हमारा एम एल ए कैसा हो
- Hashtag Kalakar
- Oct 18
- 3 min read
By Ravi Ranjan Kumar
हमारा एम एल ए कैसा हो यह विषय हर्षोल्लास का होना चाहिए किंतु ये एक चिंता का विषय है और चिंता करना हमारे डीएनए में है।
"भारत ने इजरायल पर ईरान के हमले पर गहरी चिंता जताई है अभी चिंता की गहराई नापी जा रही है, जब नप जावेगी तो बताएंगे। फिलहाल के लिए हमारा विदेश मंत्रालय बयान जारी कर देती है की हम इजरायल और ईरान के बीच बढ़ती शत्रुता से चिंतित हैं, जिससे क्षेत्र में शांति और सुरक्षा को खतरा हो गया है। हम तत्काल प्रभाव को कम करने, संयम बरतने, हिंसा से पीछे हटने और कूटनीति के रास्ते को अपनाने का आह्वाहन करते हैं। हम मौजूदा हालात पर अपने चिंतारूपी दूरबीन से करीबी नजर बनाए हुए हैं। दूसरे देश दूरबीन बनाते हैं उल्का पिंड और ग्रह नक्षत्रों को देखने के लिए हम बनाते हैं हिंसक देशों पर करीबी नजर बनाए रखने के लिए।" तो ये थी राष्ट्रीय चिंता का विषय और यहां जो हम कर रहे हैं वो है एक क्षेत्रीय चिंता का विषय। और हो भी क्यों नहीं क्योंकि आजकल के कैंडिडेट मायावी हो गए हैं। ये माया का चाइनीज जाल बिछा के आम आदमी को ठग लेते हैं।
आजकल राजनीतिक पार्टियों में कैंडिडेट के साथ घोषणा पत्र लॉन्च करने का चलन सा हो गया है। मासूम जनता आंख गड़ाए इन घोषणा पत्रों का इंतजार करती हैं। घोषणा पत्र एक ऐसा पत्र है जिसे आपको खुले मन से पढ़ना है आंखें बंद करके!!! आंखें बंद होते ही अस्पतालें बनने लगेंगी!! सड़कें, नालियां ,नहरें सभी के जरूरत के हिसाब से बनी मिलेंगी, सरकारें इतनी अनाज पैदा करेंगी कि किसान को कुछ नहीं करना है बस उसे खाना है, राजनीतिक दल "आई वी एफ " के माध्यम से इतनी नौकरियां पैदा करेंगे कि बाद में कंपनियों के "निजीकरण" के बदले उनके "बंध्याकरण" पर जोर देना होगा। कमोबेश हर राजनीतिक पार्टियां एक जैसा ही मेनू लेके आती हैं, जिसे सोच के आपके पेट में पानी आ जाए!! अब तो पार्टियां कैंडिडेट से पहले हीं घोषणा पत्र प्रकाशित कर देती हैं शायद वे कहना चाहती हैं की, कैंडिडेट तो उतना अच्छा नहीं दे पाएंगे पर घोषणाएं अच्छी दे रहे हैं, आप मतलब कि भोली जनता कैंडिडेट न देखे बस वो घोषणाएं देखें।
इसी कड़ी में कुछ धूर्त नेता जिन्हें इन बड़ी पार्टियों में जगह नहीं मिलती वो प्रोपराइटरशिप फर्म की तर्ज पर निर्दलीय खड़े हो जाते हैं और और बैगन, कुल्हाड़ी, कटारी, फावड़ा..... मतलब कि जो भी चुनाव चिन्ह मिल जाए लेके उतर जाते हैं मैदान में। अब इनके पास घोषणा पत्र वाली समस्या रहती है क्योंकि सामूहिक झूठ की खेती करना और अकेले करना दोनों में फरक है। तो ये एक नया स्टार्टअप शुरू करते हैं "एक नई समाजवादी पार्टी का उदय", वे लोक कल्याण की बात करते हैं, वे मानव पीड़ा को हरने की बात करते हैंl क्योंकि इनका मानना है कि चुनाव पूर्व किए गए वादों की पूर्ति नहीं होने पर भोली जनता खुद को ठगा और पीड़ित महसूस करती हैं, तो ये उन पीड़ाओं का ही निदान कर देंगे!!!!!!!
भारतीय राजनीति का चरित्र रहा है कि ऐतिहासिक सर्वमान्य एवं पूजनीय व्यक्तित्व की तस्वीर को अपनी पार्टी के पोस्टरों एवं झंडों पर ऐसे चिपका देते हैं मानों उन्होंने इनके आदर्श और व्यक्तित्व को पूर्णतः आत्मसात कर लिया हो। वो आपसे कहना चाहते हैं कि महान आदमी तो अब जीवित नहीं है, पर आप मतलब कि "भोली जनता" ये मान ले कि ये पार्टी उनके उसूलों पर ही चलती है और आप आंख मुन्दके हम पर भरोसा कर सकते हैं। बकौल पार्टी अध्यक्ष, जो की बातों की खेती करते हैं कहते हैं की आप कैंडिडेट मत देखो बस हमारे झंडे पे चस्पा महान व्यक्तित्व को देखो बाकी ऊपर वाला सम्भाल लेगा!!!!!
ऐसी ही मायावी बातें करके पार्टी कैंडिडेट घोषित कर देती है और चुनावी बिगुल बजते हीं नेतागण और उनकी बवाली कमिटी के उत्पाती कार्यकर्ता मोर्चा संभाल लेते हैं। शहर की गलियों में इनका शोर कम कर के सुनाई देता है असल मजा तो ग्रामीण इलाकों में है।चुनाव के पहले का महीना नेता जी के लिए बड़ा कष्टकारी होता है। वह अपने कार्यकर्ता को उत्साहित करता है साथ ही सचेत भी करता है। वह नवजवान कार्यकर्ताओं को समझाता है कि जिन कन्याओं में तुम अपनी वासना का प्रतिबिंब देखते हो, उसे देखना बंद करो। उन्हें सिर्फ एक वोट की नजर से देखो। चुनाव बाद तत्क्षण इस बवाली कमिटी को भंग कर दिया जाता है और महत्वाकांक्षी कार्यकर्ताओं को बगल लगा दिया जाता है। तो इस तरह बवाली कमिटी के उत्पाति लौंडे बेरोजगार हो जाते हैं। और अगले पांच साल तक बेरोजगारी का रोना रोते हैं। और जो कार्यकर्ता बच जाते हैं, जो उनके पास अगले पांच वर्षों तक बने रहेंगे उन्हें ये समझाते हैं कि अति महत्वाकांक्षा ठीक नहीं, महत्वाकांक्षा उस बीवी की तरह होती है जो दहेज में चिंतारूपी साले को लेकर आती है। और फिर चिंता चिता के समान है। ऐसा कहते कहते नेता जी चीर मुद्रा में आ जाते हैं जैसे उन्होंने स्वयं मोक्ष को पा लिया हो। उनके अनुसार खुश कौन है??? जिसके पास एक गमछा, एक फटा कंबल, एक किराए का घर जहां रहती है एक सूखी बीवी जो श्रृंगार न करती हो, कुछ ऐसे बच्चे जो बिल्कुल भी ज़िद नही करते, उसके पास एक ऐसी नौकरी है जो उसके चैंबर को हिलाने के बाद कुछ रुपए दे देता है। खुशहाल परिवार इन्ही चंद रूपये से दाल रोटी खाके रात में पेट पर ईंट रखके जरूरतों की "सम्पूर्ण क्रांति" को दबा देता है।
तो मैं ऐसी स्थिति में मैं चाहूंगा कि हमारा एम एल ए उनकी पार्टी के घोषणा पत्र का प्रतिबिंब हो और साथ हीं पुराने ग्रंथों में राज्य की जनता भगवान से प्रार्थना करती थी कि "राजा को तेज घोड़े और क्षमतावान पुत्र की प्राप्ति हो"। वर्तमान में घोड़े तो प्रासंगिक नहीं हैं पर बड़े नेता को भगवान क्षमतावान पुत्र जरूर दें जो आगे चलके हमारा नेता बने, हम तो बैठे हीं हैं वोट देने को!!!!
By Ravi Ranjan Kumar



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