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रेडियो

By Nisha Shahi


बात है लगभग 1988 के आसपास की जब मैं एक छोटी बच्ची हुआ करती थी उस वक्त रेडियो का बहुत बहुत चलन हुआ करता था । उस वक्त गिने-चुने लोगों के घर में है रेडियो देखने को मिलता था एक दिन हमारे घर भी रेडियो का आना हुआ हम बहुत उत्साहित थे। खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। बस अब तो चलाने की जद्दोजहद थी। बस फिर क्या था गांव के बच्चे बूढ़े जवान सभी की भीड़ जमा हो गई हमारे आंगन में और हम फूले न समाए।

फिर क्या था। रेडियो ऑन किया झर- झर की आवाज आने लगी जो थोड़े जानकार थे वे बोले अरे इसका एंटीना तो ऊपर खींचो तभी तो यह गाना पकड़ेगा फिर क्या था एंटीना को खींचतान कर खड़ा किया गया आवाज आई यह आकाशवाणी है। फिर रेडियो में मैडम जी कुछ बोली उस समय तो समाचार भी बहुत एंटरटेनिंग लगता था।



ओए होए-और जब गाना बजता तो क्या ही कहने फिर फिर क्या रेडियो का बटन मरोड़ - मरोड़ एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन लगाते हैं और फिर संगीत का आनंद लेते कभी गुनगुनाते कभी नाचते धीरे-धीरे कुछ सालों बाद रेडियो बूढ़ा होने लगा बेचारा बीमार सा रहने लगा ।

उसकी सांसे अटक -अटक कर चलने लगी और उसकी दिल की धड़कन रुकने लगी अब वह ओल्ड फैशन हो चुका था उसकी जगह अब टेप रिकॉर्डर ने ले ली थी ।अब तो जिसके घर में टेप रिकॉर्डर होता उसकी चाल में अलग ही अकड़पन आ जाता। पर यह बात भी सच है कि आज तक हम उस रेडियो को भुला ना पाए जिससे हमारे बचपन की कई प्यारी यादें जुड़ी हैं वह रेडियो सदा हमारे दिल में रहेगा


By Nisha Shahi




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