सब बच्चो के दादाजी होते हैं |
- Hashtag Kalakar
- Mar 17, 2023
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By Deepak Agrawal
यह कहानी मेरे दादाजी की हैं,उस इन्सान की,जिसने ९५ साल की उम्र तक अपना सम्पूर्ण जीवन घर के प्रति एवं समाजसेवी के रूप में समर्पित कर दिया,13 साल तक अपने वार्ड के वार्ड पार्षद एवं इतनी प्रतिष्ठा होने के वाबजूद अकेलेपन ने इनकी रौशनी को अन्धेरेपन में ढाल दिया था |
दादी के चल जाने के,अकेलापन उनकी जिंदगी पर यूँ छा गया की वो पूरी तरह टूट चुके थे उनके जीने का जरिये बस उनके पोते थे,जिनसे उन्हें बहुँत लगाव था पर शायद वह प्यार हम न कर पाए |अकेलापन दूर करने के लिए कभी-कभी दादाजी मेरे रूम में आकर बैठ जाते,पर मैं दादाजी से बात न करके अपने में मस्घूल रहता,दादाजी बैठे-बैठे उठकर वापस उस बंद कमरे में जाकर बैठ जाते और अकेलापण वापस आ जाता था |
धीरे-धीरे ये सब बाते रोजाना की तरह होने लगी,वही झगरा,दादाजी का अकेलापन और उनकी ख़ामोशी,पर एक दिन ऐसा आया सब कुछ खामोश होगया | मेरे बड़े पापा बीमार पर गए थे,जिसके पश्चात उनकी मृत्यु भी होगयी |बाप से पहले बेटे की मृत्यु की खबर ने उन्हें झंझोर दिया था |सुबह के 4 बजे चौकीदार मेरे दरवाजे को जोर जोर से पीटने लगा,दरवाजा खोलने पर उसने कहा की बाबूजी बेसुध अवस्था में लेटे वे हैं और न ही वो कुछ बोल पा रहे हैं |काफी घबरा सा गया था,दादाजी पूरी तरह से अचेत थे,पर मेरा नाम अचानक से दोहराने लगे,दीपू..दीपू |
मैं तुरंत उनके बगल पर जा बैठा,बात करने की कोशिश की,पर मैं नम और मेरे हाथ सुन होगये,यह सोचते वे की कही इश्वर ने अपने द्वार खोल तो नही दिए |दादाजी का एहसास मुझे अस्पताल जाते वक़्त हुआ,क्यूंकि उनकी ख़ामोशी ने मुझे सम्पूर्ण तरह से खोकला बना दिया था |
महीने बाद दादाजी की स्वास्थ में बदलाव न आने पर घर भेज दिया ताकि वे कुछ पल ऐसे परिवार के साथ रह सके जिसने कभी उन्हें अपना नही समझा |अब मैं भावनाओ को समझने लगा,दादाजी के प्रति भाव अब बढ़ गया |मैंने कोशिश की ज्यादा से ज्यादा समय दादाजी के साथ बिताऊ और उनकी देख भाल करू |वक्त ढलता गया,दिन कटते चले गए,और एक दिन ऐसा आया जब दादाजी तो थे पर उन्हें यह कहने का मौका चला गया की मैं उनसे कितना प्यार करता था|
उनके प्रति अपना स्वाभाव एवं गलती का पश्चाताप करने के लिए मैंने भी समाजसेवी का काम चालू किया,ताकि लोग कहे की अद्भुत समाजसेवी का पोता उनके प्रतिबिंब के रूप में उभर चूका हैं |
By Deepak Agrawal

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