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रक्तदान

Updated: Feb 5, 2024

By Priyanka Gupta


"हैलो सर, मैं आरोग्य ब्लड बैंक से बात कर रही हूँ । आपने 2 दिन पहले रक्तदान किया था। " ,फ़ोन की दूसरी तरफ से एक लड़की की अत्यंत ही मीठी आवाज़ ने आलोक जी के कानों में मिश्री सी घोल दी । "हाँ-हाँ,आप मेरा सर्टिफिकेट कब भेज रही हैं? ज़िन्दगी में पहली बार रक्तदान किया था। ",आलोकजी की आवाज़ से उनके उत्साहित मन की भावनाओं को सहजता से समझा जा सकता था । "सर ,आपको वही बताने के लिए कॉल किया है । आप मेरी बात धैर्य के साथ सुनिए। आपके रक्त की प्राथमिक जाँच में कुछ संक्रमण आया है ;इसलिए आपका रक्त किसी जरूरतमंद के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता । ",प्रतिदिन न जाने कितने ही व्यक्तियों को यह खबर देनी पड़ती थी ;इसलिए वह इस प्रकार की परिस्थिति को सम्हालने की अभ्यस्त हो चुकी थी। "कैसा संक्रमण ? मैं तो बिलकुल सही हूँ । आप कैसी बातें कर रही हैं ? ",आलोक जी ने भरसक अपने स्वर को मुलायम करने की कोशिश करते हुए कहा । "सर ,आप परेशान मत होइये । चिंता की कोई बात नहीं है । आप एक -दो दिन में ,जब भी वक़्त मिले ;आप यहाँ आ जाइये । आपके कुछ और टेस्ट करने होंगे ;तब ही कुछ कहना सम्भव होगा । ",लड़की आलोक जी की चिंता और झल्लाहट समझ रही थी ;इसलिए उसने उनके द्वारा फेंके गए शब्दों के कंकरों का जवाब कंकरों से न देकर ,फूलों से ही दिया ।  "मुझे कहीं नहीं आना।""सर ,आप बिलकुल ठीक हैं । दो-चार छोटे मोटे टेस्ट करने हैं। मुझे तो रक्तदान के लिए भी नहीं आना चाहिए था ;वह तो नमिता ने ज़िद की थी । चिंता और गुस्से में आलोक जी को रक्तदान के लिए जाने पर ही पछतावा हो रहा था । "आपने ,मेरे रक्त की जाँच के बारे में किसी और को तो नहीं बताया । ""नहीं सर ,हमने रक्तदान शिविर के दौरान भी बताया था कि अगर किसी रक्तदाता का रक्त संक्रमित पाया जाता है तो हम केवल उसे ही फ़ोन पर सूचना देते हैं । "चलो भगवान का शुक्र है कि किसी को पता नहीं चला। तपती रेत को बारिश की ठंडक मिली । "सर ,आप कब आ रहे हैं ?",लड़की की आवाज़ ने आलोक जी को ठीक से सोचने भी नहीं दिया और बीच राह में ही ख्यालों की दुनिया से वापस बुला लिया । "मैं नहीं आ रहा और आज के बाद मुझे फ़ोन मत करना । ",आलोक जी ने फ़ोन काट दिया था । दो -तीन बार दोबारा आरोग्य ब्लड बैंक से कॉल आया ,लेकिन आलोक जी ने नहीं उठाया। आलोक जी की पत्नी विभा ,अपने पीछे दो बच्चों बेटा आनंद और बेटी नमिता को छोड़कर,वर्षों पहले स्वर्ग सिधार गयी थी। दोनों बच्चों की परवरिश आलोक जी ने अकेले ही की । बेटा आनंद तो विवाह के बाद अपनी पत्नी शिखा के साथ दूसरे शहर में जाकर बस गया था । अब बेटी नमिता और आलोक जी अकेले ही रह गये थे। वैसे भी ,नमिता ही अपने पापा आलोक जी के ज्यादा नज़दीक थी । अगर आनंद और बहू को पता चल गया कि मुझे कोई ऐसी-वैसी बीमारी है तो क्या होगा ? बहू का तो सामना करना ही मुश्किल हो जाएगा । नमिता को भी न जाने क्या सूझा ,जो मुझे रक्तदान के लिए भेज दिया। न मैं रक्तदान के लिए जाता और न ही मेरी रिपोर्ट्स आती । फ़ोन रखने के बाद आलोक जी का मंथन जारी था ।हम इंसान अक्सर ही छोटी -छोटी समस्याओं को सोच -सोचकर बड़ा बना देते हैं । समस्या का समाधान करने से अधिक समय, हम उसके बारे में सोचने में लगा देते हैं । ऐसा ही कुछ आज आलोक जी के साथ था ,क्यूँकि उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह इस प्रकार की किसी बीमारी के शिकार हो जाएँगे कि  उनका संक्रमित रक्त किसी और व्यक्ति को नहीं चढ़ाया जा सकेगा । हर माँ -बाप की तरह आलोक जी भी अपने बच्चों के समक्ष अपनी हीरो वाली छवि को बनाये रखना चाहते थे । दुनिया के लगभग प्रत्येक माता -पिता की तरह आलोक जी ने भी कभी अपने बच्चों को अपनी असफलताओं ,कमजोरियों आदि के बारे में नहीं बताया था। अब अगर ऐसी -वैसी किसी बीमारी के बारे में बच्चों को पता चल जाता तो ,यह उनके जीवन की सबसे बड़ी हार होती । पत्नी विभा के चले जाने के बाद ,आलोक जी ने कभी अपने बच्चों को माँ की कमी नहीं खलने दी थी । दोस्त -रिश्तेदार सभी आलोक जी और उनकी परवरिश को सलाम करते थे । अकेली माँ तो अपने बच्चों को पाल  ही लेती है और उसके लिए कोई कशीदे भी नहीं काढ़ता क्यूँकि औरत को तो यह करना ही होता है । लेकिन अकेले पिता द्वारा बच्चों को पालना एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है । वैसे भी औऱतों के लिए कर्त्तव्य पुरुषों की उपलब्धियाँ बन जाते हैं । तब ही तो अच्छा खाना बनाना एक स्त्री के लिए आवश्यक होता है ;वहीं पुरुष अगर अच्छा खाना बनाये तो वह मास्टरशेफ कहलाता है । बच्चों के बड़े होने के साथ ही ,आलोक जी के जीवन में एक ठहराव आ गया था या सच कहें तो निश्चिन्तता आ गयी थी । सरकारी नौकरी से बेदाग़ सेवानिवृत्ति सोने में सुहागा थी; ऐसा रिचार्ज थी ,जिसमें डाटा के साथ ओ टी टी प्लेटफार्म के क्रेडेंशियल भी मिल गए थे । सब कुछ कितने बढ़िया से चल रहा था और आज यह फ़ोन कॉल । पसंदीदा वीडियो देखते हुए बीच में ऐसे विज्ञापनों के आने के समान था ,अगर वीडियो देखना है तो उन विज्ञापन को भी देखना होगा ;उन विज्ञापनों को फॉरवर्ड भी नहीं किया जा सकता । डिंग डोंग ..डिंगडोंग ......डिंगडोंग ....डिंगडोंग ..............दरवाज़े पर बजी घंटी की आवाज़ ने आलोक जी को विचारों के समन्दर से बाहर निकाला । दरवाज़ा खोलते ही सामने ,मुस्कान खड़ी थी । मुस्कान ,अपने नाम के अनुरूप हमेशा मुस्कुराती रहती थी ;वह आलोक जी के घर पर सुबह -शाम घेरलू कार्यों में मदद के लिए आती थी । आज भी उसने आलोक जी से प्रतिदिन की तरह पूछा ,"अंकल जी क्या खाओगे  मटन या चिकन ?"शाकाहारी आलोक जी ने रोज़ दिन की तरह आज उसे जवाब नहीं दिया ," जा मुस्कान ,मुर्गी रसोई के अंदर तेरा इंतज़ार कर रही है । सुन, कूकडू कू की आवाज़ नहीं आ रही क्या ?""कहीं मुर्गी भाग न जाए ,मैं तो रसोई में जा रही हूँ । ",मुस्कान ऐसा कहकर तुरंत रसोई की तरफ भाग जाती । "कुछ मर्ज़ी बना लो । ",आलोक जी अनमने से बोलकर ,अपने कमरे में चले गए थे ।



 

मुस्कान कुछ और बोलना चाहती थी ,लेकिन आलोक जी के हावभाव देख-समझकर उसका खुला हुआ मुँह बंद हो गया था । अंकल का मूड खराब है ,यह जानकर मुस्कान रसोई में घुस गयी थी । 

आलोक जी के फ़ोन पर अभी भी ब्लड बैंक से 3 बार फ़ोन आ चुका था । फ़ोन पर दिख रही तीन मिस्ड कॉल उन्हें मुँह चिढ़ा रही थी ।

फ़ोन नहीं उठाया तो कहीं ये लोग घर पर ही न धमक जाए । वैसे भी नमिता के कुछ परिचित व्यक्ति वहाँ कार्यरत हैं । मुझे भी अगर दानवीर कर्ण बनना ही था तो किसी और ब्लड बैंक में रक्तदान के लिए चला जाता । यह फ़ोन कॉल भी मेरे गले की हड्डी बन गयी है ;न निगलते बन रही है और न ही उगलते । आलोक जी का दिमाग रक्तदान और फ़ोन कॉल के अलावा कुछ सोच ही नहीं पा रहा था ।

मुस्कान ने एक -दो बार किचन से आकर पूछा ,"अंकल ,रोटी बना लूँ ?"

"हाँ ,बना लो । " 

"मैंने विभा के जाने के बाद कभी किसी को उसकी जगह नहीं दी ;जगह देना तो दूर की बात किसी के बारे में सपने तक में नहीं सोचा । मुझे ऐसी बीमारी कैसे हो सकती है ?"

आलोकजी की स्वयं के साथ प्रश्नोत्तरी जारी थी ;एक कमर्शियल ब्रेक की तरह मुस्कान ने फिर थोड़ी देर बाद आकर पूछा ," लेकिन दीदी को तो शाम को चावल खाना पसंद है और आज तो राजमा भी बना रही हूँ । तो फिर चावल बना लूँ । "

"जो बनाना है ,बना लो ।",अपने सवालों की दुनिया से जूझ रहे ,आलोक जी को मुस्कान के प्रश्न खीझा रहे थे । उनकी यह खीझ और  झल्लाहट मुस्कान समझ रही थी ;इसीलिए बार-बार आलोकजी के आसपास मँडरा रही थी ताकि उनकी परेशानी समझ सके । लेकिन आज आलोक जी किसी से अपनी परेशानी साझा नहीं कर सकते थे । 

मुस्कान जैसे आयी थी ,वैसे ही वापस चली गयी । 

"अरे आलोक,यह बीमारी तो संक्रमित रक्त चढ़ाने से भी हो जाती है । क्या पता तुझे संक्रमित रक्त से ही हो गयी हो । "

"नहीं-नहीं ,मुझे तो रक्त की ज़रुरत ही नहीं पड़ी । " आलोक जी सवालों के चक्रव्यूह में फँसते ही जा रहे थे । अपने आप से सवाल -ज़वाब करके हम इंसान अपने आपको सांत्वना देते हैं या धोखा देते हैं या बेगुनाह साबित करते हैं । 

"संक्रमित सुई से भी तो होती है ?"

"हाँ -हाँ ,मुझे सुई से ही हुई होगी । ",आलोक जी ने अपने आपको बेगुनाह साबित करने की वजह ढूँढ ही ली थी । 

"लेकिन मेरी इस बात का विश्वास कौन करेगा ?",आलोक जी ने फिर अपने आपको कटघरे में खड़ा कर दिया था । 

हम इंसान तो हमेशा सामने वाले को नीचा दिखाना चाहते हैं ।तब ही तो किसी की बुराई पर तुरंत भरोसा कर लेते हैं ;वहीँ अगर किसी के बारे में कुछ अच्छा सुनें तो 50 बार जाँचने के बाद ही उस पर भरोसा करते हैं ,वह भी आधा-अधुरा । 

"पापा ,पापा .......",नमिता ने आलोक जी के कन्धे पर हाथ रखते हुए कहा । 

"अरे तुम ,कब आयी ?",नमिता की उपस्थिति से आलोक जी थोड़े असहज हो गए । 

"करीबन 15 मिनट हो गए हैं । आपको पता ही नहीं चला । "

"तुम ने घंटी नहीं बजाई तो पता कैसे चलेगा ? तुम अपने साथ ,अपनी अलग चाबी इसीलिए तो लेकर जाती हो ताकि मुझे डिस्टर्ब न हो । ",नमिता के सामने अपने आपको सामान्य दिखाने की भरसक कोशिश करते हुए आलोक जी ने कहा ।

"पापा ,आज चाबी ले जाना भूल गयी थी।घंटी बजाई थी और मुस्कान ने सुनकर गेट खोल दिया था । "

"अरे बेटा ,तेरा बाप अब बूढ़ा हो गया ;सुनाई भी कम देने लगा है । "

"वह सब छोड़िये ,पापा । आज किसी से आपका झगड़ा हुआ ?"

"नहीं । क्यों ?"

"मुस्कान बता रही थी कि आज आपका मूड ठीक नहीं है । "

"कहाँ है मुस्कान ? अभी उसकी खबर लेता हूँ ।अब कोई इंसान उस मुस्कान की बकबक न सुने तो इसका मतलब यह थोड़ी है कि उसका मूड खराब है । "

"पापा ,मुस्कान जा चुकी है । "

"कल खबर लेता हूँ उसकी । "

"अरे हाँ ,वो आपने रक्तदान किया था न तो आपका डोनर कार्ड आ गया है । आप ब्लड बैंक वालों का फ़ोन उठा नहीं रहे थे तो उन्होंने मुझे फ़ोन किया और मेरे ऑफिस में आपका डोनर कार्ड भिजवाया । ",नमिता ने अपनी पॉकेट से कार्ड निकालकर आलोक जी के हाथ में देते हुए कहा । 

"यह क्या है ?"

"पापा,आपने एक यूनिट रक्त दान किया है न ।अब जब भी जरूरत होगी;आपको एक यूनिट रक्त ब्लड बैंक से मिल जाएगा।"

"मेरा रक्त उन्होंने स्वीकार कर लिया ?"

"हाँ।स्वीकार क्यों नहीं करेंगे ?आपको कोई बीमारी थोड़े न है और न ही आपका रक्त संक्रमित है । चलो ,अब चलकर डिनर करते हैं,बहुत तेज़ भूख लगी है।"

"हाँ ,चलो। "

"भगवान का शुक्र है कि मेरा डोनर कार्ड आ गया । लेकिन ब्लड बैंक से फ़ोन तो कुछ और ही आया था । खैर मुझे क्या करना है । मेरा तो मुसीबत से पीछा छूटा । ",आलोक जी के ऊपर छाये मुसीबत के काले बादल डोनर कार्ड रुपी सूर्य के उजाले से छंट गए थे ।

सुबह नमिता के ऑफिस जाते ही ,आलोक जी ने ब्लड बैंक में फ़ोन लगा दिया । मुसीबत तो चली गयी थी ;लेकिन आलोक जी को यह जानना था कि मुसीबत उन तक आयी ही क्यों थी ? एक फ़ोन कॉल ने उनका चैन छीन लिया था ।

"सॉरी सर ,एक से दो नाम होने की वजह से यह प्रॉब्लम हुई । आपको दोबारा भी कई बार कॉल किया ,लेकिन आपने उठाया नहीं । "

आलोक जी को याद आया कि जिस दिन रक्त दान करने गए थे । उस दिन वहाँ पर एक और आलोक भी रक्त दान के लिए आये थे । मजे की बात दोनों का ही नाम आलोक कुमार था ।

"उस बेचारे आलोक का रक्त संक्रमित है । ",आलोक जी को अपने सवाल का जवाब मिल गया था ।  

 

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