मुहब्बत की नज़र
- Hashtag Kalakar
- Aug 11
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By Vijay Kumar Nagar
नाकाम को गर लगी. मुहब्बत की नज़र होती
खूबसूरत दिलबर पहलू में मेरे. नुमाया होती.
छूकर उसके बदन को. ख्वाब की तसदीक करता
काश! सनम के भेष में. कोई जन्नत की हूर होती.
वो बात करती तो. दिल ए चमन में गुल खिलते
जलजला जहाँ में आता. गर वह नाराज़ होती.
तारीफ़ खूबसूरत बदन की. उसकी कैसे करता
नज़रों से मिली नज़र. अगरचे जुदा मेरी होती.
तारीफ़ों के पुल. दिल से दिल तक बाँध देता
दीवान लिखने की कुव्वत. गर क़लम में मेरी होती.
आंखें खुली हुई थी. मदहोश थी मेरी हस्ती
नज़रों से मिली हुई थी नज़र. जुबां होश में मेरी होती.
मुस्करा क्या उठे वो. रोशन हो गए चिराग बदन के
नाम मेरा पुकार लेते वो. राहे जन्नत की रोशन होती.
थामे थे वह हाथ मेरा. सिहरने दौड़ रही थी बदन में
सहमी हुई थी साँसे. कहता कुछ गर जुबां मुंह में होती.
शुक्र था खुदा का. आंखें पूरी खुली नहीं थी उनकी
बेली था रब मेरा. मँझधार में किश्ती इश्क़ की होती.
किस रब को पुकारता मैं. सब कूच कर गए थे कब के
लब बुदबुदा रहे थे. चेहरे पर हवाईयां उड़ती होती.
खोया हुआ था दिल मेरा. रुखसार की वादियों में
बयान करूँ कैसे. क्या कैफियत मेरे दिल की होती.
इस जिस्म से मुत्तलक. रिश्ते सारे जहाँ के हैं या रब
रहबर बन जा नाकाम का. किश्ती हयात की पार होती.
By Vijay Kumar Nagar

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