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हमारी मोना

By Bhuwan Chandra Pandey


मोना, तुम्हारी शादी के लिए मैंने ये कुछ लाइनें लिखी थी

और सोचा था की मेंहंदी, संगीत या शादी में कोई टाइम ऐसा मिलता, तो ये माइक पर बोलने का मन था।

पर थोड़ा अस्त व्यस्त होने से ये काम बन नही पाया।

जब आज इसको फिर से पढा।

तो सोचा कि ठीक आज से एक महीने पहले ही तो तुम्हारी शादी हुई।

कितने बिजी थे हम सब क्या बताऊं।

बात यहां से शुरू होती है।

दीपाली , मोना ये नाम पिछले कई सालों से हम और आप बोल रहे है।

अब इस नाम को किसी परिचय की जरूरत भी तो नही, क्योंकि परिवार में हर कोई वाकिफ है।

इस नाम की खुशी से।

बात कुछ सालो पहले की ही है ।

जब इस नाम को दीदी और माइ डियर जीजाजी ने मिलकर एक प्यारी सी गुड़िया को दिया।

जब तुम इस दुनिया में आई।

अपने साथ किस्मत की एक पोटली साथ लाई।

उस समय की धारणा की लड़की हुई है ।

उसको बदल दिया ,तुम कितनी प्यारी लगती ये सब मैं कुछ नहीं बताऊंगा ।

क्योंकि ये आप सब लोग साथी रहे है इस सफर के ।

पर तुमने परिवार को बदल दिया ।

और उस समय पापा ,दादा मिल कर अपने काम व्यापार पर भी ध्यान लगा रहे थे।

काम अब साइकिल से स्कूटर पर आ गया ।

पापा रोज सुबह काम पर जाने से पहले आई इस लक्ष्मी का पूजन करके निकलते ।

और देखते ही देखते मां लक्ष्मी की जो अनुकंपा काम काज मैं हुई,वो अकल्पनीय रही।

पापा स्कूटर से बाइक ,बाइक से कार सब कुछ बदलने लगे।

अपने हर काम से पहले बेटी के चरण चूम कर जाते ।

और इस तरह दीपाली ने लड़खड़ाते कदमों से पापा के काम काज को जो संवारा ।

और पापा ने दादा जी के अनुभव से जो मेहनत की।

वो बोलने में भले ही सेकेंड का समय ले,पर उसको उस मुकाम तक लाने में जो अनुशासन, ऊर्जा और अपने काम में समर्पण दिया।

उसने सालो का समय लिया ।

पर दिन भर की थकान दादा और पापा को मोना के वो तोतले शब्द पल भर में गायब कर देते।

अब परिवार में एकदम छोटी सी बच्ची पूरे परिवार का एक काम बन गई।

कोई महफिल हो या कोई बातचीत पापा मम्मी तो बस यही कहते ।

की मोना आई तो ये हुआ दीपाली आई तो ये हुआ।

पर कही इनको एहसास हुआ तो है

कि न जाने कितने व्रती फलों से इनके घर इस लक्ष्मी का आगमन हुआ है।

समय अपनी करवट लेता रहा।

स्कूल के लिए पहली बार तैयार हुई।

याद है वो बेनसन पब्लिक स्कूल।

स्कूल ड्रेस में तुम कितनी प्यारी लगती थी।

तुम्हारे छोटे छोटे पैर अब बढने लगे।

तुम खेल खेल में बड़ी बड़ी चप्पल पहन कर चलती।

पापा रेंट की शॉप से परमानेंट शॉप ओनर बन गए।

कितना काम किया कितनी भागदौड़ की, खूब कमाया,खूब खर्च किया,खूब सीखा,खूब उन्नति की।

फिर तुम बड़ी हो कर महर्षि स्कूल में आ गई ।

समय बदला ,साल बदले।

अब तुमको नाना-नानी के घर की वो सब बातें याद दिला दूं।

तुम जब छोटी थी अंगूठा चूसती थी।

कभी हम तुमको काफी देर आ आ कहा कर सुलाते ।

कभी तुम्हारे तोतले शब्द से पोटी मंजन कर ली।

कभी सोते समय तुमको पीठ खुजलानी पड़ती थी।

ये सारे गैर जरूरी काम हम मामा लोगो के लिए जरूरी हो जाते थे।

एक तुम्हारे हंसने भर से।

कभी नानी तुमको धूप मैं मालिश करती हो या फिर नहलाना कितना बड़ा वो काम होता था।

की सब वही पर होते थे,और एक पर्व की तरह फोटोग्राफी होती।

नाना का घर तुमको बहुत पसंद आता क्युकी तुम्हारे वहा धूप नहीं आती थी ,जाड़ों मैं।

इसलिए भी तुमको जाड़ा नाना नानी के घर पे बिताना होता होगा।

पर पापा का भी मन कहा लगे तुम्हारे बिना,एक बिजनेस मैन अपनी लक्ष्मी को जल्दी ही ले जा लेता ।

और हमको बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता, पर परिवर्तन संसार का नियम है।

तुम स्कूल मे गिरीश मामा के संग पढ़ी लिखी ।

और फिर स्कूल से निकल कर कॉलेज की और कदम बढाने लगी।




काफी पारिवारिक मंत्रणा के बाद तुमको ग्राफिक ईरा भीमताल में भेजा गया, अकेले घर से बाहर ये तुम्हारा पहला कदम था,तुम भीमताल गई ग्रेजुएट कोर्स किया , फिर बिरला से पोस्ट ग्रेजुएट किया ,लगातार घर के बाहर रह कर जो अपने अन्दर तुमने बदलाव किए वो काबिले तारीफ रहे क्योंकि घर में मम्मी ने जो स्पून फीडिंग की थी , उस से निकल कर बाहर की बनावटी दुनिया मैं खुद को सेट करना,और अपनी एक पहचान बनाना, काम इतना आसान भी नहीं रहा होगा, इन 5सालो में जो पर्सनल, प्रोफेशनल तुमने सीखा तुमको जीवन भर भटकने नही देगा, घर से निकलने पर ये साल जिन दिल पर भारी रहे है वो तुम्हारे मम्मी पापा रहे है, और मां का दिल कुछ अलग ही, हर पल समाज मे असुरक्षा को मन में रखते ये अपने दिन काटते, कभी तुमसे मिलने आते कभी तुम घर आती। ये मां की शिक्षा और दिए संस्कार ही रहे जो तुमने अपने मम्मी पापा के विश्वास को एक पल के लिए भी डिगने नहीं दिया, और घर की देहली तो लांघी पर सपनों की उड़ान भरने के लिए न की परिवार की मर्यादा को नहीं झुकने दिया।ये 5साल जीवन के वो चमकीले 17से21के होते है जब आप खुद किसी दिवा स्वप्न मैं होते है,पर मां का हर पल परछाई की तरह साथ और पिता की आंखों का डर उसने तुमको अपने कर्तव्य पथ से ढिगने नही दिया,फिर तुम दिल्ली आ गई,कुछ नई उर्जा को लेकर,कुछ नया सीखने,कुछ करने के लिए,और दिल्ली ने तुमको सामाजिक होना और आटे दाल का भाव पता करवाया,अब तुम हिसाब किताब करने लग गई थी,की ये महंगा है ये सस्ता, अच्छा लगता था जब बैठे बैठी रोटी नहीं आई बोलने वाले रोटी पकाने की सुद मैं माहिर हो गई,जब भी दिल्ली से तुम आती तुमको कुछ न कुछ रसोई का सीखने को ही मिलता,कभी मम्मी कभी तुम खुद,अब मम्मी पापा की एक ओर सोच उनको सोने नहीं देती,कभी भी मिलो तो वही बात मोना की सादी कर दे क्या 22की हो गई,दूर भी चली गई,थक जाती है,पता नही खाती भी है की नही,यही चलता रहता ,पर दिल्ली दूर नहीं थी,तुम आती रही जाती रही,अपने विश्वास को और मजबूत करती गई,ये आपकी मां और पिता की परवरिस उनके प्यार ,वासल्य, और संस्कार ही है,की उन्होंने तुम्हारे सपनों की उड़ान तो तुमको उड़ने दी पर उस पतग की डोर को कितना भी काम रहा हो कैसी भी परिस्थिति रही हो,कभी भी छोड़ा नहीं।इसलिए तुम इस नीले आकाश मैं अपनी उड़ान निश्चिंतता के साथ उड़ पाई।क्युकी विश्वास की वो डोर मां पापा के अनुभवी मजबूत हाथों मैं थी।फिर पूरे विश्व मैं एक काली महामारी फैली उसकी सनसनी ने सबको चौकाया जो कॉरोना नाम से जानी गई,समय कठिन था मम्मी पापा ने निर्णय लिया की तुमको घर लाया जाए,ताकि पूरा परिवार साथ रहे और इस अनिश्चित काल के उस दानव से घर बैठ कर लड़ सके,जिसका कोई ईलाज ही नही था,अब समय आया दिल्ली से घर वापसी का, लॉकडोन का समय परिवार का साथ,भाई घरवालों से ट्यूनिंग और बड़ने लगी ,मम्मी के साथ रसोई मैं दो पाव और खड़े होने लगे,अभी कुछ सालो पहले जो हर काम मम्मी से पूछ कर करती अब वो घर मैं जरूरी बातों पर सलाह देने लगती,कुछ नई बाते बताती,कुछ कुछ अब दीपाली घरेलू नुस्खे शिखने लगी,पर मां पापा को एक ही सोच है की अब बेटी के हाथ पीले कब हो।कभी नाना जी के घर पर इसका जिक्र होता, तो कभी ताऊजी तो कभी बुआ जी के घर मैं,पर अनुभवों और नई पुरानी पीढ़ी के रामसेतु नानाजी एक ही बात बोलते की कारज धीरे होथ है काहे होथ अधीर या कभी बोलते की होय वही जो राम रची राखा।पर एक बेटी को अपनी बेटी के लिए पिता की ये पंक्तियां समझ नही आती।वो हमेशा यही कहती की अब ढूंढे तो करते करते टाइम भी तो लगेगा। सच मैं मां बाप होना इतना आसान भी नहीं है।पर आप लोग इतने खुसकिस्मती माता पिता हो की आपके बच्चे आपकी लगाम पर है ,आज के इस समय मैं जब बच्चे मां बाप को ये सोचने ही नहीं दे रहे की हमारी सादी की सोचो,आप सोच रहे हो ये आपके अपने बुजुर्गो के प्रति आस्था उनके प्रति आपका समर्पण भाव आज आशीर्वाद बनकर बरस रहा है की आप अपनी बेटी के लिए जीवन का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए पति पत्नी विचार कर रहे हो।हर कदम पर आपके संस्कारों विचारो को बेटी अपने दिल दिमाग मैं लेकर 2013 से घर के बाहर अपनी आभा को लेकर आपके विश्वास को बनाए हुए हैं। 2021मै कोविद की वैक्सीशन आने पर माहौल थोड़ा बहुत डरावने से कम डर वाला हुआ,पर अंधेरा दूर नहीं हुआ था,फिर दीपाली ने दिल्ली का सफर दुबारा करने की परिवार के आगे मंशा की,बचपन से जिस बच्चे को कभी किसी भी विषयवस्तु के लिए जो मां बाप मना नही कर पाए वो अब भी क्या कहते, क्योंकि इस बार जो मोना के साथ समय व्यतीत हुआ वो मां बेटी ने एक दोस्त की तरह जिए,पापा को भी मोना काफी हद तक प्यारी नौकजोक से अपना मुरीद बना लेती ।कुल मिलाकर ये समय इस पूरे परिवार के लिए सिर्फ एक दूसरे के लिए समय ही समय देने मैं बीता,इस बार मम्मी पापा भाई किसी को भी मन नहीं था की दीपाली दिल्ली जाए ,पर सब कुछ खामोशी लिए तुम दिल्ली आ ही गई और मम्मी पापा को एक काम देकर की मैं अब सादी करुगी आपदेखो,तब तक मैं जॉब कर लेती हू।विश्वास की डोर ,अपनी परवासिर पर संकल्पित और बुजुर्गो के आशीर्वाद ने अब इस काम पर लगने के लिए मम्मी पापा को लगा दिया,अब उन्होंने बेटी के दिए संकेत को एक साकेत बनाने के लिए खोज शुरू कर दी,आपको ये सारी बातें सुनने मैं भले ही बहुत अजीब लग रही हो,पर ये सब मैंने खुद महसूस की है वही लिखता चला जा रहा हु।दीदी और जीजाजी की खोज को आखिरकार जून 2021 मैं एक अल्प विराम मिला जो दिल्ली मैं जुलाई 2021पर एक पूर्ण विराम मैं परिवर्तित हुआ।बंगलौर से मुझको दिल्ली के लिए जीजाजी ने बुलाया की एक बार आ जा ,हल्द्वानी से दीदी जीजाजी ताऊजी बुआ आई और मिलकर हम सब लोगो ने वहा पल भर मैं दीपाली और अंकुर के एक सूत्री हो जाने के लिए हामी भरी।और फिर दीपांकुर बन गए,अंकुर और उसका परिवार कितना अनुसासित लगा उनके घर पर 7घंटे के प्रवास के दौरान,मैं पूरे समय उनके घर पर हर काम हर वस्तु को इतने अचरज से देख रहा था की मेरे लिए ये सब कुछ विश्वास कर पाना बड़ा आसान नहीं हो रहा था की इस 21 वी शताब्दी मैं इतना सरल, अनुससित, मंत्रमुद्ध विचार,अंकुर के माता पिता के चेहरे का ओज और चमक,उनका अपनापन,उनकी रसमय बाते करते करते लगा ही नहीं की हम इस परिवार मै आज पहली बार मिले हैं, खास मुझको तो ये लगा की इस परिवार से कुछ पहले का नाता है,मन इतना प्रफुल था की क्या कहूं,मुझको लगा की जैसे मैं किसी मंदिर मैं कुछ पल संतों के सानिध्य से निकल कर आया हु।और इस प्रकार किरन और भुवन की वैभव लक्ष्मी को नारायण मिल गए ,इतनी बढ़िया जोड़ी दोनो के बारे मैं बात करने के बाद उस बातचीत को बस करते ही रहने का मन करे।फिर बातचीत और कामों का सिलसिला शुरू हुआ।और 19nov को सगाई का दिन निर्धारित किया गया,बहुत दौड़ धूप भाई तन्मय की ओर से भी हुई,पर मैंने खुद इस तरह से अनुभव किया तन्नू भी अब काफी मौचोर हो गया ,किस तरह से इसने सगाई के काम को बिना परेशान हुए निभाया,देखकर मज़ा आ गया।और फिर बातों, कार्यक्रम ,टेंट,जानवासे, बैंड,होटल ,कपड़ो, लिफाफो, कार्ड, डेकोरेशन,हल्दी,मेहदी, पण्डित जी इन सब की बातों का आनंद लेते लेते 10 feb की तारीख तय की गई जिसमें तुमको और अंकुर को हिंदू सभ्यता के अनुसार सामाजिक रूप से पति पत्नी का दर्जा मिलने वाला था ।धीरे धीरे इंतजार करते करते बैंगलोर से बरेली की फ्लाइट लेने का दिन आ गया,और हम हल्द्वानी पहुंच गए तुमको एक बात बोलूं इन 18सालो मैं बाहर से हल्द्वानी हम लोग कई बार आए पर इस बार कुछ अलग सी मस्ती ,अलग सा उलास मन मैं था,।मैने तो अपनी सोपिंग मैं रूमाल तक नया लिया था।और हल्द्वानी मैं बाते करते डांस की प्रैक्टिस करते कौन सा फंक्शन कैसे होगा इन सब पर चर्चा करते पता ही नही चला कब 10feb आ गई।हम इस शुभ अवसर और मुहूर्त पर इस पूरे परिवार के साथ लक्ष्मी गार्डन पहुंच गए , सच कहूं तो उस दिन तुम सबसे जादा बिजी रही कभी मेकओवर,कभी फोटोग्राफर,और ड्रोन व्यू,तो कभी फैन व्यू,इन सबके ऊपर मोबाइल से फोटो लेने वालो की भीड़।डांस मौज मस्ती करते हुए संगीत पूरा हुआ और तुमको फिर से मेकओवर जाना था,याद है जब तुमको फोटोग्राफर के बीच ही मोहित को बोलकर कुछ खाना के आइटम मगवाया था,वो भी ठीक से नहीं खा पाई आधा चिला तुमने चिडियो के लिए छोड़ दिया।और फिर तुम मेकओवर और मैं पप्पू मामा और छोटे ताऊजी जानवासे की तैयारियों मैं जुट गए।हमने थोड़ा सा समय लिया और संगीत की ड्रेस चेंज करके सूट पहन लिया।फिर हम डट गए केके के रेस्टोरेंट पर,और पल पल की अपडेट जीजाजी को देते रहे, उस दिन दीदी और जीजाजी को मैंने पहली बार थोड़ा परेशान सा देखा,होना स्वाभाविक भी था आखिकार अंतिम जवाबदेही हर काम मैं उनकी और दीदी की ही तो थी।हम लोग तो महज एक सिपाही की तरह अपनी भूमिका अदा कर रहे थे।वहा भाई तन्मय बिजी है फोटो फ्रेम रेडी करने मैं,वेलकम रिबन लगानें और डिनर को फाइनल लुक देने मैं,और फिर वो पल आ गया जिसके लिए हम केके मैं अपनी ड्यूटी दे रहे थे।बारात आ गई और बारात की भीड़ मैं हम चार लोग खो से गए ये तो बिलकुल अजीब सा माहौल हो गया जो हमारी कल्पना मैं था ही नही,हम अंकुर और मम्मी पापा को कुर्सी भी नही दिला पाए,जबकि हमने आप चारो के लिए डबल सोफा और टेबल रिजर्व कर रखा था,पर वहा पर सारे इंतजाम धरे रह गए,फिर पता नही कहा से ताऊजी एक सोफा अंकुर के लिए जुगाड कर लाए।अब ठीक था नारायण को आसान मिल गया वो सब संभाल लेगी।और सभी लोगो को करबद्ध होकर निवेदन करते करते वो परिस्थिति कुछ देर बाद काबू मैं आ गई।जिसमें बहुत हद तक अंकुर के मम्मी पापा का सहयोग रहा,और इस तरह बारात को हल्का जलपान करवा कर हमने लक्ष्मी गार्डन के लिए रवाना कर दिया,और दीदी जीजाजी को अपडेट भी कर दिया। केके को बाकी और चीजों की जिमेदारी देकर हम भी विवाह समारोह पर पहुंच कर बारात के स्वागत के लिए फूलमाला लेकर खड़े हो गए,और इस तरह वधू समाज ने नारायण की पहली छवि देखी।फिर द्वार पर जो भी रस्में होती है वो पूरी हुई और तन्नू भाई अपने जीजु को छतरी ओढ़ाकर धुलियार्ग रस्म के लिए वहा तक लाए जहा पर वो सब पंडितजी द्वारा संचालित किया जाना था,वहा पर जो मेरा मानना है दूल्हा और दुल्हन के पिता ये सर्वाधिक नजरों मैं और कैमरों की नजरों मैं होते है।पर अंकुर और जीजाजी ने उस पल को एक सुंदर कड़ी मैं पिरोकर रखा दिया।और सबसे मनमोहक प्रस्तुति समूचे पाटनी परिवार द्वारा मंत्रोचार की अदभुत झलकियां जो मेरी जानकारी मैं सायद ही किसी धुलियर्ग मैं देखने को मिल पाएगी या कभी मिली हो।और फिर विवाह के अन्य कार्यक्रम आयोजित हुए,जैसे जयमाला, मंच पर विराजमान अंकुर और दीपाली की छवि लक्ष्मीनारायण सी प्रतीक हो रही थी।सभी लोगो ने मंच पर जाकर नव विवाहित जोड़े को आशीर्वाद दिया और आशीर्वाद लिया ।फिर खाना पीना और विवाह की सारी रस्में बड़े ही सांतिपुरक ढग से हुई।और प्रातः काल की वो अविस्मरणीय बेला aa गई जब तुम हम सब से पराई हो गई ,और एक दूसरे से छिपते छिपाते आसू पोचते सोचा था की रोउगा नही पर तुम गले लगी और दिल दरिया बनकर बह निकला ,आज भी इन लाइनों को लिखते हुए आसू छलक आए,क्या करे तुम हो ही इतनी प्यारी ,विदाई की बेला जिन दो ह्रदय पर भारी पड़ी ,वो दीदी और जीजाजी रहे।जो चाह कर भी अपने कलेजे के टुकड़े को विदा कर पाने मैं समर्थ नहीं थे,पर विधि का विधान है,की तुमको दो कुल का उद्धार करना है,हमारा अधिकार तुम पर यही तक का था,पर वो सब अविस्मरणीय यादें हमको सदेव तरोताजा महसूस करती रहेंगी ,अब तुम एक नए रूप मैं प्रवेश करने जा रही हो,अपने नए घर मैं हमेशा अंकुर मम्मी पापा और भाई के हिसाब से चल कर पूरे परिवार को अपने सेवा भाव से बांधे रहना,जैसा तुम पर अटूट विश्वास है मेरा,और मम्मी पापा के संस्कारों को दिल्ली की आधुनिकता मैं कमजोर न पड़ने देना।आज तुम्हारे विवाह को एक महीना पूर्ण हो गया है और तुम ससुराल मैं बहुत खुशी से जीवन बिता रही हो,जैसा तुमसे बात करके पता चलता है,एक विशेस बात तुमको बताना चाहता हूं की अंकुर के पापा अनुभवों की एक खान है इन से जितना हो पाए नॉलेज बटोर लेना,क्युकी जुलाई 2021 से तुम्हारे घूमने तक की प्लानिंग को जिस तरह से बखूबी उन्होंने एक सिस्टम मैं बुन कर तुम्हारे सामने रखा वो काबिले तारीफ़ है,और मम्मी जी से खाना बनाना,साधना ,योग , मंत्र और मेहमान नवाजी का पाठ जरूर पढ़ना,बाकी तुम खुद बहुत हद तक समझ दार हो,तो आईए जो लोग इस ब्लॉग को पड़ या सुन रहे हो उनसे निवेदन है की एक बार इस नए जोड़े को आकाश भर शुभकामनाएं देते है, तथा दोनो तरफ के परिजनों से एक बार जोरदार तालियों के माहौल को और भी खुशनुमा रंग देने की गुजारिश करता हु। धनयवाद ❤️हाई मोना तुम्हारी सादी के लिए मैंने ये कुछ लाइनें लिखी थी और सोचा था की मेंहदी, संगीत या सादी मैं कोई टाइम ईसा मिलता तो ये माइक पर बोलने का मन था,पर थोड़ा अस्त व्यस्त होने ये काम बन नही पाया।और जब आज इसको फिर से सुना तो सोचा की ठीक आज से एक महीने पहिले ही तो तुम्हारी सादी हुई कितने बिजी थे हम सब ,क्या बताऊं। सुनो अब तो सब को सुनना था ।बात यहां से शुरू होती है। दीपाली , मोना ये नाम पिछले कई सालों से हम और आप बोल रहे है,अब इस नाम को किसी परिचय की जरूरत भी तो नही,क्युकी परिवार मैं हर कोई वाकिफ है इस नाम की खुशी से बात कुछ सालो पहले की ही है जब इस नाम को दीदी और माय डियर जीजाजी ने मिलकर एक प्यारी सी गुड़िया को दिया,जब तुम इस दुनिया मैं आई अपने साथ किस्मत की एक पोटली साथ लाई , उस समय की धारणा की लड़की हुई है उसको बदल दिया ,तुम कैसी रही कितनी प्यारी लगती ये सब मैं कुछ नहीं बताऊंगा क्युकी ये आप सब लोग साथी रहे है इस सफर के ,पर तुमने परिवार को बदल दिया और उस समय पापा ,दादा मिल कर अपने काम व्यापार पर भी ध्यान लगा रहे थे,काम अब साइकिल से स्कूटर पर आ गया ,पापा दादा रोज सुबह काम पर जाने से पहले आई इस लक्ष्मी का पूजन करके निकलते ,और देखते ही देखते मां लक्ष्मी की जो अनुकंपा काम काज मैं हुई,वो अकल्पनीय रही।पापा स्कूटर से बाइक ,बाइक से कार सब कुछ बदलने लगे ,अपने हर काम से पहले बेटी के चरण चूम कर जाते ,और इस तरह दीपाली ने लड़खड़ाते कदमों से पापा के काम काज को जो संवारा ,और पापा ने दादा जी के अनुभव से जो मेहनत की ,वो बोलने मैं भले ही सेकेंड का समय ले,पर उसको उस मुकाम तक लाने मैं जो अनुसासन, ऊर्जा,और अपने काम मैं समर्पण दिया,उसने सालो का समय लिया।पर दिन भर की थकान दादा और पापा को मोना के वो तोतले शब्द पल भर मैं गायब कर देते।अब परिवार मै एकदम छोटी सी बच्ची पूरे परिवार का एक काम बन गई।कोई महफिल हो या कोई बातचीत पापा मम्मी तो बस यही कहते की मोना आई तो ये हुआ दीपाली आई तो ये हुआ।पर कही इनको अहसास हुआ तो है की न जाने कितने वर्ती फलों से इस लक्ष्मी का आगमन हुआ है।समय अपनी करवट लेता रहा ,तुम स्कूल के लिए पहली बार तैयार हुआ याद है वो बेनसन पब्लिक स्कूल।स्कूल ड्रेस में तुम कितनी प्यारी लगती थी।तुम्हारे छोटे छोटे पैर अब बड़ने लगे तुम खेल खेल मैं बड़ी बड़ी चप्पल पहन कर चलती,पापा रेंट की शॉप से परमानेंट शॉप ओनर बन गए,कितना काम किया कितनी भागदूड़ की,खूब कमाया खूब खर्चा,खूब सीखा,खूब उन्नति की।फिर तुम बड़ी हो कर महर्षि स्कूल मैं आ गई ,समय बदला ,साल बदले,तुमको नाना नानी के घर की वो सब बाते याद दिला दूं।तुम जब छोटी थी थम चूस ती थी,कभी हम तुमको काफी देर आ आ कहा कर सुलाते ,कभी तुम्हारे तोतले शब्द से पोटी मंजन कर ली,कभी सोते समय तुमको पीठ खुजलानी पड़ती थी,ये सारे गैर जरूरी काम हम मामा लोगो के लिए जरूरी हो जाते थे ,एक तुम्हारे हंसने भर से।कभी नानी तुमको धूप मैं मालिश करती हो या फिर नहलाना कितना बड़ा वो काम होता था की सब वही पर होते थे,और एक पर्व की तरह फोटोग्राफी होती, नाना का घर तुमको बहुत पसंद आता क्युकी तुम्हारे वहा धूप नहीं आती थी जाड़ों मैं।इसलिए भी तुमको जाड़ा नाना नानी के घर पे बिताना होता होगा। पर पापा का भी मन कहा लगे तुम्हारे बिना,एक बिजनेस मैन अपनी लक्ष्मी को जल्दी ही ले जा लेता।और हमको बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता,पर परिवर्तन संसार का नियम है, तुम स्कूल मैं गिरीश मामा के संग पढ़ी लिखी और फिर निकल कर कॉलेज की और कदम बड़ाने लगी,काफी पारिवारिक मंत्राणा के बाद तुमको ग्राफिक ईरा भीमताल मैं भेजा गया,अकेले घर से बाहर ये तुम्हारा पहला कदम था,तुम भीमताल गई ग्रेजुएट कोर्स किया ,फिर बिरला से पोस्ट ग्रेजुएट किया ,लगातार घर के बाहर रह कर जो अपने अन्दर तुमने बदलाव किए वो काबिले तारीफ रहे क्युकी घर मैं मम्मी ने जो स्पून फीडिंग की थी , उस से निकल कर बाहर की बनावटी दुनिया मैं खुद को सेट करना,और अपनी एक पहचान बनाना,काम इतना आसान भी नहीं रहा होगा,इन 5सालो मैं जो पर्सनल, प्रोफेसनल तुमने सिखा तुमको जीवन भर भटकने नही देगा,घर से निकलने पर ये साल जिन दिल पर भारी रहे है वो तुम्हारे मम्मी पापा रहे है,और मां का दिल कुछ अलग ही, हर पल समाज मैं असुरक्षा को मन मैं रखते ये अपने दिन काटते,कभी तुमसे मिलने आते कभी तुम घर आती।ये मां की शिक्षा और दिए संस्कार ही रहे जो तुमने अपने मम्मी पापा के विश्वास को एक पल के लिए भी डिगने नहीं दिया,और घर की देहली तो लाघिः पर सपनों की उड़ान भरने के लिए न की परिवार की मर्यादा को नहीं झुकने दिया।ये 5साल जीवन के वो चमकीले 17से21के होते है जब आप खुद किसी दिवा स्वप्न मैं होते है,पर मां का हर पल परछाई की तरह साथ और पिता की आंखों का डर उसने तुमको अपने कर्तव्य पथ से ढिगने नही दिया,फिर तुम दिल्ली आ गई,कुछ नई उर्जा को लेकर,कुछ नया सीखने,कुछ करने के लिए,और दिल्ली ने तुमको सामाजिक होना और आटे दाल का भाव पता करवाया,अब तुम हिसाब किताब करने लग गई थी,की ये महंगा है ये सस्ता, अच्छा लगता था जब बैठे बैठी रोटी नहीं आई बोलने वाले रोटी पकाने की सुद मैं माहिर हो गई,जब भी दिल्ली से तुम आती तुमको कुछ न कुछ रसोई का सीखने को ही मिलता,कभी मम्मी कभी तुम खुद,अब मम्मी पापा की एक ओर सोच उनको सोने नहीं देती,कभी भी मिलो तो वही बात मोना की सादी कर दे क्या 22की हो गई,दूर भी चली गई,थक जाती है,पता नही खाती भी है की नही,यही चलता रहता ,पर दिल्ली दूर नहीं थी,तुम आती रही जाती रही,अपने विश्वास को और मजबूत करती गई,ये आपकी मां और पिता की परवरिस उनके प्यार ,वासल्य, और संस्कार ही है,की उन्होंने तुम्हारे सपनों की उड़ान तो तुमको उड़ने दी पर उस पतग की डोर को कितना भी काम रहा हो कैसी भी परिस्थिति रही हो,कभी भी छोड़ा नहीं।इसलिए तुम इस नीले आकाश मैं अपनी उड़ान निश्चिंतता के साथ उड़ पाई।क्युकी विश्वास की वो डोर मां पापा के अनुभवी मजबूत हाथों मैं थी।फिर पूरे विश्व मैं एक काली महामारी फैली उसकी सनसनी ने सबको चौकाया जो कॉरोना नाम से जानी गई,समय कठिन था मम्मी पापा ने निर्णय लिया की तुमको घर लाया जाए,ताकि पूरा परिवार साथ रहे और इस अनिश्चित काल के उस दानव से घर बैठ कर लड़ सके,जिसका कोई ईलाज ही नही था,अब समय आया दिल्ली से घर वापसी का, लॉकडोन का समय परिवार का साथ,भाई घरवालों से ट्यूनिंग और बड़ने लगी ,मम्मी के साथ रसोई मैं दो पाव और खड़े होने लगे,अभी कुछ सालो पहले जो हर काम मम्मी से पूछ कर करती अब वो घर मैं जरूरी बातों पर सलाह देने लगती,कुछ नई बाते बताती,कुछ कुछ अब दीपाली घरेलू नुस्खे शिखने लगी,पर मां पापा को एक ही सोच है की अब बेटी के हाथ पीले कब हो।कभी नाना जी के घर पर इसका जिक्र होता, तो कभी ताऊजी तो कभी बुआ जी के घर मैं,पर अनुभवों और नई पुरानी पीढ़ी के रामसेतु नानाजी एक ही बात बोलते की कारज धीरे होथ है काहे होथ अधीर या कभी बोलते की होय वही जो राम रची राखा।पर एक बेटी को अपनी बेटी के लिए पिता की ये पंक्तियां समझ नही आती।वो हमेशा यही कहती की अब ढूंढे तो करते करते टाइम भी तो लगेगा। सच मैं मां बाप होना इतना आसान भी नहीं है।पर आप लोग इतने खुसकिस्मती माता पिता हो की आपके बच्चे आपकी लगाम पर है ,आज के इस समय मैं जब बच्चे मां बाप को ये सोचने ही नहीं दे रहे की हमारी सादी की सोचो,आप सोच रहे हो ये आपके अपने बुजुर्गो के प्रति आस्था उनके प्रति आपका समर्पण भाव आज आशीर्वाद बनकर बरस रहा है की आप अपनी बेटी के लिए जीवन का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए पति पत्नी विचार कर रहे हो।हर कदम पर आपके संस्कारों विचारो को बेटी अपने दिल दिमाग मैं लेकर 2013 से घर के बाहर अपनी आभा को लेकर आपके विश्वास को बनाए हुए हैं। 2021मै कोविद की वैक्सीशन आने पर माहौल थोड़ा बहुत डरावने से कम डर वाला हुआ,पर अंधेरा दूर नहीं हुआ था,फिर दीपाली ने दिल्ली का सफर दुबारा करने की परिवार के आगे मंशा की,बचपन से जिस बच्चे को कभी किसी भी विषयवस्तु के लिए जो मां बाप मना नही कर पाए वो अब भी क्या कहते, क्योंकि इस बार जो मोना के साथ समय व्यतीत हुआ वो मां बेटी ने एक दोस्त की तरह जिए,पापा को भी मोना काफी हद तक प्यारी नौकजोक से अपना मुरीद बना लेती ।कुल मिलाकर ये समय इस पूरे परिवार के लिए सिर्फ एक दूसरे के लिए समय ही समय देने मैं बीता,इस बार मम्मी पापा भाई किसी को भी मन नहीं था की दीपाली दिल्ली जाए ,पर सब कुछ खामोशी लिए तुम दिल्ली आ ही गई और मम्मी पापा को एक काम देकर की मैं अब सादी करुगी आपदेखो,तब तक मैं जॉब कर लेती हू।विश्वास की डोर ,अपनी परवासिर पर संकल्पित और बुजुर्गो के आशीर्वाद ने अब इस काम पर लगने के लिए मम्मी पापा को लगा दिया,अब उन्होंने बेटी के दिए संकेत को एक साकेत बनाने के लिए खोज शुरू कर दी,आपको ये सारी बातें सुनने मैं भले ही बहुत अजीब लग रही हो,पर ये सब मैंने खुद महसूस की है वही लिखता चला जा रहा हु।दीदी और जीजाजी की खोज को आखिरकार जून 2021 मैं एक अल्प विराम मिला जो दिल्ली मैं जुलाई 2021पर एक पूर्ण विराम मैं परिवर्तित हुआ।बंगलौर से मुझको दिल्ली के लिए जीजाजी ने बुलाया की एक बार आ जा ,हल्द्वानी से दीदी जीजाजी ताऊजी बुआ आई और मिलकर हम सब लोगो ने वहा पल भर मैं दीपाली और अंकुर के एक सूत्री हो जाने के लिए हामी भरी।और फिर दीपांकुर बन गए,अंकुर और उसका परिवार कितना अनुसासित लगा उनके घर पर 7घंटे के प्रवास के दौरान,मैं पूरे समय उनके घर पर हर काम हर वस्तु को इतने अचरज से देख रहा था की मेरे लिए ये सब कुछ विश्वास कर पाना बड़ा आसान नहीं हो रहा था की इस 21 वी शताब्दी मैं इतना सरल, अनुससित, मंत्रमुद्ध विचार,अंकुर के माता पिता के चेहरे का ओज और चमक,उनका अपनापन,उनकी रसमय बाते करते करते लगा ही नहीं की हम इस परिवार मै आज पहली बार मिले हैं, खास मुझको तो ये लगा की इस परिवार से कुछ पहले का नाता है,मन इतना प्रफुल था की क्या कहूं,मुझको लगा की जैसे मैं किसी मंदिर मैं कुछ पल संतों के सानिध्य से निकल कर आया हु।और इस प्रकार किरन और भुवन की वैभव लक्ष्मी को नारायण मिल गए ,इतनी बढ़िया जोड़ी दोनो के बारे मैं बात करने के बाद उस बातचीत को बस करते ही रहने का मन करे।फिर बातचीत और कामों का सिलसिला शुरू हुआ।और 19nov को सगाई का दिन निर्धारित किया गया,बहुत दौड़ धूप भाई तन्मय की ओर से भी हुई,पर मैंने खुद इस तरह से अनुभव किया तन्नू भी अब काफी मौचोर हो गया ,किस तरह से इसने सगाई के काम को बिना परेशान हुए निभाया,देखकर मज़ा आ गया।और फिर बातों, कार्यक्रम ,टेंट,जानवासे, बैंड,होटल ,कपड़ो, लिफाफो, कार्ड, डेकोरेशन,हल्दी,मेहदी, पण्डित जी इन सब की बातों का आनंद लेते लेते 10 feb की तारीख तय की गई जिसमें तुमको और अंकुर को हिंदू सभ्यता के अनुसार सामाजिक रूप से पति पत्नी का दर्जा मिलने वाला था ।धीरे धीरे इंतजार करते करते बैंगलोर से बरेली की फ्लाइट लेने का दिन आ गया,और हम हल्द्वानी पहुंच गए तुमको एक बात बोलूं इन 18सालो मैं बाहर से हल्द्वानी हम लोग कई बार आए पर इस बार कुछ अलग सी मस्ती ,अलग सा उलास मन मैं था,।मैने तो अपनी सोपिंग मैं रूमाल तक नया लिया था।और हल्द्वानी मैं बाते करते डांस की प्रैक्टिस करते कौन सा फंक्शन कैसे होगा इन सब पर चर्चा करते पता ही नही चला कब 10feb आ गई।हम इस शुभ अवसर और मुहूर्त पर इस पूरे परिवार के साथ लक्ष्मी गार्डन पहुंच गए , सच कहूं तो उस दिन तुम सबसे जादा बिजी रही कभी मेकओवर,कभी फोटोग्राफर,और ड्रोन व्यू,तो कभी फैन व्यू,इन सबके ऊपर मोबाइल से फोटो लेने वालो की भीड़।डांस मौज मस्ती करते हुए संगीत पूरा हुआ और तुमको फिर से मेकओवर जाना था,याद है जब तुमको फोटोग्राफर के बीच ही मोहित को बोलकर कुछ खाना के आइटम मगवाया था,वो भी ठीक से नहीं खा पाई आधा चिला तुमने चिडियो के लिए छोड़ दिया।और फिर तुम मेकओवर और मैं पप्पू मामा और छोटे ताऊजी जानवासे की तैयारियों मैं जुट गए।हमने थोड़ा सा समय लिया और संगीत की ड्रेस चेंज करके सूट पहन लिया।फिर हम डट गए केके के रेस्टोरेंट पर,और पल पल की अपडेट जीजाजी को देते रहे, उस दिन दीदी और जीजाजी को मैंने पहली बार थोड़ा परेशान सा देखा,होना स्वाभाविक भी था आखिकार अंतिम जवाबदेही हर काम मैं उनकी और दीदी की ही तो थी।हम लोग तो महज एक सिपाही की तरह अपनी भूमिका अदा कर रहे थे।वहा भाई तन्मय बिजी है फोटो फ्रेम रेडी करने मैं,वेलकम रिबन लगानें और डिनर को फाइनल लुक देने मैं,और फिर वो पल आ गया जिसके लिए हम केके मैं अपनी ड्यूटी दे रहे थे।बारात आ गई और बारात की भीड़ मैं हम चार लोग खो से गए ये तो बिलकुल अजीब सा माहौल हो गया जो हमारी कल्पना मैं था ही नही,हम अंकुर और मम्मी पापा को कुर्सी भी नही दिला पाए,जबकि हमने आप चारो के लिए डबल सोफा और टेबल रिजर्व कर रखा था,पर वहा पर सारे इंतजाम धरे रह गए,फिर पता नही कहा से ताऊजी एक सोफा अंकुर के लिए जुगाड कर लाए।अब ठीक था नारायण को आसान मिल गया वो सब संभाल लेगी।और सभी लोगो को करबद्ध होकर निवेदन करते करते वो परिस्थिति कुछ देर बाद काबू मैं आ गई।जिसमें बहुत हद तक अंकुर के मम्मी पापा का सहयोग रहा,और इस तरह बारात को हल्का जलपान करवा कर हमने लक्ष्मी गार्डन के लिए रवाना कर दिया,और दीदी जीजाजी को अपडेट भी कर दिया। केके को बाकी और चीजों की जिमेदारी देकर हम भी विवाह समारोह पर पहुंच कर बारात के स्वागत के लिए फूलमाला लेकर खड़े हो गए,और इस तरह वधू समाज ने नारायण की पहली छवि देखी।फिर द्वार पर जो भी रस्में होती है वो पूरी हुई और तन्नू भाई अपने जीजु को छतरी ओढ़ाकर धुलियार्ग रस्म के लिए वहा तक लाए जहा पर वो सब पंडितजी द्वारा संचालित किया जाना था,वहा पर जो मेरा मानना है दूल्हा और दुल्हन के पिता ये सर्वाधिक नजरों मैं और कैमरों की नजरों मैं होते है।पर अंकुर और जीजाजी ने उस पल को एक सुंदर कड़ी मैं पिरोकर रखा दिया।और सबसे मनमोहक प्रस्तुति समूचे पाटनी परिवार द्वारा मंत्रोचार की अदभुत झलकियां जो मेरी जानकारी मैं सायद ही किसी धुलियर्ग मैं देखने को मिल पाएगी या कभी मिली हो।और फिर विवाह के अन्य कार्यक्रम आयोजित हुए,जैसे जयमाला, मंच पर विराजमान अंकुर और दीपाली की छवि लक्ष्मीनारायण सी प्रतीक हो रही थी।सभी लोगो ने मंच पर जाकर नव विवाहित जोड़े को आशीर्वाद दिया और आशीर्वाद लिया ।फिर खाना पीना और विवाह की सारी रस्में बड़े ही सांतिपुरक ढग से हुई।और प्रातः काल की वो अविस्मरणीय बेला aa गई जब तुम हम सब से पराई हो गई ,और एक दूसरे से छिपते छिपाते आसू पोचते सोचा था की रोउगा नही पर तुम गले लगी और दिल दरिया बनकर बह निकला ,आज भी इन लाइनों को लिखते हुए आसू छलक आए,क्या करे तुम हो ही इतनी प्यारी ,विदाई की बेला जिन दो ह्रदय पर भारी पड़ी ,वो दीदी और जीजाजी रहे।जो चाह कर भी अपने कलेजे के टुकड़े को विदा कर पाने मैं समर्थ नहीं थे,पर विधि का विधान है,की तुमको दो कुल का उद्धार करना है,हमारा अधिकार तुम पर यही तक का था,पर वो सब अविस्मरणीय यादें हमको सदेव तरोताजा महसूस करती रहेंगी ,अब तुम एक नए रूप मैं प्रवेश करने जा रही हो,अपने नए घर मैं हमेशा अंकुर मम्मी पापा और भाई के हिसाब से चल कर पूरे परिवार को अपने सेवा भाव से बांधे रहना,जैसा तुम पर अटूट विश्वास है मेरा,और मम्मी पापा के संस्कारों को दिल्ली की आधुनिकता मैं कमजोर न पड़ने देना।आज तुम्हारे विवाह को एक महीना पूर्ण हो गया है और तुम ससुराल मैं बहुत खुशी से जीवन बिता रही हो,जैसा तुमसे बात करके पता चलता है,एक विशेस बात तुमको बताना चाहता हूं की अंकुर के पापा अनुभवों की एक खान है इन से जितना हो पाए नॉलेज बटोर लेना,क्युकी जुलाई 2021 से तुम्हारे घूमने तक की प्लानिंग को जिस तरह से बखूबी उन्होंने एक सिस्टम मैं बुन कर तुम्हारे सामने रखा वो काबिले तारीफ़ है,और मम्मी जी से खाना बनाना,साधना ,योग , मंत्र और मेहमान नवाजी का पाठ जरूर पढ़ना,बाकी तुम खुद बहुत हद तक समझ दार हो,तो आईए जो लोग इस ब्लॉग को पड़ या सुन रहे हो उनसे निवेदन है की एक बार इस नए जोड़े को आकाश भर शुभकामनाएं देते है, तथा दोनो तरफ के परिजनों से एक बार जोरदार तालियों के माहौल को और भी खुशनुमा रंग देने की गुजारिश करता हु। धन्यवाद ❤️


By Bhuwan Chandra Pandey




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