विचित्र माया...
- Hashtag Kalakar
- Jan 8, 2023
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By Sanjnna Girdhar
यह विचित्र माया है, यह कैसा समा मेरे मन पर छाया है... मैंने नहीं पुकारा था किसी को भी, फिर वो क्यों मेरे दर पर आया है। कहती हूँ बार बार कि नहीं है वो मेरा लेकिन सिर्फ़ एक वो ही है जो मेरे अंदर समाया है...यह मेरा ही साया है जो आज मेरा अक्स बनकर मेरे रुबरू आया है, तुम कहते हो कि गुलाब हूँ मैं, मैं पूछती हूँ कि 'गर गुलाब हूँ मैं तो क्या मेरे काँटों को भी तुमने अपनाया है, मेरी हयात-ए-जावेदाँ में मैंने अपना सब कुछ तुम्हारे दर पर गवाया है लेकिन कश्मकश देखो, सब गवाकर भी मैंने तुम्हें पाया है, गलत कहती थी मैं कि तुम मेरे नहीं, अपनों को आज़माया फिर जान पायी कि तुमने मेरे काँटों को भी अपनाया है, तुम गैर नहीं तुम मेरा ही ख्याल थे जो किस्मत से मेरे रुबरू आया है, जिसको पराया समझा था वो हमेशा अपना था और जिसको अपना कहा वो आज पराया है, यह ज़िंदगी एक रंगमंच नहीं, केवल एक विचित्र माया है...
By Sanjnna Girdhar

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