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शर्मा जी को हमेशा से एक ही आदत ही रही है

By Kuldeep Kumar


शर्मा जी को हमेशा से एक ही आदत ही रही है कि उनको कभी ये लगता ही नहीं कि जो भी उनके पास है वो काफी है। यूँ तो बहुत से लोगों को यही आदत है कि उनको दूसरों के पास ही हमेशा कुछ ज्यादा ही लगता है। शर्मा जी के पड़ोस में ही मेहता साहब भी रहते हैं। मेहता साहब बड़े ही खुशमिजाज इंसान हैं, जो मिला उसी में खुश, जितना मिला उसी में खुश। मेहता साहब का बड़ा अच्छा बिजनस था, उसी के सहारे अपने बेटे को पढ़ाया, उसे पढ़ने विदेश भी भेज दिया, उसी बिजनस से अच्छा मकान, गाड़ी सब ले लिया। यूँ समझो कि बस जिंदगी अच्छी कट रही है और उसी में वो खुश हैं। अब शर्मा जी ठहरे थोड़े अलग स्वभाव के। पहली बात तो उनको ये खटकने लगी थी कि मेहता जी का इतना अच्छा बिजनस, लड़का बाहर पढ़ता है। जब लड़का वापिस आएगा तो अच्छी नौकरी मिल जाएगी। अच्छे घर में शादी हो जाएगी लड़के की। शर्मा जी का खुद का लड़का भी अच्छा पढा लिखा है, बिजनस तो शर्मा जी का भी कम नहीं है पर दिक्कत ये थी कि मेहता जी के पास इतना सब क्यों है? उनके पास मुझसे कम क्यों नहीं है? ये दिक्कत अक्सर काफी लोगों में देखी जाती है कि वो खुद को मिले हुए सुख से सुखी नहीं होते बल्कि दूसरों के सुख से दुखी होते हैं। शर्मा जी भी इसी बीमारी के शिकार थे। अब जब भी कोई अच्छी खबर मेहता जी के घर से आती तो शर्मा जी के घर जैसे मातम छा जाता। एक दिन मेहता साहब मिठाई का डिब्बा ले कर पहुंच गए शर्मा जी के घर ये बताने कि उन्होंने एक और घर ले लिया है पूरे पचास लाख ख़र्च करके। अब इतना ही सुनना था शर्मा जी के तो जैसे तोते ही उड़ गए। रात भर नींद नहीं आई ए सोच सोच कर कि मेहता साहब के पास इतने पैसे कहाँ से आये? नया घर कैसे ले लिया? सोच सोच कर शर्मा जी का सर फटने लगा। अब तो हालत ये हो गयी थी कि मेहता साहब की एक औऱ कामयाबी शर्मा जी की जान ले सकती थी। शर्मा जी का अपने काम में मन नहीं लगता था अब, धीरे धीरे ब्लड प्रेशर भी बढ़ने लगा।



क्योंकि मेहता साहब की तरक्की अब कुछ ज्यादा ही चुभने लगी थी शर्मा जी को। मेहता साहब को इस बात की कोई भनक भी नहीं लगती थी कि शर्मा जी उनकी कामयाबी से बहुत ही दुखी है। जब भी शर्मा जी मेहता साहब को मिलते तो बस एक झूठी सी मुस्कुराहट उनके चेहरे पर होती। मेहता साहब भी सोचते कि पता नहीं क्या हो गया शर्मा जी को। वक़्त बीतता गया और शर्मा जी दूसरों की कामयाबी से जलते ही गए। अब तो हाल ये हो गया कि शर्मा जी ने बिस्तर ही पकड़ लिया। हॉस्पिटल से दवाईयां शुरू हो गईं। एक दिन मेडिकल स्टोर गए कुछ दवाएं लेने तो उन्होंने देखा कि सामने ही एक बुढ़िया एक कपड़े पर कुछ सब्जियां ले कर बैठी थी बेचने के लिए। देखने से लग रहा था कि बुढ़िया की उम्र लगभग 75 की तो रही होगी। चुपचाप सी बैठी उस बूढ़ी महिला को देख कर शर्मा जी से रहा नहीं गया और मेडिकल स्टोर वाले से पूछ ही लिया कि, "अरे यार! ये बुढ़िया को क्या जरूरत है कमाने की? इस उम्र में तो इसे आराम करना चाहिए, पोते पोतियों को खिलाना चाहिए, पता नहीं कैसे लोग हैं जो कमाई के पीछे पड़े रहते हैं।" ये सुनकर मेडिकल वाले ने जो कहा वो सुनकर शर्मा जी के रोंगटे खड़े हो गए और उनकी आंखे भर आईं। मेडिकल वाले ने कहा, "साहब ये बुढ़िया बेचारी किस्मत की मारी है,

इसके दो बेटे थे। एक बेटा जो शादीशुदा था एक दुर्घटना में अपने बीवी बच्चों समेत इस दुनिया से चला गया। कुछ समय बाद दूसरा बेटा जिसकी शादी नहीं हुई थी, वो बीमार हो कर मर गया। पति तो बेचारी का पहले ही चल बसा था। अब कोई कमाने वाला नहीं बचा, और ये बुढ़िया बहुत स्वाभिमानी है, किसी की मदद नहीं लेती बल्कि खुद सुबह सब्जी मंडी से कुछ सब्जियां ले कर आती है और उन्हें यहां ला कर बेचती है। अपने हर ग्राहक से यूँ मुस्कुरा कर बोलती है कि लगता ही नहीं कि इसका कोई भी नहीं है दुनिया मे।" शर्मा जी अंदर से हिल चुके थे, ये जानकर नहीं कि उस बुढ़िया का दुनिया में कोई भी नहीं है बल्कि ये सोच कर कि जब इस बुढ़िया के पास कुछ भी नहीं है पर फिर भी ये किसी के सामने हाथ नहीं फैलाती, इसको इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि सामने वाले के पास क्या है क्या नहीं। सब कुछ खो देने के बाद भी एक शिकन तक इसके माथे पर नहीं है, सबके साथ मुस्कुरा कर बात करती है और एक मैं हूँ जिसके पास बहुत कुछ है फिर भी दूसरों को देख कर जलता हूँ। दूसरों की कामयाबी पर भगवान को कोसता हूँ लेकिन इस बुढ़िया को देख जो सब कुछ खोने के बाद भी अपनी जिंदगी को खुशी खुशी जी रही है। अब शर्मा जी शर्म से पानी पानी महसूस कर रहे थे। उन्हें खुद से घृणा होने लगी थी। अब लगने लगा कि जैसे अपनी जिंदगी में दूसरों की कामयाबी से जल कर खुद को बीमार तक कर लिया और मिला कुछ भी नहीं। उस दिन के बाद से शर्मा जी असली वाली मुस्कुराहट ले कर मेहता साहब से मिलते और अपने काम में ध्यान लगा लिया। दोस्तों, हमें जितना मिला है वो जिंदगी गुजारने के लिए काफी होता है अगर उसी में हम खुश होना सीखें तो। दूसरों के पास क्या है क्या नहीं इसकी फिक्र में जिंदगी बर्बाद मत करना। अगर किसी के पास बहुत कुछ है तो वो उसकी मेहनत और किस्मत से है और अगर किसी के पास कुछ भी नहीं है तो वो उसकी किस्मत है। जिंदगी को अगर सही से जीना हो तो सन्तोष करना सीखो वरना जिंदगी नरक बन जाएगी। जिंदगी का एक मूलमंत्र है हमेशा "बड़ों को देखकर सीखो और छोटों को देखकर आगे बढ़ो।" खुश रहना सीखो, जिंदगी खुशहाल हो जाएगी।


By Kuldeep Kumar




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