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सहारा

Updated: Feb 2, 2024

By Swati Sharma 'Bhumika'


अक्सर लोग कहते हैं, कि लड़कियों को सहारे की जरूरत

होती है। आजकल लोग अपने घरों की बेटियों को शिक्षित एवम् मज़बूत

बना रहे हैं। जो कि बहुत ही कबीले तारीफ बात है। ईश्वर ने नारी को

सुंदरतम रचना के रूप में तो बनाया ही है। उसे शक्ति एवम् सुझबुझ

और समझदारी भी बखूबी प्रदान की है।

                   परंतु, इसका अर्थ कई जगह गलत तरह से भी लिया जा

रहा है। लड़कियों को सहारे की जरूरत पड़ती है, और उन्हें खुद का

सहारा स्वयं बनाने हेतु आज परिवारों में कई तरह से सहयोग कार्य हो

रहे हैं। वहीं दूसरी ओर कुछ स्थानों पर लड़कों को नज़रंदाज़ भी किया

जा रहा है। कुछ परिवारों में लड़कों को यह सोचकर सहयोग नहीं दिया

जाता क्योंकि वे लड़के हैं। अपना सहारा स्वयं बन सकते हैं। अर्थात् उन्हें

किसी सहयोग या सहारे की आवश्यकता नहीं।

                    आज हमारे समाज में लड़कों की यह परिस्थिति है, कि

उन्हें दर्द भी हो तो रोने का अधिकार तक उन्हें नहीं दिया जाता। लोग

कहते हैं:- मर्द को दर्द नहीं होता। मैं पूछना चाहूंगी कि मर्द को दर्द क्यों

नहीं हो सकता?



                   क्यों मर्दों को रोने की या किसी भी भावना को महसूस

करने की स्वतंत्रता एवम् इजाज़त नहीं है? वे भी मनुष्य ही हैं। उनमें भी

भावनाएं हैं। यह बात हमारे समाज में इतनी गहराई लिए हुई है, कि

कुछ स्तिथियों में कुछ पुरुषों को इसी बात ने कहीं ना कहीं निष्ठुर-सा

बना दिया है।

                   मैं तो बस इतना कहना चाहूंगी कि सहारे की और

सहयोग की आवश्यकता हर प्राणी मात्र को होती है। क्योंकि यदि हमें

जीवन में प्रगति करनी है, तो सहयोग की आवश्यकता तो पड़ेगी ही।

इसीलिए हमें अपने घरों के छोटे या बड़े लड़कों को मजबूत अवश्य

बनाना चाहिए परंतु, यह भी सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वे कहीं

निष्ठुर ना बन जाएं।

                  अंत में बस इतना ही कहूंगी, कि असली मर्द वही होता है,

जिसको सच में दर्द होता है। तभी तो वह किसी प्राणी या मनुष्य की

सहायता कर सकता है। संवेदना विहीन मनुष्य चाहे पुरुष हो या नारी

वह समाज में अपना योगदान नहीं दे सकते।

इसीलिए हमें अपने घरों के बच्चों को औरत या मर्द बनाने से पहले एक

बेहतर संवेदना युक्त मनुष्य बनाना चाहिए।


By Swati Sharma 'Bhumika'




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