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हमारे बचपन का एडवेंचर, गांव की नहर

By Nisha Shahi


वह गर्मी की चिलचिलाती धूप और ऊपर से गर्मियों की छुट्टियां और हम गांव के बंदर बच्चे सुबह का नाश्ता खा पीकर थोड़ी सी पढ़ाई की वह भी फॉर्मेलिटी के लिए और सीधा भागते नहर की तरफ

जी हां हमारे गांव में उस वक्त एक प्यारी सी नहर बहती थी।

और वह नहर भी अच्छी खासी गहरी हुआ करती थी लेकिन जैसे कि मैंने पहले ही आपसे बताया कि हम बंदर बच्चे हमें उस नहर की गहराई से बिल्कुल भी डर नहीं लगता था आजकल के बच्चे तो स्विमिंग क्लास ज्वाइन करते हैं और कई दिनों तक प्रैक्टिस करने के बाद उन्हें कहीं जाकर थोड़ी बहुत तैराकी आ जाती है लेकिन हम गांव के बच्चे खुद ही मैं खुद ही के उस्ताद। कि आज भी हमें याद नहीं कि हमने कब छलांग लगाई और कब हम तैराक बन गए। नहर की बाउंड्री जिससे कि उस वक्त हम लोग नहर की पटरी कहा करते थे उस पर चढ़कर हम नहर में ‌छलांग लगाते।



और हम बंदर बच्चे आपस में ऊंट पटांग शर्त भी लगाते कि कौन सबसे ज्यादा ऊंची छलांग मारेगा और कौन पानी के अंदर कितनी ज्यादा देर तक सांस रोकेगा या कौन पानी के अंदर कितनी देर तक आंखें खोलेगा

हम तरह-तरह के करतब दिखाते पानी के अंदर कभी उल्टा तैरते तो कभी डुबकी लगाते तो कभी आपस में रेस लगाते और जब ठंड से कांपने लगते तो हमारी हालत देखने लायक होती नीले होंठ और आंखें लाल और फिर उसके बाद हम नहर की पटरी पर बैठ जाया करते धूप का आनंद लेते और जब कपड़े सूख जाते हैं फिर वही छलांग लगाते और फिर अचानक से तेज आवाज आती और वह आवाज होती हमारी मां की की जल्दी से घर आ जाओ बहुत समय हो गया है अब। तो सीधी सी बात यह है कि उस वक्त हम बच्चों को एडवेंचर के लिए कहीं बाहर या किसी समर कैंप में जाने की जरूरत नहीं पड़ती थी । हम तो खुद ही एडवेंचर ढूंढ लेते थे जैसे कि हमारे गांव की नहर हमारे ना हमारे गांव का बाग नदियां तालाब सच कहूं तो वही अच्छे दिन थे। आजकल तो बच्चे घरों में कैद रह जाते हैं


By Nisha Shahi




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