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वर्चुअल वर्ल्ड

By Mohd Shakeb ("Shauk-E-Shakeb")


वर्चुअल वर्ल्ड से लौट आया है तख़ल्लुस मेरा,

शिकायत ये है कि, प्लेटफॉर्म तो बहुत थे

बाग़-ए-सोशल मीडिया के,

पर सुकून-ए-दिल किसी में न था।


पास कोई नहीं था, फिर भी एक हुजूम सा था,

हर कोई बस कुछ भी शेयर करने की होड़ में था।

मैं भी “लाइक” “डिस्लाइक” करता रहा हर शय को यूँ ही,

वो एक शख़्स, कोई भी, अपना सा ना था।



मुद्दतों से फ्रेंड लिस्ट में मौजूद ज़रूर थे,

पर आज तक मेरे किसी कलाम पे उनका कोई सलाम ना था।

कभी कदार किसी ख़ास मौक़े पे आ जाया करती थी मुबारकबाद,

मुद्दतों से ये सिलसिला भी क़याम पाया था।


बातें बहुत थी करना भी जाता था, पर वो एक मोहसिन,

जो टोकता, रोकता, सुनता मुझको, न था।

हुजूम तो था, पर कोई अपना न था।


By Mohd Shakeb ("Shauk-E-Shakeb")



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