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मेरे आदर्शों का भारत

By Siddharth Janartha


मैं चाहता हूं भारत समृद्ध बने, आत्म निर्भर बने। देश के हर एक आदमी के पास अपना कोई काम हो और आमदनी इतनी के अपने परिवार का पेट आराम से भर सके और उनकी ज़रूरतें भी आसानी से पूरी कर सके।


क्या ऐसा हो सकता है? आप मुझसे पूछेंगे तो मैं कहूंगा हां! ऐसा हो सकता है, लेकिन वक्त ज़रूर लगेगा।


मेरे आदर्शों का भारत एक कलाकार का भारत होगा। वो कला, संगीत व खेल के माध्यम से विकसित होगा, क्योंकि खेल भी एक तरह की कला है जिसमें खिलाड़ी खेलकर ख़ुद को व्यक्त करता है। और एक बात है जो मैं यहां कहना चाहूंगा, किसानी भारत का सबसे ज़्यादा किया जाने वाला व्यवसाय है और अन्न जीवन के लिए सबसे ज़रूरी स्रोत भी है तो ऐसा क्यों ना हो कि भारत का हर वासी कला के साथ-साथ किसानी को भी अपने जीवन का अंग बना ले।


इसकी शुरुआत बचपन से की जानी चाहिए, शुरू से। स्कूलों को चाहिए के वे अन्य विषयों की तरह ही कला के विषयों व किसानी को भी पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाएं, बच्चों को क़िस्म क़िस्म की कलाएं व सब्जियां व अन्न उपजना सिखाए। इसमें सरकार को भी इस बात को लागू करने व इसका प्रचार करने के लिए भाग लेना होगा। अगर सरकार कला व किसानी के लिए अलग से स्कूल बनाए तो इससे बेहतर क्या होगा। इसमें सरकार को आगे आना होगा।



अब बात आती है बच्चों के मां-बाप की जो ज़्यादातर कंज़र्वेटिव विचारधारा के हैं। भारत में अब भी सरकारी नौकरियों को ही मान दिया जाता है। मैं कभी कभी सोचता हूं के क्या होता अगर बच्चों के माता-पिता बच्चों को एक कलाकार बनाने में भी उतना ही मोटिवेट करते जितना के वे सरकारी नौकरी के लिए करते हैं। एक कामयाब कलाकार की आमदनी किसी सरकारी नौकरी से कई बेहतर है। ऐसा होना चाहिए के अगर स्कूलों में बच्चों को कला व किसानी के बारे में सिखाया जाएगा तो घर में भी माता-पिता द्वारा उन्हें उतना ही प्रोत्साहन मिलना चाहिए। आज के दौर में हर किसी के पास स्मार्टफोन है, चाहे वो कोई बच्चा हो या एक बुज़ुर्ग। माता-पिता को चाहिए के वो अपने बच्चों को उनकी कला व ज्ञान दुनिया के सामने रखने के गुर सिखाए। यू ट्यूब ये काम करने का एक उपयोगी ज़रिया है। आगे चलकर आय के साधन भी यहां से बन सकते हैं।


मैं जानता हूं कि एक कलाकार की आमदनी स्थयी नहीं होती लेकिन ये बात कला के माध्यम से अपने जीवन को सुंदर बनाने के आगे मायने नहीं रखती। कला एक आदमी के जीवन को सुंदर बनाती है ओ साथ ही साथ उस सभ्यता को भी। मैं मानता हूं कि एक सच्चा कलाकार कभी ना कामयाब हो ही नहीं सकता अपने जीवन में।


कला के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन को बेहतर बना सकता है व किसानी से वो आत्मनिर्भर भी बनेगा। यही होगा मेरे आदर्शों का भारत - कला व किसानी की ईंट व सीमेंट से तैयार हुआ - गगनचुंबी, आलीशान व मज़बूत।


By Siddharth Janartha




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