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मेरे स्कूल का जूता भारी हो गया

By Nisha Shahi


आप सोच रहे होंगे की स्कूल का तो बस्ता भारी होता है फिर जूता कैसे? शायद आप सोच रहे होंगे कि फॉर्म का जूता रहा होगा भीगकर भारी हो गया होगा। जी नहीं बिल्कुल गलत! असल में मेरा प्लास्टिक का जूता पैबंद लगा -लगा कर भारी हो गया था।

बात उन दिनों की है शायद तब मैं पांचवी या छठवीं कक्षा में पढ़ती थी हमारी मां सिंगल पैरंट थी, पिताजी की पेंशन में गुजारा, हालांकि घर के हालात ज्यादा बुरे नहीं थे क्योंकि हमारी मां बहुत मेहनती थी मां के मेहनत से घर में अनाज उठता तेल सब्जी की दूध दही सब खरका होता था कमी थी तो बस पैसों की क्योंकि पेंशन बहुत कम थी उसी में हम तीनों बहनों की पढ़ाई का खर्चा कपड़े जूतों का खर्चा आदि बस यही बात है कि मेरा जूता कहीं से फट जाता तो गांव के पीपल के पेड़ के नीचे एक मोती बैठता था।



तो जूता लेकर सीधा उन्हीं के पास जाते कहते इसे ठीक कर दो तो वह जवाब में कहते ठीक है बिटिया अभी कर देते हैं। और कमबखत जूता भी तभी टूटता जब उसकी सबसे ज्यादा अहमियत होती यानी कि सर्दियों में क्योंकि सर्दियों में प्लास्टिक अकड़ जाया करती है।

बेचारे उस जूते में इतने पैबंद लगे कि वह इतना भारी हो गया कि उसे पहनकर पैरों को आराम मिलने के बजाय पर थकने लगते थे पर मां से शिकायत करने या नया जूता लेने की हिम्मत ना होती क्योंकि मां की खुद की चप्पल आधी टूटी रहती थी।

अब तो मोची भी जूते की हालत देखकर घबराने लगा था कहने लगे बिटिया इसका अब कुछ नहीं हो सकता बदल डालो इसे

पर जवाब में हम कहते एक बार और ठीक कर दो। एक साल और चला लेंगे नई कक्षा में नए जूते भी आ जाएंगे।


By Nisha Shahi




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