हाल ए मन
- Hashtag Kalakar
- Aug 7
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By Abhishek Choudhary
हाल-ए-मन की कहानी
लिख के भी लिख ना पाऊं मैं
भाव रस में झुलस गया
झुलसा हुआ दिख ना पाऊं मैं।
श्वेत ज्वाला सुलग रही हैं
भाव-ए-दिल के दहन से
आँखें भी अब पिघल रही हैं
अश्क़-ए-मन के सहन से।
क्या करूँ यह उलझन मेरी
मान मेरा पी रही हैं
सक्षमता में अक्षमता का
सार साँसें जी रही हैं।
सब जान के कुछ कर ना पाऊं
तो भी दिल थामता नहीं हैं
धड़कनें रुकती नहीं हैं
खून यह जमता नहीं हैं।
वात में निर्वात सा
अब चित्त यह मेरा बन रहा हैं
उजियारे से अंधेर तक
दिल झूंठ में ही छन रहा हैं।
आँख यह मन की खुली तो
तन को सोना भुला दिया हैं
सौ से शून्य के सफर ने
पापी झूला झुला दिया हैं।
By Abhishek Choudhary

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