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समाज में बेटियों के प्रति रूढ़िवादी विचारधारा और लिंगभेद समस्या!

By Anurag Shukla


*रूढ़िवादी लोग*


आज के आधुनिक समय में भी कुछ ऐसे रूढ़ीवादी विचारधारा के लोग या परिवार हैं, जिन्होनें बेटियों को समाज और शिक्षा दोंनों से वंचित किया है। उनको घर में बैठा दिया गया है की सिर्फ तुम अब रसोई तक सिमित रहो। जिंदगी भर पकाओ पकवान वहीं पर। घर वालों को सुरक्षा को लेकर बड़ा डर रहता है।

उनको ये नहीं पता की जितना तुम उनको घर पर सुरक्षा दे रहे हो, बैठा के उससे कहीं ज्यादा तुम उनके साथ घोर हिंसा कर रहे हो। बाहरी सुरक्षा के लिए उनका चिंता करना ठीक है। लेकिन इतना तो ख्याल रखो उनका भी जीवन है, जीने का, अधिकार का और चुनाव का। घर मे बैठा के झाडू़ पोछा लगवाने से उनका विकास कभी नहीं होगा । हॉं, जरूर उनका शारीरिक तल पर भले ही विकास हो जाए लेकिन मानसिक तल पर विकास कभी नहीं होगा। अधिकार तभी दो जब वो मानसिक तौर पर विकसित हो ।


लेकिन शिक्षित तो करो पहले उन्हें। जाहिर सी बात है जब वो शिक्षित और बोधवान रहेंगी तो वो अपना निर्णय स्वयं लेने लगेगीं। क्या सही है? और क्या गलत? उन्हे क्या पहनना है?, क्या नहीं?और किससे रिश्ते बनानें हैं? और किससे नहीं? इसमें पुरुष या कोई भी कौन होता है?, हस्तक्षेप करने के लिए। बेटी हो या बेटा उसको शिक्षा जरूर दो । लेकिन बेटीयों को खास तौर पर शिक्षा दो जिससे वो समाज और दुनिया के बारे में जानें। और इससे ही उनको अपने वास्तविक जीवन का पता चलेगा। और इनमें ही उनकी मुक्ती है।



*लिंग - भेद समस्या*


आज समाज में इतनी भिन्नता क्यों है? स्त्री और पुरुष के बीच, उसका सबसे बड़ा कारण है, "लिंगभेद"। जो समाज इस लिंगभेद ब्यवस्था पर चलने लगा, वह समाज खंड खंड हो जाता है। उसकी प्रगति ज्यादा संभव नहीं होती है। क्योंकि अब वह मानसिक तल पर दो धारी तलवार की तरह हो गया है।

जब कोई चीज़ दो हिस्सों में बंट जाती है तो उसकी टकराने की संभावना अत्यधिक रहती है। जो अद्वैत है या एक है वह निरंतर लक्ष्य की ओर बढ़ता जाएगा।


पुरुष वर्ग हमेशा से ही अपने आप को स्त्रियों से सर्वश्रेष्ठ समझता चला आ रहा है। और वो स्त्रियों को मानसिक तल पर नीचे इसीलिए रखता है की जिससे वह स्त्रियों का शोषण कर सके। अगर स्त्रियों को थोड़ा भी बहुत बोध हो गया तो पुरुषों की चलना बंद हो जाएगी।

ये बहुत बड़ी साजिश है, पुरुषों की, स्त्रियों के प्रति।


लेकिन समाज में सभी पुरुष वर्ग ऐसे नहीं है, जो स्त्रियों के प्रति इस तरह ब्यवहर रखते हों। कुछ ऐसे पुरुष भी हैं, जो स्त्रियों के मानसिक और सामाजिक प्रगति में संभवतः मदद करने के लिए सदैव समर्पित रहते हैं।


उपरोक्त अर्थों में बात करें तो ये जो द्वैतात्मक ब्यवस्था है, समाज की , लिंग भेद, कैसे खत्म होगी?

तो सबसे पहले स्त्री वर्ग को अपने आप को समझना पड़ेगा। की वास्तविक में मै कौन हूं? सवाल खुद से करें।


पहली बात स्त्रियां अपने आप को "स्त्री" मानना बंद करें। वो सर्वप्रथम स्त्री से पहले एक *"चेतना"* मात्र है, केवल चेतना और कुछ नहीं। भले ही वो प्राकृतिक तौर पर लिंग से कुछ भी हो। जब यह बात उनके मन की गहराई में बैठ जाएगी तो स्वयं वो सचेत हो जाएंगी। जो मन में डर या संसय अभी तक था, समाज के प्रति की मैं एक स्त्री हूं, मुझे ये करना चाहिए और ये नहीं।

तो वो सारे रूढ़िवादी विचारों या परम्पराओं को तोड़ती चली जाएंगी।।और तभी यह समाज इस रुढ़िवादि व्यवस्था से धीरे धीरे मुक्त होगा। जिसके उपरांत समाज के भीतर एक समानता और सम्पनता की लहर दौड़ेगी।

ये बाते सर्वकालिक सत्य रही है की अगर बेटियां है तो कल है।


"*सही केन्द्र से दी हुई शिक्षा सदैव मुक्ती मार्ग की ओर ले जाती है।*"


By Anurag Shukla




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