“ मैं ऐसा क्यूँ हूँ ’’
- Hashtag Kalakar
- Mar 24, 2023
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By Dineshkumar Hirani
“ मैं ऐसा क्यूँ हूँ ’’
जब मैं किसी अंतिम यात्रा में जाता हूँ ,
अंत का इल्म जीते जी समज जाता हूँ ,
और निराकार एवं निर्विकार बन जाता हूँ ,
जीवन और मृत्यु का अंतर नाप लेता हूँ !
जब मैं मंदिर में जाता हूँ ,
तो आध्यात्मिक बन जाता हूँ ,
लोभ-मोह-माया और ममता से परे हो जाता हूँ ,
काम-क्रोध को तिलांजलि देकर भगवान को ,
अंजलि देता हूँ ,
उस समय मुजे ऐसा लगता है ,
जैसे मैं आसमानी मज़ली पर बैठा हूँ !
किसीको भूखा देखकर मैं दयावान बन जाता हूँ ,
किसीकी बेबसी देखकर मैं बेबस हो जाता हूँ ,
सारी बेबसी और भूख को अकेला खा जाऊँ ,
ऐसा सोचता हूँ ,
लेकिन ऐसा कैसे कर सकता हूँ ?
मैं तो डकार लेके बैठा हूँ !
किसीकी लड़ाई देखकर मैं तटस्थ हो जाता हूँ ,
दुश्मनी और हिंसा देखकर मैं अस्वस्थ हो जाता हूँ ,
क्या करू ऐसा जिससे लोग आपस में प्यार से रहे ,
उस दिशा में नये-नये नुस्खे सोचता हूँ
मनुष्यवतार का सारा मर्म समजने के बाद ,
हर जगह से जब बाहर निकलता हूँ ,
तो फिरसे मैं संसारी-स्वार्थी-नास्तिक और ,
मगरूर बन जाता हूँ ,
मैं जैसा था वैसा बन जाता हूँ ,
क्यूँ ? क्यूँ ? क्यूँ ?
तब मैं सोचता हूँ की ,
“ मैं ऐसा क्यूँ हूँ ? “
By Dineshkumar Hirani

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