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वेंटीलेटर सी ज़िन्दगी

By Nisha Shahi


वह अस्पताल के वार्ड का नज़ारा, चारों तरफ सन्नाटा ही सन्नाटा फिर कहीं अचानक से चीख की पुकार आती है, तो कहीं वेदना और दर्द भरी कर्राहट, कहीं पर जीने की उम्मीद है तो कहीं थमती सांसे | मरीज तो बीमार है ही पर उनके परिवार वाले यानि कि तीमारदार वह भी परेशान रहते हैं |दुखी है , वह भी दर्द में जीते हैं " वेंटीलेटर सी हो जाती है उनकी जिंदगी " कभी बीपी चढ़ता घटता है तो कभी सांसे रूकती थमती है रात भर जाग कर आंखें लाल सूजी सी रहती हैं।

जी हां, मैं बात कर रही हूं बड़े-बड़े अस्पतालों की जहां पर हर रोज़ कोई ना कोई परिवार आंसू बहाता है फर्क बस इतना है कि कोई खुशी के कारण रोता है तो किसी का सब कुछ लुट जाता है। किसी को डॉक्टर कहते हैं कि “आप इन्हें सही समय पर ले आए अभी भी देर नहीं हुई है अब भी इन की जान बचाई जा सकती है।”



पर हर किसी के कानों को यह सुनने का सौभाग्य कहां प्राप्त होता है ? किसी को इसका ठीक उल्टा सुनने को मिलता है कि “अब बहुत देर हो चुकी है बस अब तो यह ज्यादा से ज्यादा चंद दिनों या फिर चंद महीनों के मेहमान है” उस वक्त तो जैसे कि पैरों तले जमीन ही खिसक जाती है | पर क्या करें हिम्मत बटोरनी ही पड़ती है ,वह कहते हैं ना कि “ उम्मीद पर ही दुनिया कायम है " क्योंकि जब तक सांस है तब तक आस है।

ठीक इसी दौर से मैं भी गुजरी हूं परअफसोस की बहुत देर हो चुकी थी अब ज्यादा समय नहीं था हमारे पास चंद ही दिनों में मेरा सब कुछ लुट गया ।


By Nisha Shahi




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