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हाईवे का भूत

Updated: Jul 28

By Suyash Tripathi


बहुत ज़ोर की बरसात हो रही थी। प्रतीक, हाईवे पर बहुत तेजी से गाड़ी दौड़ा रहा था। उसकी कार में दम मारो दम का एक घटिया रीमिक्स किसी एफएम पर फुल वॉल्यूम में बज रहा था। कार का एक शीशा खुला हुआ था जिसमे से कार के अंदर भरा सिगरेट का धुआं बाहर निकल रहा था। जिस जगह से वो गुज़र रहा था वो किसी टिपिकल हॉरर film में दिखाई जाने वाली सड़क सी लग रही थी। एक सुनसान रास्ता, जिसके दांए बाएं घना जंगल है। आसमान में छाए काले बादल मंजर को और भी भयानक बना रहे है। अब बस एक सफेद साड़ी पहनी एक खूबसूरत औरत गाड़ी के सामने आ जाए  तो दृश्य पूरा हो जाए। वैसे तो वो नही दिखी पर अगर एक पल को ये मान भी लें कि वो सामने आ भी जाती, तब भी प्रतीक किसी कीमत पर अपनी गाड़ी नही रोकता। वो बस अपनी धुन में मदमस्त होकर गाड़ी चला रहा था। वैसे ये बात सही थी की अबतक वो डरावना सा लगने वाला रास्ता खत्म नहीं हुआ था। उस रास्ते पर प्रतीक की कार के अलावा अब तक कोई नजर नहीं आया था। रात बहुत हो चुकी थी। बारिश अभी भी रुकी न थी। उस जंगली रास्ते के घने पेड़ अब सीमित रह गए थे। कार के अंदर एफएम में अब किसी गाने की जगह एक डरावनी कहानी सुनाई जा रही थी। प्रतीक को ऐसी कहानियां सुनने का बहुत शौक था। सो वो भी बड़े चाव से उस आरजे को सुन रहा था। प्रतीक की उस कहानी को सुनने की चाहत तब और बढ़ी जब उसे पता चला कि ये कहानी उसकी वर्तमान परिस्थिति से जुड़ी हुई मालूम होती है। 


आरजे बोलता है “ आज की ये सच्ची डरावनी कहानी एक ऐसे रहस्यमयी भूत की है जो जंगल से सटे हाईवे पर आकर लोगो की गाड़ियों को बंद कर दिया करता और अगली सुबह दूसरो को उस हाईवे पर एक खराब हुई गाड़ी और उसके अंदर बैठे लोगों की लाश ही मिलती।“



आरजे ने इतना बोला ही था कि तभी अचानक से प्रतीक की कार बीच सड़क पर बंद पड़ गई। प्रतीक ने गाड़ी को चालू करने के लिए बार बार चाबी घुमाई पर कार शुरू ना हुई। उसने दरवाज़े को ये सोचकर खोला ही था की देखें तो आखिर हुआ क्या? कि तभी उसे आरजे की कहानी याद आ गई। जिस हाईवे का जिक्र उस आरजे ने किया था प्रतीक भी उसी पर अब तक अपनी गाड़ी दौड़ा रहा था। उसने तुरंत गाड़ी का दरवाजा बंद किया। जितना शौक उसे इन डरावनी कहानियों को सुनने का था उतना ही वो उनसे डरता भी था। एफएम में सुनाई दे रही घटना को अपने साथ होते देख प्रतीक के चेहरे पर डर का भाव साफ दिखाई पड़ रहा था।  उसकी सांसे अचानक तेज़ हो गई। उसकी नज़रे एक काली परछाई पर ठहर गईं, जो उसकी ओर बढ़ती जा रही थी। प्रतीक के दिल की धड़कने साफ साफ सुनाई पड़ रहीं थी।  


डर के समय हमारी दो प्रतिक्रियाएं होती हैं। या तो हम उस डर के मारे चिल्लाते है, भागते है, खुद को बचाने की कोशिश करते है या फिर हम कुछ नहीं करते, बिल्कुल स्तब्ध रह जाते है, हम मन ही मन चीखते है पर वो चिल्लाना हमारे शारीरिक रूप में दिखाई नही देता।

प्रतीक की हालत कुछ ऐसी ही थी। उसे यही लग रहा था कि अब तो उसका भी काम तमाम। 

वो काला साया अब गाड़ी की उस आधी खुली हुई खिड़की के पास खड़ा था जिसे सिगरेट के धुएं को बाहर निकालने के लिए खोला गया था। बाहर खड़े उस साये ने जिसका चेहरा अंधेरे के कारण साफ नज़र नहीं आ रहा था, उसने अपने चेहरे को खिड़की की तरफ झुकाते हुए कार के अंदर बैठे डर के मारे कांप रहे आदमी से कुछ कहना शुरू किया। 

“भईया जी,  ये आपका आगे वाला टायर पंचर पड़ा है। और लगता है बारिश के कारण गाड़ी में पानी जमा हो गया है। कोई बात नही, यहां पास में ही एक ढाबा है। आप हमारे साथ तब तक वहां चलिए। गाड़ी सही कराने का बंदोबस्त हम कर देंगे।


प्रतीक की जान में जान आई। जिसे वो कोई भूत समझ रहा था, असल में तो वो कोई ढाबे में काम करने वाला नौकर निकला। लेकिन अभी भी कहीं न कही वो गाड़ी में सुरक्षित महसूस नही कर रहा था। उसने ये फैसला लिया की वो उस आदमी के साथ ढाबे पर जायेगा। किसी की कंपनी होगी तो डर कम हो जाएगा। इस तरह वो नौकर और प्रतीक ढाबे की ओर चल दिए।


आरजे – “वो लड़का उस अनजान आदमी के साथ उसकी बातो में आकर एक ढाबे की ओर भड़ता है। पर असली बात तो ये थी की उस हाईवे पर कोई ढाबा ही नहीं था।“


By Suyash Tripathi






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