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मेरी अधूरी प्रेम कहानी

Updated: Jul 12

By Surjeet Prajapati


या तो कोई किसी को इतना न चाहें  कि उसके लिये अपना जीवन ही भूल जाए और अगर कोई ऐसा मिल जाता है तो उसे ऊपर वाला उसे दिलवा दे, क्यूँकि जिसको हम चाहते है उसके वगैर रहना मुश्किल ही हो जाता है। जैसा कि मेरे साथ हुआ मैंने किसी को इतना चाहा कि अपना सुख- दुःख सब भुला देता उसके सामने आते ही उसे एक बार देख पाने के लिये  ईश्वर से हजारों हजार बार प्रार्थना किया करता था हजारों-हजार बार रोया करता था उसके लिए, उसे एक टक देख पाने के लिए और साथ ही अपनी गरीबी पर। यहाँ तो आज भी मेरा घर वही नब्बे साल पुराना कच्चा मकान  है और वो भी खस्ता हालत में। यदि मेरे पास पैसा होता तो मुझे इतना तड़पना न पड़ता,  सीधे उसके घर जाता और उसका हाँथ मांग लेता। दिन बीते महीने, साल, बीते पर न गरीबी गई न ही उसकी याद। आज भी वो मुझे हर पल याद आती है, और मैं चाहता भी हूँ उसे  और  बहुत  चाहता हूँ इतना  कि  शायद किसी  ने कभी किसी को भी न चाहा होगा। मेरा  जीवन उतार चढ़ाव का रहा है कभी खुशयों से कभी दुःख से भरा परिपूर्ण।

साल 2015 था जबकि उससे पहली बार आँखें चार हुई थी हल्की बारिश हो रही थी माह जून का था। मैं मेरे दोस्त के साथ एक दुकान पर गया हुआ था अचानक फिर वहाँ वह अपनी बहन के साथ आई उसने छतरी लगा रखी थी, मेरा मुख दुकान वाले की तरफ़ था, उसने छाता बंद किया तो मैं मुड़ा और मेरी उस पर नजर गयी जो उस पर नजर गई फिर ठहर ही गई मैं उसे देखता रहा वो मुझे। मैंने उसकी बहन को देखा हुआ था तो जनता था कि वो कहाँ रहती है वो मेरे घर से कुछ दूर पर स्थित चौराहे पर उसका घर था। तो मैं उसके जाने के बाद जाने को हुआ ये देखने कि वास्तव में वो भी उसी घर में जायेगी या और किसी। वो भी उसी घर में गई जिसमें कि उसकी बहन। मैं अभी भी चिंतित था कि वो कहीं उसकी रिश्तेदार तो नहीं। फिर दूसरे दिन वो मुझे कॉलेज, जाती दिख गई उस समय मेरे पास घड़ी नहीं थी। लोकिन सामने की शॉप की दीवार घड़ी से मैंने उसके जाने का समय देख लिया तो मुझे उसके जाने का समय पता चल गया और फिर मैंने अंदाजे से आने का समय भी पता कर लिया। फिर क्या मैं उसके आने जाने के समय से 15 मिनट पहले ही अपने घर की खिड़की पर खड़ा हो जाया करता था ताकि उसके दर्शन कर सकूँ। फिर धीरे- धीरे उसकी  कोचिंग का समय भी पता कर लिया और अपनी घर की खिड़की से उसे निहार लिया करता ताकि उसे थो अटपटा न लागे। फिर जब धीरे- धीरे मैने बाहर निकलकर उसे देखना शुरू कर दिया, अब मैं सुबह दोपहर शाम और यहाँ तक कि रात में भी बस उसके दर्शनों को व्याकुल रहता। अब मेरा एक एक पल उसे देखे बगैर काटना मुश्किल सा होने लगा। मैं लगभग पूरे ही दिन और यहाँ तक कि रात 10-11 बजे भी बस उसे देख पाने के लिए खड़ा रहता। फिर चाहें कितनी ही धूप होती बारिश होती चाहें कितने ही कड़ाके की सर्दी होती। मेरा बस एक ही काम रह गया था उसके लिए पलकें बिछाये उसके निकलने का इंतज़ार करना जिससे कि मैं उसे एक पल देख सकूँ। मैंने समय पर निकलने के लिए अपने बड़े भाई की घड़ी पहनने लगा ताकि कम से कम उसके आने जाने समय पर तो उसे देख सकूँ। जब वो घड़ी बंद हो गई तो मैं 2018 में दूसरी घड़ी ले आया। क्यूंकि मेरा उसका घर कुछ ही दूरी पर था तो हम दोनों मिनटों एक दूसरे को देखते रहते। इस देखने की बात पर मैं एक चीज तो भूल ही नहीं सकता जो कि उसके व उसके बगल के घर के बीच की दीवार। जो की उसके घर की दीवार से लगभग तीन रद्दे ऊपर थी और उसकी मुंडेर के पास की ईंटें हटी हुई थी तो वो अपनी दीवार पर बैठ जाया करती थी और मुझे देखती रहती और मैं उसे। मैं कवितायें तो लिखता ही था तो मैंने उसके लिए पहली कविता “प्रिय तेरे नित दर्शन का अभिलाषी मैं हो आया हूँ” लिखी फिर मैंने उसके लिए कईं कविताएँ और नज़्म और गजलें लिखी। और पहला गाना “खामोशियाँ कर दे बयाँ” लिखा। पर अफशोस कि उसे कभी सुना नहीं पाया न ही दे पाया। वो उस समय के तीन चार साल तक कभी कहीं नहीं गई क्योंकि मैं लगभग हर रोज ही उसे घंटों देखा करता था तो ये भी पता है। मैं उसे जब भी देखता तो मैं खुशी से झूमने लगता फिर चाहें मैं कितना भी दुःखी क्यूँ न होता, और उसके हर एक बार के दर्शन में मैं ईश्वर को धन्यवाद देता। 

होली का समय था छोटी होली वाले दिन परिवार सहित गांव चली गई मैंने सोचा कि दो एक दिन में लौट आयेगी, हालांकि चैन मुझे नहीं था कि वो चली गई थी क्योंकि मैं अब एक पल उसे देखे बिना नहीं रह सकता था, लेकिन जब वो सात आठ दिन नहीं आई तो तो मेरा दिल बेचैन होने लगा। मैं परेशान होने लगा रोने लगा और रोज रोता जब तक कि वो आ नहीं गई मेरे दिल ने सुकून नहीं पाया। ये पहली मर्तबा था कि वो कहीं बाहर गई। एक बार मैंने अपने एक भाई (ममेरे) से पूछा क्या करूँ कैसे उसे अपने दिल की बात कहूँ उसने कहा कि अपने दिल की बात एक कागज पर लिखो और जब कोई आस पास न हो तो उसे पकड़ा दो। मैंने उसकी बात मानी और उसी समय से हर रोज एक बड़ा सा कागज लिखा शाम को खड़ा हो जाता उसे देने के लिए और भगवान से दुआ करता कि वो कभी मेरे इतने पास से गुजरे कि मैं वो कागज धीरे से उसे पकडा सकूँ।

    

Written in 27 July 2018

यहाँ जब भी बरसात होती है तो मेरे व उसके भी क्यूँकि मेरा उसका घर एक सड़क पर लगभग बीस कदम की दूरी पर है के सामने पानी भर जाया करता है अभी कई दिनों से पानी का कोई अता पता नहीं था कि किस समय पानी बरसने लगे कभी रात भर बरसता कभी दिन में दो या एक घंटे रुक रुक कर बरसता और वो सुबह उसी रास्ते से मेरी तरफ से कॉलिज जाया करती है रोजाना। मैं उसे पिछले कई दिनों से अपने दिल की बात बताने के लिए कागज में लिख कर जेब में रखे उसे मौका मिलते ही देने का इंतज़ार करता रहता। अभी जुलाई की आज तारीख 27 हो चुकी थी पूरे 23 दिन हो चुके थे इस कोशिश को पर नाकाम ही रहता उसके सामने आते मेरे सांसे फूल जाती पहली बात तो यह कि मैं उसे देखता ही रह जाता कागज है जेब में या कि नहीं कुछ याद ही नहीं रहता। क्या करूं उसे कागज देने की कोशिश करूँगा तो देख नहीं पाऊँगा और ऐसी कोशिश में भी नाकाम ही रहता पता था मुझे। मैं उसे बहुत‌ प्यार करता हूँ वो भी जानती थी। मैं अक्सर ईश्वर से दुआ करता कि ज्यादा नहीं इक बार दिख जाये जिससे कि मुझे सुकूँ रहे कि वो घर पर ही है। किसी न किसी समय अकस्मात् मिल ही जायेगी दोवारा देखने को और दुआ कबूल हो जाती कभी कभी ही ऐसा होता की वो मुझे न दिखे। पिछले पूरी जून उसने परेशान किया पूरा का पूरा परिवार गायब एक बार आने मे छे-सात दिन लग गए मेरी जान जा रही थी, फिर दो-चार दिन बाद फिर गायब छे-सात दिन के लिए। मैं बड़ा परेशान था एक बार मुझे वो घर आने के दो दिन बाद दिखी राहत मिली कि चलो अब तो है, पता चला कि वो सिर्फ रात भर के लिए ही आई थी सुबह 9.30 बजे से 10 के बीच फिर जाने लगी और जाने क्या लगी अबकी गई तो सीधे 2-3 जुलाई को ही आई थी मैं तो सोच लिया कि पूरा परिवार कहीं और शिफ्ट होने वाला है। तो अब मेरा क्या होगा मैं कैसे रहूँगा उसके बिन कैसे जीऊँगा। खैर जब से वो आई है तब से यहीं है कॉलेज जाती है मैंने सोचा कि अब ज्यादा देर नहीं करनी चाहिए वैसे भी तीन साल हो गए थे देखते देखते। पर उसकी प्रतिक्रिया कैसी होती है, पता नहीं समझ नहीं आता इसलिए और भी डरता हूँ वो देख लेगी, देखती रहेगी पर कभी मुस्कुरायेगी नहीं कॉलेज जाते समय वहाँ से आते समय देखेगी फिर घर की सीढियाँ चढते समय देखती रहेगी पर नहीं मुस्कुरा तो सकती ही नहीं और जब छत पे होती है तो 10-20 मिनट एक बार में गुजार देती है देखते-देखते मेरी तरफ चेहरा ध्यान निगाहें पूरा का पूरा मेरी ही तरफ होगा। और अगर उसी समय मेरे इधर आना पड़े तो मुझे देखते ही चली जायेगी मैं भी इश्क का जोगी उसे खड़ा देखता रहता हूँ जब तक कि ओझल नहीं हो जाती। तब मुझे लगता कि उसके भी दिल में भी कुछ है जो वो कहना चाहती पर कह नहीं पाती जैसे कि मैं…….। मैंने उसे देने के लिये कई कागज लिख-लिख कर फाड़ दिये क्यूँकि वो रद्दी हो गये, फिर नया लिख लिया फिर नया……. हर नये पन्ने में अपने दिल की बात बयाँ करने का तरीका अलग होता पर बात वही होती। क्योंकि वो मेरे से दूरी से गुजरती है सड़क के विल्कुल किनारे से नहीं और उसके बाद सड़क पर काफी भीड़ भाड़ रहती है और आस पास दुकानें भी हैं कई जिनपे लोग बैठे रहते हैं। तो कईं बार तो मन किया कि कागज उसके कॉलेज से लौटने के समय उसको रास्ते में दे आऊँ पर हिम्मत नहीं हुई। और एक बात मैंने उसका हाँथ खाली खाली देखा सूना लगा मैनें उसे घड़ी देने की चाह भी कर रखी है पर कब दूंगा ये पता नहीं। कागज के लिए अभी परसों ही मैंने भगवान से दुआ की कि हे भगवान कि जब वह कोचिंग या कॉलेज से आ या जा रही हो तो बस इतना ही बरसना कि रास्ता पानी से भर जाए बस नाली के किनारे लगी ईंटों की ऊँचाई तक ताकि वो बिल्कुल मेरे पास से मेरे घर के चबूतरे से होकर गुजरे  और मैं अपने दिल की बात लिखा कागज उसे पकड़ा सकूँ। ठीक दूसरे दिन ऐसा ही हुआ पर अफसोस साथ में हल्की बारिश भी होती रही, और सामने दुकान पर एक व्यक्ति मेरी तरफ मुह किये बैठा रहा तो मैं बस उसे अपने विल्कुल पास से अपने चबूतरे से गुजरते देखता रह गया वह चली गई और मैं हाँथ मलते रह गया…………मौका गवां दिया था। वह सीढ़ियाँ चढ़ते हुए मुझे देखती रही और मैं खुद पर हँसता रहा। हाँ एक बात वो उस दिन हरे रंग का सूट पहने थी। उससे अपनी बात कहने का ऐसा मौका फिर कभी मुझे न मिला। फिर मैंने इस कारण कि कभी अपने दिल की बात उससे नहीं कह पाया क्यूँकि मैं हमेशा डरता रहा कि कहीं ये न देख लें कहीं वो न देख लें। फिर मैंने अपने ऊपर एक गाना लिख “प्यार हुआ फुकऊआ” मेरी इसके इंतजार में खड़े रहने के कारण मेरी कई एक लड़कियाँ दीवानी बन गई कोई सोचती ये मेरे लिए खड़ा है कोई सोचती ये मेरे लिए खड़ा है इसके कारण कई लड़कियाँ अपनी मेन चलने की साइड छोड़ कर मेरे विल्कुल पास से मुझे देखते -देखते गुजरने लगी, इस कारण मुझे बहुत शर्म आने लगी मेरा उसे देखने में अड़चने आने लगी। आलम ये है आज भी अगर मैं खड़ा हो जाऊँ बाहर तो सारी लड़कियाँ अपनी मेन साइड छोड़ मेरे बिलकुल पास से गुजरने को आतुर हो जाती हैं फिर चाहें उनका एक्सीडेंट ही क्यों न हो जाए क्यूँकि वो जब सड़क क्रॉस करती हैं मेरे विल्कुल पास से गुजरने को तो वो इधर-उधर बिल्कुल नहीं देखती।


एक घटना-: Oct. 2019,

Written in 21 Dec. 2024-:

मैंने उसको नाक में कोई फूल वगैरह न पाकर, उसकी नाक सूनी देख कर उसे नाक के लिए एक फूल देने का सोचा। क्यूँकि मैं अमीर नहीं था तो सोने का तो गिफ्ट दे नहीं सकता था। तो मैंने अपने यहाँ चल रहे वार्षिक राम लीला मेला से एक गिफ्ट बढ़िया आर्टिफिशियल कुछ खरीदने की सोची। उस दिन मेरे घर मेहमान आये हुए थे तो उनको घुमाना भी था और दूसरा अपनी प्रेमिका के लिए मुझे कुछ लेना ही था तो मैं लगभग 2000 रुपए लेकर मेले गया था, तब वहाँ झूले के लिए जेब से रुपये निकालते समय मेरे 1000 रुपए कहीं खो गए मेरे धक्क से हुआ कि अब क्या करूँ क्यूँकि उस समय भी मेरी कोई अर्निंग नहीं थी दीदी संविदा पर लेक्चरर थी तो उन्हीं के रुपए लेकर गया था। मैंने घर आकर सिर्फ अपनी बहन को ही बताया वो मुझे बहुत चिल्लाई। रुपए गिर जाने के कारण मेरी कुछ खरीदने की हिम्मत ही नहीं हुई तो मैं बस वहाँ से उसके लिए एक कृष्ण जी की विल्कुल छोटी सी जिसकी कीमत 20 रुपये थी खरीद ली। और उस मूर्ति को भी कईं बार उसे देने की कोशिश की लेकिन असफल ही रहा। तभी उसके लिए एक शायरी लिखी “तेरे लिए लाया हुआ तोहफा अभी माकूल रखा है”। मैंने उसका हाँथ भी सूना ही देखा था तो भी मैंने सोचा कुछ नहीं तो एक घड़ी तो दे ही दूँ। पर उसके लिए भी कभी हिम्मत नहीं जुटा पाया। उसे मैं इस हद तक प्यार करता था कि उसके कारण मैं चाहें कितनी कितनी ही ठंड पड़ती चाहें कितना ही कोहल पड़ता मैं सुबह 4-4.30 बजे सड़क पर घूमने लगता और मेरी किस्मत मेरा साथ भी खूब दिया करती थी क्यूँकि वो उसी समय अपने घर के बाहर झाडू लगाने आया करती थी। इसी समय मैंने उसके लिए एक कविता लिखी-

“तुम मुझे मेरे जीवन के संध्याकाल में ही सही यह बात कह देना, कि तुम सदा से ही मुझे प्यार करती थी, जो कि मेरा भ्रम नहीं है बिल्कुल सही” ।

कुछ समय बाद मैंने उसका नजरिया कुछ बदला बदला सा देखा तो उसके लिए एक गाना लिखा-:

“हमें आज कल आजमाने लगे वो, 

मेहरबानियाँ हैं, मेहरबानियाँ हैं……”

दूसरी घटना-: 

अब वो जब-तब चली जाती थी तब मैं बहुत परेशान हो जाया करता था, मुझे बेचैनी सी होने लगती। एक बार वो रात 9.00 बजे अपने पूरे परिवार के साथ अपने गांव चली गई तो मैं रूआँसा हो गया मैं घर के भीतर गया और सभी के सामने ही मेरा रोना छूट पड़ा। मम्मी-पापा और भाई-बहन सभी लोग मेरे रोने का कारण पूछने लगे पर मैं बस सिसकियाँ ले-ले कर रोता ही जा रहा था और ऐसा रोया कि गहरी-गहरी साँसें चलने लगी और हाफी चलने लगी। ये पहला और आखिरी बार था जब मैं सबके सामने रोया, ऐसा नहीं है कि मैंने रोना बंद कर दिया रोया और खूब रोया करता था पर सभी के सामने कभी नहीं अगर मैं रोने का कारण बता देता तो कहते तो कुछ नहीं पर जैसे मेरे हालात थे प्यार करने की इजाजत नहीं होती। मजाक बन कर रह जाता और मेरे को भी लेक्चर्स मिलने शुरू हो जाते इसीलिए मैंने कभी किसी को कोई बात नहीं बताई। और जब बताया भी बातों-बातों में तो जो मैंने सोचा वही हुआ किसी ने सच नहीं माना बस मेरा मजाक बनाया मतलब मेरा उसके लिए रोना, तड़पना, उसका वेपरबाही से इंतज़ार करना, इन सबके लिए मजाक था शायद इसलिए कि मैंने न कभी इस बारे में कभी किसी को बताया न कभी पता लगने दिया। 2020-2021 में तो मैं उसके दिखने की तारीख समय कपड़े किस कलर के पहने, किसके साथ कहाँ कहाँ मिली, किस मोड़ पर किस-किस दुकान पर मिली, छत पर दिखी तो कितने-कितने वक़्त के लिए, सभी कुछ लिखने लग गया था। मैंने आज भी वो सभी कुछ संभाल के रखा हुआ है। मैंने कभी भी रास्ते में उसे अपनी सहेली से भी कुछ भी बोलते नहीं सुना था तो मुझे उसकी आवाज तक का पता नहीं था कि कैसी है। पर एक दिन उसे कुछ बोलते सुना और वो भी पूरा जिसको कि मैंने अपनी कॉपी में तुरंत नोट कर लिया था। 

तीसरी घटना-: मई-जून 2022 से अब तक 

फिर अचानक मेरी किस्मत ने बड़ी अजीब पलटी मारी और मैं बर्बाद होते चला गया जो पहले से ही था अब कि पूर्णतया हो गया। 

मई का महीना था साल 2022 था मेरी मम्मी की तबियत बिगड़ गई जो कि पहले से ही सही नहीं थी और खराब हो गई उन्हें लेकर अस्पतालों के चक्कर काटने लगा, और मेरे पापा की आवाज बिक्कुल ही बंद सी होने लगी जो कि पिछले दो तीन सालों से धीमी हो रही थी क्यूँकि  मेरे पापा की आवाज बहुत बुलंद आवाज थी तो कारण तो बनता था चेकअप करवाने का पर पापा ने कभी ध्यान नहीं दिया क्यूँकि पैसे होते नहीं थे वो सोचते थे कि ऐसा वैसा कुछ निकल आया तो बच्चे क्या करेंगे। और हुआ भी वही मई माह में ही पापा का भी पता चला कि इनको गले में कैंसर की गांठे निकल आई हैं। अब क्या पापा की इलाज उधर मम्मी की इलाज उनके दोनों की देख भाल इन्हीं सब में समय बीतने लगा किसी के बारे में कुछ सोचने का मन नहीं करता था मन उचट सा गया था। मेरी मम्मी की बीमारी कोई डॉक्टर बताता ही नहीं था कि इनको हुआ क्या है तो बस लेकर भागता रहता था इधर-उधर मम्मी पूरा-पूरा दिन और पूरी-पूरी रात खाँसती जिससे वो और भी कमजोर हो गई थी और बस अपने मरने की दुआ ऊपर वाले से करती रहतीं। डॉक्टर ने मेरे भाई को बता दिया था कि ये ज्यादा दिन नहीं जियेंगी, जो कि मेरे भाई ने किसी को नहीं बताया था। फिर अचानक एक दिन सुबह 10.30 बजे 29 Nov. 2022 को मेरी मां गुजर गई। क्यूँकि वो मेरे लिए अनमोल थी तो अब सिर्फ मेरी मां ही मुझे याद आया करती थी। पूरा साल उन्हीं की याद में गुजर गया और जैसे-तैसे खुद को समझा ही पाया था कि मेरे पिता की तबियत बहुत बिगड़ गई बेहिसाब दर्द और पीड़ा ऐसी ही और तकलीफों को झेलते-झेलते अंततः 4 मई 2024 को उनकी भी मृत्यु हो गई। ये सब मेरे व मेरे परिवार के लिए किसी सदमें से कम नहीं है। अब मेरे पास किसी से कुछ कहने को बचा ही नहीं है अब मेरा पूरा वक़्त उनकी ही याद में ही गुजर जाता है। क्यूँकी इतना सब झेल चुका हूँ कि अब किसी के होने न होने से फर्क ही नहीं पड़ता। और पड़ता भी किसके लिए उन्हीं तीन सालों से वो भी यहाँ नहीं है। इसी बीच मैंने उसकी याद में एक और गाना भी लिखा “सोच रही होगी तुम ऐसा, मैं जी लूँगा तुमसे बिछड़ के” और इसे लिखत-लिखते मैं बहुत रोया भी था। सो ऐसा नहीं है कि मैंने उसे याद करना छोड़ दिया, आती है उसकी भी हर पल उसकी भी याद आती है पर अब मैंने उसके लिए उस क़दर तड़पना छोड़ दिया है जिस क़दर मैं पहले तड़पा करता था। क्यूँकि मम्मी-पापा के गुजर जाने के बाद मेरा खुद जीने का मन नहीं कर रहा है मन करता है कि किसी दिन मौका मिले तो खुद को निपटा दूँ। और जब तक जीवित हूँ अपने एक बेहतर भविष्य की तलाश कर रहा हूँ जो कि है कैसे भी एक अच्छी जॉब मिल जाने की तैयारी। 


By Surjeet Prajapati





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