लक्ष्य मेरे हैं श्याम
- Hashtag Kalakar
- Sep 11
- 1 min read
By Neetu Saxena
आज बैठे बैठे सोच रही थी मैं,
क्या खोया इस जीवन में, क्या पाया है मैंने,
लक्ष्य मेरा था क्या कभी,
क्या उसको उचित दिशा मिली ।
बचपन में जिसे चाहत थी उड़ने की,
कुछ कर दिखाने की, अपने पंख फैलाने की।
कोई मुश्किल जिसे अपने लिए लगती थी मौका,
अपने हुनर को दिखाने का, खुद को आज़माने का।
क्यूं आज आंकलन करने बैठ गई वो,
संदेह जताने को, या अवसर नया कोई पाने को।
ज़िन्दगी की डोर थामने लगी आज फिर वो,
अपने सभी बंधनों को, सामर्थ्य अपना बनाने को।
सदैव अपने सभी उत्तरदायित्व निभाती रही,
रुक जाना अब विकल्प नहीं, आए चुनौती कोई भी सही।
लक्ष्य कभी भुली नहीं, हर क्षण था उसे ज्ञात,
नयी क्षमताएं और नेक इरादे भी है अब साथ।
विश्वास और आशा की है नई किरण,
परिणाम की महत्वकांक्षा नहीं अंतिम चरण।
अर्जून के समान, करना है कर्म से आत्मज्ञान,
गंतव्य पूरा हो न हो, होगा मेरा भी अब मान।
यूंही नहीं मिल जाती हैं मंज़िले मुसाफिरो को,
कुछ पाने के लिए खोना भी पड़ता है उनको।
मैंने भी किए जीवन की अस्थिरता में व्यस्त सभी याम,
अनभिज्ञ थी मैं सत्य से, लक्ष्य मेरे हैं श्याम।
By Neetu Saxena

Comments