मैं विधाता हूँ
- Hashtag Kalakar
- Jan 22
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By Soumya Singh
मैं सृष्टि की गूंज, अनादि अनंत,
मैं प्रकृति का सार, अदृश्य प्रचंड।
मैं वायु का संगीत, जल का प्रवाह,
मैं धरती का स्तंभ, आकाश का निर्वाह।
मैं अग्नि की ज्वाला, तप का प्रतीक,
मैं अंधकार में छिपा उजाले का अधीश।
मैं सूरज की गरिमा, चंद्र की शीतलता,
मैं जीवन का स्पंदन, मृत्यु की सजलता।
मैं पर्वतों की अडिगता, नदियों का प्रवाह,
मैं महासागरों का अमिट, अपरिमित विस्तार।
मैं फूलों की महक, पत्तों का कंपन,
मैं बीज में छिपा जीवन का संकेत।
मैं कण-कण में, रज-कण में हूँ,
हर स्पंदन, हर कंपन में हूँ।
मैं हर्ष की किलकारी, शोक का विलाप,
मैं ही हूँ तुम्हारा आरंभ और संताप।
मैं कर्म की गति, धर्म की रेखा,
मैं सत्य का मार्ग, मैं ही दिखाता देखा।
मैं समय का प्रहरी, अनवरत प्रवाह,
मैं सृजन का मर्म, मैं ही विनाश का राह।
मैं विधाता हूँ, तुम्हारे भीतर का प्रकाश,
जो मिटाता अंधेरा, दिखाता नवीन आकाश।
तुम खोजो मुझे, अपने हृदय के द्वार,
मैं हूँ तुम्हारा साथी, तुम्हारा आधार।
हर जीव, हर पत्ता, मेरा ही स्वरूप,
तुम हो मेरी छवि, मैं ही तुम्हारा रूप।
तो स्वीकारो इस सत्य को, करो विश्वास,
मैं विधाता हूँ, जीवन का असली प्रकाश।
By Soumya Singh

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