी अच्छे नहीं लगे। चेहरे में न हंसी न खूबसूरती कितना बदसूरत चेहरा था। पता नहीं तुझे उनमें क्या अच्छा लगा।"


सुधा-" मैं आदमी की शरीर की सुंदरता से कभी भी प्रभावित नहीं होती। मुझे केवल आत्मा की सुंदरता और बातचीत में जिसके आर्कषण हो वो पसंद है।"


रानी-" जिसका चेहरा जिंदगी भर देखना हो वो कम से कम सुंदर तो होना ही चाहिए।"


[ खाना खत्म करते हुए सुधा इस बात का उत्तर बड़ी शालीनता से देती है।]


सुधा-" देखो रानी कोई भी व्यक्ति कितना भी सुंदर हो अगर बातचीत में कोई भी बात अशिष्टता से बोलेगा तो उसकी सारी सुंदरता बदसूरत लगेगी, उसके अंदर कोई आकर्षण नहीं होगा। और अगर कोई भी व्यक्ति कम सुंदर है और उससे बात करने पर वह हर बात का उत्तर गंभीरता और शालीनता से देगा तो आप चाह कर भी उसके पास से नहीं हट पायेंगें क्यूंकि उसके अंदर एक अलग सा खिंचाव होगा और वह खिंचाव मुझे बहुत पसंद हैं।]


रानी-"कहीं तुम ये कहना तो नहीं चाहती कि हर सुंदर आदमी अशिष्ट होता है।"


सुधा-"मेरी बात तुम कभी भी ठीक से समझ नहीं पाती और शायद कभी न समझ पाओ। मैं किसी सुंदर व्यक्ति के बारे में ऐसा नहीं कह रही हूं बल्कि आत्मा की सुंदरता के बारे में कह रही हूं चलो अब आराम कर लो।"


रानी-"तुम भी सो जाओ सुधा।"


सुधा-"मैं अभी सोना नहीं चाहती।"


रानी-"सुधा देख कोई दरवाजे पर दस्तक दे रहा है।"


( सुधा दरवाजा खोलकर देखती है तो रानी का दोस्त रमेश आया था।)


रमेश-"हैलो! सुधा जी।


सुधा-"हाय! रमेश।आओ अंदर आ जाओ बैठो।मैं रानी को भेजती हूं।


( सुधा रानी से बताती है कि रमेश आया है और रानी रमेश के पास आकर बैठ जाती है।)


रानी-" आ न सुधा थोड़ी देर हम सब बात करते हैं।"


सुधा-"तुम लोग बातें करो मुझे नींद आ रही है।"


रानी-"पर अभी थोड़ी देर पहले तो तुने कहा था कि नींद नहीं आ रही।"


सुधा-"मैं तो बहुत कुछ कहती हूं क्या तुम सब बातों पर ध्यान देती हो।"


( इतना कह कर सुधा दूसरे कमरे में चली जाती है और रानी और रमेश दोनों बातें करने लगते हैं।")


रमेश-"सुधा को मेरा यहां आना शायद अच्छा नहीं लगा।"


रानी-"नहीं ऐसा नहीं है। वो अपनी परेशानियों में उलझी रहती है इसलिए उसका दिमाग खराब है। अच्छा ये बताओ कि तुम यहां क्यूं आये?"


रमेश-"मैं तुम्हारे इंटरव्यू के बारे में पूछने आया था।"


रानी-" हमारा इंटरव्यू बढ़िया रहा।कल मैं और सुधा दोनों काम पर जायेंगे।"


रमेश-"मुबारक हो दोस्त। अच्छा अब मैं चलता हूं।"


रानी-"अरे इतनी जल्दी! कुछ खा तो ले मैं लेकर आती हूं।"


रमेश-"नहीं दोस्त फिर कभी।अभी मुझे एक काम याद आ गया। अच्छा रानी फिर मिलते हैं।"


रानी-"ठीक है रमेश।"


( रमेश के जाने के बाद रानी सुधा को जोर से आवाज देती है।)


रानी-"सुधा सुधा......!"


सुधा-"क्या है इतनी जोर से क्यूं चिल्ला रही हो।"


रानी-" तुमने मेरे दोस्त की बेइज्जती की है। वो तो तुमसे तरीके से बात करता है तुम्हें इतनी इज्जत देता है फिर तुमने ऐसा क्यों किया।

?"


सुधा-"मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा जिससे तुम्हें या किसी को बुरा लगे अगर तुम्हें ऐसा लगता है तो ध्यान से सुनो मुझे लड़कों का घर आना बिल्कुल पसंद नहीं ये बात तुम अच्छी तरह से जानती हो अगर तुम्हें इन लोगों से व्यवहार रखना है तो घर से बाहर रखो।"


रानी-" तुम मेरी भी एक बात सुन लो। मैं अपनी जिंदगी तुम्हारे अंदाज में नहीं जी सकती। मेरा जीने का तरीका तुमसे बिल्कुल अलग है। चाहे घर में कोई भी आये तुम अपना मन साफ रखो। मैं अंधेरों से ज्यादा उजालो में विश्वास करती हूं।"


सुधा-"जिन्हें तुम उजाला समझती हो वो तुम्हारे आने वाले भविष्य का अंधेरा है।देखो ,रानी मैं ये नहीं कहती हूं कि रमेश खराब लड़का है बल्कि मैं ये कहना चाहती हूं कि हम दोनों घर में अकेली रहती है और इस तरह लड़कों का आना जाना लगा रहेगा तो समाज हमें इज्ज़त नहीं देगा।"


[ सुधा हर तरह से रानी को समझाने की कोशिश करती है परन्तु रानी हर बात का विरोध करती रही।बहस के बाद दोनों सोने चली जाती है। सुबह दोनों आफिस में जल्दी आ जाती है। रानी अखबार में एक खास खबर पढ़ते हुए सुधा के पास आती है।]


रानी-" सुधा देख तो अखबार में लिखा है कि एक औरत अपने पति से कहासुनी में जहर खाकर मर गयी तू बता इसमें आदमी की गलती है या औरत गलत है।"


[ सुधा कुछ कहती कि उससे पहले आफिसर आ जाता है और दोनों को इतनी जल्दी आफिस में देखकर बहुत खुश होता है।]


आफिसर-" अरे वाह! रानी और सुधा तुम दोनों समय से पहले आ गयी। इस बात की मुझे बहुत खुशी है।"


रानी और सुधा-" हैलो सर!


आफिसर-"हैलो! तुम दोनों किस विषय पर बात कर रही हो और रानी किसे गलत बोल रही है?"


रानी-"कुछ नहीं सर आज अखबार में एक औरत के बारे में लिखा है कि वो अपने पति से बहस के दौरान आत्महत्या कर ली अब आप ही बताइए सर कि कोई भी इतनी आसानी से जान दे सकता है जरूर उसका खून हुआ है।"


आफिसर-"देखो रानी कोई भी बात इतने विश्वास से नहीं कही जा सकती हैं कुछ औरतें ऐसी होती हैं जिन्होंने अपना जीवन सुखमय बिताया हो और जीवन में कभी संघर्ष न किया हो वो शादी के बाद छोटी-छोटी बातों में अपना दिमाग खराब कर लेती है और आत्महत्या जैसे गुनाह कर बैठती है।जरा उन औरतों को देखो जिनके आगे पीछे कोई नहीं होता वो कितने संधर्षपूर्ण ढंग से अपने बच्चों को पालती है वो तो कभी भी मरने की बात नहीं सोंचती । शादी के बाद अगर लड़की को प्रताड़ित किया जाता है तब वो आत्महत्या करती हैं तो यह खून करना हुआ मगर घर में सब सुख सुविधा होते हुए ऐसी हरकत करना तो ये ज़िद है।"


रानी-" वाह!सर क्या बात कही है।


सुधा-" हां! सर आपकी बात एकदम सच है आप सच में समझदार हैं।"


आफिसर-" नहीं सुधा बात समझदारी की नहीं जिंदगी के बारे में गहराई से सोचने की है अच्छा तुम लोग काम करो वरना सारा समय बातों में ही बीत जायेगा।"


[ काम खत्म करके सुधा सर से मिलने जाती है योगेश आने का कारण पूछता है।]


सुधा-" मैं ऐसे ही आप से मिलने आयी थी।"


आफिसर-"कहीं सुबह अखबार वाली खबर के बारे में आप बात करने तो नहीं आयीं ।


सुधा-"शायद हां! आपकी बात मुझे पसंद आयी परन्तु मैं पूर्ण रूप से सहमत नहीं हूं। एक पत्नी को उसका पति बहुत प्यार करता हो और अपनी पत्नी से कभी ऊंची आवाज में न बोला हो। उसने अपनी पत्नी को हर जगह सम्मान दिया हो वो पति अगर पत्नी को चुभन भरी बात कह दे तो शायद पत्नी को बहुत दुःख होगा इसलिए जिनकी मनन स्थिती कमजोर होती है वो भी आत्महत्या जैसी हरकतें कर बैठते हैं।सर क्या आप मेरी बात से सहमत हैं?"


आफिसर-" मैं तो तुम्हारी इस बात पर यही कहना चाहूंगा कि तुम एक समझदार औरत हो और शायद एक कामयाब पत्नी भी रहोगी।"


[ आफिसर की बात सुनकर सुधा शरमा जाती है]


सुधा- "क्या सर आप भी! मैं तो बस ऐसे ही कह रही थी।अब घर जाने का समय हो गया है इसलिए अब निकलती हूं।"


आफिसर-" हां तुम दोनों निकलो मैं थोड़ी देर में घर जाऊंगा।"

                   

                          ३


[ सुधा और रानी घर आती हैं घर आते ही उन्हें दरवाजे पर एक शादी का कार्ड मिलता है।"]


रानी-" देख सुधा किसका कार्ड आया है कहीं खास दोस्त तो नहीं। पता है आज............।"


सुधा-"अच्छा बाबा! तू चुप रहे तो मैं इसे खोल कर देखूं।"


रानी-"हां! पढ़ न मैंने कब मना किया।"


सुधा-"अरे वाह!अर्चना की शादी का कार्ड आया है जो हमारी सबसे अच्छी दोस्त थी। उसने हास्टल के ही लड़के नितेश के साथ शादी कर रही है।"


रानी-" सच्ची! बहुत बड़ी खुशखबरी है ये। नितेश और अर्चना एक दूसरे को कितना प्यार करते थे और आज जीवनसाथी बनने जा रहे हैं। और एक तू है जिसे हास्टल से लेकर आज तक कोई लड़का पसंद नहीं आया जबकि हर लड़के की पसंद तू थी पर तेरे सामने किसी लड़के कि हिम्मत ही नहीं हुई।"


सुधा-"तू तो ऐसे बोल रही है जैसे तुझे कोई पसंद आ गया है।"


[ रानी बहुत हिम्मत जुटा कर सुधा से अपने मन की बात कहती है।]


रानी-" हां सुधा। मुझे रमेश पसंद है और मैं उससे शादी करना चाहती हूं।मेरा बहुत दिनों से मन कर रहा था कि तुझसे ये बात बताऊं पर हिम्मत ही नहीं हुई।"


सुधा-"शायद ये मेरी खुशकिस्मती है कि मेरी दोस्त ने मेरा इतना सम्मान किया और मेरे विचारों कि कद्र की पर शायद मैं भूल गयी थी कि तुम मेरी दोस्त हो तुम्हारा भी जीने का अपना तरीका है तुम्हारा फैसला ठीक है।तुम अपने माता-पिता को यह बात बता दो और शादी कर लो क्यूंकि जो प्यार लम्बा खिंचता है वो टूट जाता है इसलिए उसे मंजिल तक पहुंचाओ।"


[ सुधा की बात सुनकर रानी के जान में जान आयी और जल्दी से सुधा को गले लगा ली और पूछा।"]


रानी-" सुधा क्या तुझे कोई पसंद नहीं आया क्या दुनिया में किसी से भी तुम्हारे विचार नहीं मिलते बता न अगर तू मुझसे प्यार करती है तो बता?"


सुधा-"हां! एक व्यक्ति हैं जिनका व्यक्तित्व बहुत पसंद हैं जो मुझे बहुत प्रभावित करते हैं और वो है हमारे आफिसर योगेश जी।"


रानी-"क्या! तेरा दिमाग तो खराब नहीं है वो रात है और तू दिन है तेरा और उनका मेल बहुत अजीब है।"


सुधा-" नहीं रानी उनके बारे में ठीक से बात करो। वो मेरे आदर्श हैं मैं उनका सम्मान करती हूं उनके पास रूप नहीं है पर उनके मन की सीरत बहुत सुंदर है जिससे हर कोई प्रभावित हो जाये।शरीर की सुंदरता कितने दिन इंसान का साथ देगी एक न एक दिन उम्र के एक पड़ाव में ये साथ छोड़ देती है पर एक समय ऐसा आता है जब स्त्री और पुरुष दोनों बूढ़े हो जाते हैं तब रूप नहीं बल्कि मन से एक दूसरे का साथ देते हैं। इसलिए तुम अच्छे स्वभाव वाले लोगों का सम्मान करना सीखों।"


रानी-" सर तेरे आदर्श है यह बात यहां तक तो ठीक है पर अगर तू उनसे प्यार या शादी करना चाहती है तो मैं बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगी।"


[ रानी की बात सुधा को बिल्कुल भी पसंद नहीं आती इस बात का उत्तर वो बहुत गुस्से में देती है।]


सुधा-"हां! मैं उनसे प्यार करती हूं और शादी करना चाहती हूं ये मेरी जिंदगी है इस दुनिया में बहुत सी ऐसी बातें हैं जो मुझे नहीं पसंद पर मैं अपनी पसंद को किसी पर भी नहीं थोपती। मैं वही पसंद करती हूं जो मुझे अच्छा लगता है। रमेश के अंदर कई ऐसी आदतें हैं जो मुझे नहीं पसंद पर मैंने रमेश के लिए तुझसे कुछ नहीं कहा क्यूंकि मुझे एहसास हो गया था कि तू उससे प्यार करने लगी है और जब कोई किसी से प्यार करता है तो उसकी जरा सी भी बुराई पसंद नहीं करता।"


रानी शर्मिंदगी से कहती हैं-"मुझे माफ़ कर दो सुधा! मेरा मतलब तुम्हारा दिल दुखाना नहीं था बस मैं इतना जानना चाहती हूं कि क्या वो भी तुझसे प्यार करते हैं।"


सुधा-"पता नहीं।


रानी-"तू अगर बुढ़ी भी हो गयी न तब भी तू सर से अपने प्यार का इज़हार नहीं कर पायेगी इसलिए ये सब तू मुझपे छोड़ दें मैं पता लगा लूंगी।"


सुधा-"बातों-बातों में रात बीत गई और हमें पता ही नहीं चला।"


[ इसी तरह कई दिन बीत गये। रानी अपने दोस्त राजेश के बहुत करीब आ गयी थी और सुधा अपने आफिसर योगेश के करीब आ गयी थी। एक दिन ऐसा आ ही गया जब रानी ने योगेश से सुधा के लिये बात करने लगी।]


योगेश-"रानी! तुमने मुझे रेस्टोरेंट में क्यूं बुलाया और सुधा नहीं आयी । कहां है वो?"


रानी-"अरे सर! परेशान क्यूं हो रहे हैं मैं आपसे जरूरी बात करना चाहती हूं।"


योगेश-"ऐसी क्या जरूरी बात है जो आफिस में नहीं हो सकती।"


रानी-"अरे!घबरा क्यूं रहे हैं सर। मैं तो सुधा और आपके बारे में बात करना चाहती हूं।"


योगेश-"सुधा के बारे में क्या बात करनी है तुम्हें सुधा को क्या हुआ ?"


रानी-"अब आप शांति से सुनेंगे तो मैं कुछ बोलूं।"


योगेश-"अच्छा बाबा बोलो।"


रानी-"क्या आप सुधा को पसंद करते हैं?"


योगेश-"ये कैसा सवाल है?"


रानी-"जो पूछा है उसका सीधा-सीधा जवाब दीजिए क्यूंकि मैं जानती हूं कि आप दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हैं पर कभी भी बोल नहीं पायेंगे इसलिए मैं पूछ रही हूं जिससे समय पर आप दोनों एक हो जायें।"


योगेश बड़े ध्यान से रानी की तरफ देखता है और कहता है-"क्या सच में सुधा मुझे पसंद करती हैं?"


रानी-"हां! वो आपको पसंद करती हैं पर पहले आप बताइए कि आपको सुधा पसंद है।"


[ योगेश यह जानकर बहुत खुश होता है पर रानी से थोड़ा घबराते हुए बोलता है।]


योगेश-"रानी मुझे सुधा पसंद है पर डर के मारे कभी कहा नहीं क्यूंकि मुझे लगा कि कहीं मै ये दोस्ती खो न दूं।"


रानी-"तो क्या आप शादी करेंगे सुधा से?"


योगेश-"अगर वो चाहेंगी तो जरूर करना चाहता हूं।"


रानी-"वो सब आप मुझ पर छोड़ दीजिए।"


                         ४


[ योगेश दिल से रानी को धन्यवाद देता है और फिर दोनों लोग अपने-अपने घर चले जाते हैं और घर पहुंच कर रानी सबसे पहले सुधा से पूरी बात बताती है जिसे सुनकर सुधा बहुत खुश होती है और मन ही मन रानी को धन्यवाद देती है। रानी और सुधा अपनी शादी की बात अपने माता-पिता से करती हैं पहले तो दोनों के माता-पिता तैयार नहीं होते पर बाद में अपने बच्चों की खुशी के लिए मान जाते हैं आखिर वो दिन आ ही गया जब दोनों परिणय-सूत्र में बंध गए ।योगेश के परिवार में बस एक छोटी बहन है जिसका नाम रीना है योगेश से बस दो साल छोटी है और रमेश के परिवार में बस मां थी। दोनों विदा होकर ससुराल जाती है। योगेश की बहन रीना बहुत खुश होती है।"


रीना (आरती उतारते हुए)-"आओ मेरी प्यारी भाभी इस घर में आपका स्वागत है।"


सुधा (मुस्कुराते हुए)-"जी जरूर मेरी प्यारी सी ननद जी।"


[ उधर रानी की सास पूरे मन से रानी का स्वागत करती हैं रानी को भी अपनी सास बहुत अच्छी लगती हैं। सुधा और रानी दोनों अपना जीवन अच्छे से बिताती हैं सुधा नौकरी छोड़ देती है पर रानी नौकरी नहीं छोड़ती।पर जिम्मेदारियों के कारण दोनों कि दोस्ती कम होती जा रही थी।]


योगेश (सुधा से)-"तुम्हारे जैसी संगिनी पाकर मैं धन्य हो गया। तुमने घर को बहुत अच्छे से संभाला है।"


सुधा-"ये तो मेरा कर्त्तव्य है।आपका साथ पाकर मेरे लिए सब आसान हो गया।"


योगेश-"सुधा तुम अपने माता-पिता को यहां बुला लो हम दोनों मिलकर उनकी सेवा करेंगे और हमारा परिवार भी पूरा हो जायेगा। तुम्हारे सिवा उनका कोई नहीं है।"


सुधा-"मैं भी यही सोच रही थी पर आपने कह कर मेरा मन हल्का कर दिया। मैं कल ही इस बारे में बात करती हूं।"


[ सुधा अपने माता-पिता को कानपुर से लाकर अपने पास रखती है। सुधा के माता-पिता को आने में बहुत संकोच हो रहा था पर योगेश का इतना अपनापन देख कर वो मना नहीं कर पाये।]


सुधा की मां ( सुधा से) -"बेटा जब पहली बार योगेश के लिए हमसे कहा था तब योगेश हमें बिलकुल भी पसंद नहीं था पर आज हमें नाज़ है तेरी पसंद पर। तू हमेशा ऐसे ही खुश रहें।"


[ सुधा ये सुनकर बहुत खुश होती है योगेश भी मां की बात सुन लेता है]


सुधा-"आ गये आप।"


योगेश-" हां! भूख लगी है खाना लगा दो सुधा।"


सुधा-"आप हाथ- मुंह धोकर आईये मै अभी लगाती हूं।"


[ सभी लोग खाना खाकर अपने कमरे में चले जाते हैं पर रीना अपनी भाभी को धीरे से रोक लेती है]


रीना-" भाभी मुझे आपसे कुछ कहना है।"


सुधा-"हां रीना बोलो क्या कहना है।"


रीना-"मुझे एक लड़का बहुत पसंद हैं।"


सुधा-"(हैरानी से)-"कौन है वो लड़का?"


रीना-"वो डाक्टर है और मैं उससे शादी करना चाहती हूं।आप भईया से इस बारे में बात करो न भाभी।"


सुधा-"ठीक है मैं तेरे भईया से बात कर लूंगी।अब तुम सो जाओ।"


रीना (सुधा को गले लगा लेती है)-"मेरी प्यारी भाभी आप बहुत अच्छी हो।"


[ सुधा और रीना दोनों अपने-अपने कमरे में चली जाती है। सुधा योगेश से रीना के बारे में बात करती हैं और सब बता देती है। योगेश कुछ नहीं बोला बस चुपचाप सुनता रहा। सुबह योगेश काम पर जाने के लिए तैयार हो रहा था तभी सुधा रीना को योगेश के पास भेज देती है।]


योगेश (रीना से)-"देखो रीना अभी तुम इतनी योग्य नहीं हो कि मैं तुम्हारी शादी कर दूं पर ये सच है कि मैं तुम्हारी शादी वहीं करूंगा जहां तुम चाहोगी मगर मैं चाहता हूं कि पहले तुम अपने पैरों पर खड़ी हो जाओ। इस योग्य बन जाओ कि हर मुसीबत में सक्षम रहो । मेरी बात समझ गई न तुम।"


रीना-" आप बिल्कुल सही कह रहे हैं भईया मैं ऐसा ही करूंगी।"


[ योगेश और रीना की समझदारी और प्यार को देखकर सुधा बहुत खुश थी। और योगेश उसके माता-पिता का बहुत ध्यान देता है। एक दिन योगेश सुधा से कहता है]


योगेश-"सुधा! बहुत दिनों से मेरे मन में एक बात है जो तुमसे कहनी है।"


सुधा-"बोलिए न! क्या बात है?"


योगेश-"मैंने शा‌दी से अब तक तुम्हारी कई बातों पर ध्यान दिया है कि बहुत से लोगों ने तुमसे मेरी बुराई की लेकिन तुम बड़ी सरलता से जवाब देती थी कि शिवलिंग भी काले और कृष्ण भी काले फिर भी सभी लोग उन्हें पूजते हैं क्यूं। क्यूंकि उनका मन और उनके कर्म अच्छे है। तुमने मुझे अपने दिल में ईश्वर का स्थान दिया है तुम सच में सबसे अलग हो। इसलिए तो मैं तुम्हें अपने जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य मानता हूं।"


सुधा-"आप फिर शुरू हो गये। मेरी तारीफ सारा दिन करने से आप थकते नहीं।आपके मन की सीरत सबसे अच्छी है इसीलिए तो आपको जीवनसाथी चुना है मैंने।"


                         ५


[ इस तरह सुधा और योगेश का प्यार गहरा होता गया क्यूंकि दोनों ही बहुत सहज थे। मगर उधर रानी के जीवन में तो कुछ और ही चल रहा था पहले जितनी हंसमुख थी आज उतनी चिड़चिड़ी हो गयी थी क्यूंकि रमेश अपना पूरा काम लैपटॉप पर करता है इसलिए वो घर पर ही रहता है और जो समय उसे मिलता वो मोबाइल में एफ.बी में लगा रहता था इसी कारण से रानी बहुत परेशान रहती थी रानी को घर और बाहर का सारा काम करना पड़ता था और नौकरी भी करती थी।]


सुधा-"तुम सारा दिन घर पर रहते हो तो कम से कम मां का तो ध्यान दें सकते हो।न उनकी दवा लाते हो और न घर का कोई सामान लाते हो। खाना बनाने में भी मेरी कोई मदद नहीं करते हो।ये कैसा जीवन बिता रहे हैं आप।"


रमेश-"ऐसा नहीं है रानी।मेरा काम ही ऐसा है कम्प्यूटर में प्रोग्राम बनाना इसलिए मैं कहीं जा नहीं पाता।"


रानी-"पर मैं ये सब कब तक देखूं।आप घर पर रहते हैं तो कम से कम मां की तबीयत तो देख सकते हैं कल मां के बहुत तेज बुखार था और तुमने एक बार भी मां को ना देखा और ना ही दवाई दी। सिर्फ मोबाइल और लैपटॉप में काम बस यही जिंदगी बना ली है सच तो यह है कि अब न तो तुम मेरे हो और न अब तुम्हारी रात मेरी है।"


[ इतना कुछ रानी ने कह दिया पर रमेश अपने में मस्त रहा । उसने रानी की किसी भी बात का उत्तर नहीं दिया। और एक बार भी रानी की तरफ देखा भी नहीं। रमेश के इस तरह के व्यवहार से रानी धीरे-धीरे उससे दूर होती जा रही थी। रानी अब किसी भी काम के लिए रमेश के भरोसे नहीं रहती थी बल्कि खुद मां का अच्छे से अच्छा इलाज कराने लगी। पर कोई फायदा नहीं हुआ क्यूंकि कहीं न कहीं मां के भी मन में रमेश को लेकर चिंता बनी हुई थी कि रमेश पास होकर भी न के बराबर है रानी मां की हालत देख-देख कर परेशान हो रही थीं]


रानी- "मां आप क्यूं परेशान हो रही है पहले अपने मन को अच्छा रखिए तभी आप ठीक हो पायेंगी।"


मां-"बेटी! मैं बिल्कुल ठीक हूं पर रमेश की चिंता लगी रहती है कि वो पहले कितना हंसमुख था सभी से मिलने जाता था और आज वो गुमसुम रहने लगा है घर में कोई कितना भी परेशान हो पर वो एक बार भी पूछता नहीं सिर्फ अपनी दुनिया में लगा रहता है तू अकेले ही बहुत संभालती है बस यही सब देख कर मन बैठा जा रहा है।"


रानी-"मां आप ये सब मत सोचो। मैं चाहती हूं कि आप बस जल्दी ठीक हो जाओ।"


[ रानी ने मां को बहुत समझाया पर मां पर इन बातों का कोई असर नहीं हुआ और किसी भी इलाज का कोई फायदा नहीं हुआ उनकी हालत दिन पर दिन बिगड़ती गयी और आखिर एक दिन उनका स्वर्गवास हो गया। मां के जाने के बाद रानी पूरी तरह टूट चुकी थी क्यूंकि मां के जाने के बाद भी रमेश पर कोई असर नहीं हुआ बस एक दिन दुःखी होता है और फिर अपने काम में लग जाता है। रानी निश्चय कर लेती है कि अब रमेश के साथ उसे नहीं रहना और वो इस विषय में बात करती हैं]


रानी-"रमेश मैं अब तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहती क्यूंकि तुम्हारी दुनिया बस तुम्हारा काम है तुमने अपने आप को इसी घर में बांध लिया है न कहीं आते हो न कहीं जाते हो बस लैपटॉप और मोबाइल में लगे रहते हो।सच तो यह है कि तुम दिमाग से पूरे बिमार हो चुके हो।"


रमेश-"तुम ऐसा क्यूं कह रही हो रानी। बस थोड़े दिन की बात है फिर मैं और तुम बहुत खुश रहेंगे। मैं इतना कमा लूंगा कि पूरी जिंदगी हम बहुत खुश रहेंगे।"


रानी-"जो समय आज है वो कल नहीं आयेगा। तुम मेरी भावनाओं को समझते ही नहीं हो मैं तुम्हारे साथ जिंदा लाश बन गयी हूं। तुम रात में अगर कभी भी मुझे छूते हो तो पूर्णरूप से मुझे महसूस करके प्यार नहीं करते हो तुम उन लड़कियों को महसूस करके मुझे प्यार करते हो जो तुम्हारे मोबाइल में तुम्हारी दोस्त हैं।ये सोचकर मुझे अंदर ही अंदर अपने आप से घृणा होती है मैंने कई बार तुम्हें अंजान लड़कियों से बात करते देखा है। जो तुम करते हो वो मैं भी कर सकती हूं पर मैंने तुमसे सच्चा प्यार किया है मुझे मेरा रमेश चाहिए। जो पहले कि तरह मुझसे प्यार करता था।"


रमेश-"तुम बेकार की सोच में पड़ी हो ऐसा कुछ भी नहीं है जैसा तुम समझती हो। मैं सिर्फ तुम्हें ही चाहता हूं और हमेशा दिल से चाहता रहुंगा और अगर तुम्हें मेरे साथ अच्छा नहीं लग रहा है तो तुम जा सकती हो क्यूंकि मैं सिर्फ तुम्हारे लिए जी रहा हूं।"


रानी-"ठीक है मैं जा रही हूं।"


                        ६


[ रानी बहुत उदास मन से थोड़ा सामान लेकर वहां से चली जाती है और किराये के घर पर रहने लगती है रानी इतना परेशान थी कि उसे कोई रास्ता दिख नहीं रहा था।अचानक एक दिन रानी को सुधा की याद आती है और वो सुधा को फोन करती हैं और फोन पर जैसे ही सुधा की आवाज सुनती है वो बुरी तरह रो देती है जिससे सुधा बहुत परेशान हो जाती है और रानी को मिलने के लिए एक रेस्टोरेंट में बुलाती हैं फिर योगेश के साथ वहां जाती है]


सुधा-"रानी तू इतनी परेशान क्यूं है अगर कोई बात है तो तू मुझे बता। ऐसा क्या हुआ है तेरे साथ?"


रानी (रोते हुए)-"सुधा मैं टूट चुकी हूं अब मुझसे बर्दाश्त नहीं होता।"


योगेश-"क्या बात है रानी? खुलकर बताओ हम है न तुम्हारे साथ। पहले रोना बन्द करो फिर सारी बात बताओ।"


[ रानी सारी बात योगेश और सुधा से बता देती है।]


रानी-"मैं आधुनिक विचारों की जरूर हूं पर सही हूं। मैंने बहु और पत्नी के सारे कर्त्तव्य निभायें है।पर जो इंसान अपनी मां को एक पल भी नहीं दे सकता वो मेरा जिंदगी भर क्या साथ देगा बता सुधा पर सोचकर बोलना।"


[ सुधा और योगेश रानी की बात सुनकर हैरान हो जाते हैं कि ये सब क्या हो गया रानी के साथ बहुत हिम्मत जुटा कर सुधा रानी को संभालती है।]


सुधा-"रानी पहले तुम शांत हो जाओ और मेरी बात ध्यान से सुनो। रमेश मन का बहुत अच्छा है उसने जो भी किया वो गलत है पर पूर्णरूप से नहीं क्योंकि वो मानसिकता का शिकार हो गया है उसे तेरी जरूरत है तू उसे उस अंधेरे से निकाल सकती है नहीं तो तू उसे हमेशा के लिए खो देगी।"


रानी-"ऐसा मत बोल दोस्त। मैं रमेश को कभी खोना नहीं चाहती।"


योगेश-" सुधा सही बोल रही है कि तुम्हें रमेश की मदद करनी होगी और इस काम में हम तुम्हारे साथ है।"


[ रानी दोनों की बातों को अच्छे से समझ जाती है क्योंकि रानी भी एक समझदार औरत थी। योगेश और सुधा से मिलकर उसकी हिम्मत बढ़ गई थी।]


रानी-"क्या करूं दोस्तों मैं? तुम दोनों मुझे सही दिशा दिखाओ।"


योगेश-"अभी तुम मुझे और सुधा को रमेश के पास लेकर चलो।"


सुधा-"हां! योगेश सही कह रहे हैं।"


[ रानी सबके साथ योगेश के पास जाती है जैसे ही रानी घर का दरवाजा खोलती हैं वैसे ही हैरान हो जाती है घर पूरा अस्त-व्यस्त पड़ा है और रमेश बेहोश पड़ा था। रानी बहुत घबरा जाती है फिर सब लोग रमेश को लेकर अस्पताल जाते हैं जहां योगेश डाक्टर से पूछता है]


योगेश-" क्या हुआ डाक्टर इन्हें। कोई खतरे की बात तो नहीं!"


डाक्टर-"ऐसी कोई बात नहीं।पर शरीर बहुत कमजोर है और खून की भी कमी है इन्हें ठीक होने में कुछ समय लग जायेगा।"


[ रमेश की हालत देखकर रानी बहुत घबरा गयी थी पर डाक्टर की बात सुनकर उसके जान में जान आयी। रमेश को अगले दिन होश आता है और आंखों के सामने रानी को देखकर रो देता है और हाथ पकड़ कर कहता है।]


रमेश-"रानी तुम मुझे छोड़ कर कभी मत जाना। मैं तुम्हारे बिना बिल्कुल रह नहीं पाऊंगा।मैं चाहता हूं कि तुम हमेशा मेरे पास रहो। मैं तुम्हें कभी भी शिकायत का मौका नहीं दूंगा। तुम्हें अपना सारा समय दूंगा। तुम जो कहोगी वो सब करूंगा।ये सच है कि मैं सभी से मोबाइल में बात करता हूं लेकिन मेरे वास्तविक जीवन में उनका कोई लेना-देना नहीं तुम मेरे बारे में गलत सोंचती हो मैं इतना बुरा नहीं हूं जितना तुम समझती हो।"


रानी-"मैं जानती हूं कि तुम बुरे नहीं हो बस थोड़ा जिम्मेदारियों से भटक गये हो। मैं तुमसे आज भी बहुत प्यार करती हूं और अब तुम्हें कभी भी छोड़ कर नहीं जाऊंगी। आज अगर हम मिले हैं तो अपने पुराने दोस्तों के कारण मिले हैं।

देखो रमेश! मेरे साथ कौन आया है?"


[ रमेश जैसे ही सुधा और योगेश को देखता है तो बहुत खुश होता है और दोनों को बहुत धन्यवाद देता है।]


योगेश-"अब कैसी तबियत है रमेश!"


रमेश-"अब मैं बिल्कुल ठीक महसूस कर रहा हूं।"


सुधा-"अच्छी बात है पर अब तुम दोनों हमेशा खुश रहना और हमें कभी मत भूलना।समझ गये न दोनों।"


रानी-" अब मैं कभी भी तुम जैसे प्यारे दोस्तों को भूलने की गलती नहीं करूंगी क्यूंकि तुम जैसे दोस्त बड़ी किस्मत से मिलते हैं।"


[ कुछ समय बाद रमेश बिल्कुल ठीक हो जाता है और रानी उसे अस्पताल से लेकर घर आ जाती है एक दिन योगेश और सुधा दोनों रानी के घर आते हैं रानी और रमेश देखकर बहुत खुश होते हैं। रानी और रमेश के मन में कहीं न कहीं मां की कमी महसूस हो रही थी ये बात रानी बहुत उदास मन से सुधा से कहती है।]


रानी- पता नहीं क्यूं मुझे अंदर ही अंदर मां की कमी खलती है।"


सुधा-"मैं समझ सकती हूं रानी कि तुम किस‌ दुविधा से गुजर रही हो। अगर तुम इस बवंडर से नहीं निकलोगी तो परेशान ही रहोगी और मन ही मन में तुम रमेश को इस बात का दोष देती रहोगी।हम सब कई बार ऐसे गुनाह कर बैठते हैं जिसका हमें बाद में बहुत प्रायश्चित होता है पर समाज और परिवार उसी गुनाह को कोस-कोस कर हमें गुनहगार बना देता है मेरे विचार से अगर कोई प्रायश्चित करता है तो उसे माफ कर देना चाहिए। और उसके मन की स्थिति को भी समझना चाहिए अगर हम सब हर किसी की मन की सीरत को जान लेंगे तो हम समाज में कुशल व्यवहारिकता स्थापित कर पायेंगे।"


रानी ( मुस्कुराते हुए)-" वाह सुधा! आज तेरा भाषण दिल को छू गया।"


By Garima Bajpai





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