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मुझे आजाद होना था!!!

By Kishor Ramchandra Danake


आज बुधवार की शाम थी। मैरी सुबह से परेशान अपने बिस्तर में ही पड़ी हुई थी। अक्षदा और प्रज्ञा आज स्कूल नहीं गए थे। श्रीकांत भी आज घर पर ही था। उन्होंने फादर को फोन पर यह सारी बाते बताई और फोन करके फादर को आज घर बुलाया था। बस्ती में बोहोत ही शांति थी। कोई अपने कामपर नही गया था। बच्चे भी आज स्कूल नहीं गए थे। विलास गांव में फादर से मिलने गया था। वो फादर को अपने साथ लेकर आने वाला था। वह फादर से मिलकर यह सारी बाते बताना चाहता था। रोशनी घर पर ही रुकी थी। वह मैरी से बात करना चाहती थी। वो मैरी की हालातों को समझना चाहती थी। वो यह सब देखकर डर तो गई थी लेकिन उससे जादा उसे मैरी की चिंता थी।

किसन अपने मालिक की राह देख रहा था की कब वे वापस लौटेंगे या फिर उनका कोई फोन आएगा। वो उनकी झोपड़ी में बैठा हुआ उनकी उसी किताब में झांक रहा था जिसमे मंत्र और विधियां थी। उसी वक्त उसे अपने मालिक का फोन आया।

कौतिक ने कहा, “किसन तुम अभी कहा हो?” वे बोहोत तेजी तेजी में और डर के साथ बात कर रहे थे।

“मैं यही अपने घर हूं। क्या हुआ मालिक? क्या केरस मां आपको मिली?”, किसन ने कहा।

“हां। वे मुझे मिली। अब मेरी बात ध्यान से सुनो।“, कौतिक ने कहा।

“हां मालिक मैं सुन रहा हूं।“, किसन ने कहा।

“देखो वह दरवाजा बनाने के लिए किसी की बलि देनी पड़ती है। सुलेखा दादी ने भी वह दरवाजा बना लिया था। पता है उसे खोलने के लिए मंत्रों को पूरे जिज्ञासा के साथ पढ़ने की जरूरत होती है। केरस मां ने मुझे किसी भी ऐसे दरवाजे को खोलने के लिए खुद मंत्र को पढ़ने के लिए मना किया था। लेकिन मैं देखना चाहता था की अगर कोई इस मंत्र को पढ़ता है तो उसके साथ क्या होता है। इसलिए मैने मैरी को पढ़ने के लिए कहा था।“, कौतिक ने कहा।

“क्या!!! तो क्या होता है मालिक उससे?”, किसन ने पूछा।

“मैंने बोहोत बड़ी गलती कर दी। मैने खुदके बहन को ही तकलीफ में डाला है।“, कौतिक ने रोते हुए कहा।

“मालिक आखिर हुआ क्या है?”, किसन ने कहा।

“यह मंत्र जो कोई पढ़ता है किसी दरवाजे के लिए तो उसमे कैद जो भी आत्मा है वो उसके अंदर समा जाती है। क्योंकि उस मंत्र का मतलब ही वही है। की वह व्यक्ति शैतान के सामने उस आत्मा के लिए चाहत जाहिर करता है। और जब मैरी ने वह मंत्र पढ़ा तो सुलेखा दादी उसके अंदर चली गई। यानी यह सब जो उस बस्ती पर हो रहा है हो सकता है वह सुलेखा दादी ही कर रही है।“, कौतिक ने कहा।

“आप ये क्या कह रहे हो मालिक? यानी सुलेखा की आत्मा मैडम के अंदर है। मतलब मैडम अब बोहोत बड़े खतरे में है।“, किसन ने कहा।

“हां वो बोहोत बड़े खतरे में है।“, कौतिक ने कहा।

“हेलो! हेलो। आवाज नही आ रही है मालिक।“, किसन ने कहा। उसने फोन रख दिया और फिर से फोन किया तो फोन स्विच ऑफ बता रहा था।

इसलिए उसने जल्दी से अपना झोला उठाया और कौतिक की किताब अपने साथ ले ली और वह बस्ती की ओर निकल पड़ा।



यहां मैरी अब उठ गई। वो सोच में थी की अब क्या करे। उसी वक्त उसे सुलेखा की आवाज आई।

“अब मैं तुम्हे और जादा परेशान नही करूंगी मैरी। अब बस एक आखरी काम जिससे मैं आजाद हों जाऊंगी। मैं तुम्हे सब बताऊंगी तुम्हारे अतीत के बारे में जो तुम जानना चाहती थी और वह जानना जरूरी भी है। और यह भी की मैंने इन सबको क्यों मारा।“, सुलेखा ने कहा।

“मुझे बोहोत डर लग रहा है। मैं फादर को अब सब बताने वाली हूं।“, मैरी ने रोते हुए कहा। अब वह खुदको कोस रही थी।

लेकिन सुलेखा उसपर हांवी हो गई। उसने खिड़की से बाहर देखा तो रोशनी बंगले की तरफ आ रही थी। मैरी ने अपने हाथ में छुरा लिया और खिड़की बंद कर दी और वह छुप गई। रोशनी अब धीरे से कमरे में चली आई। उसकी नजर कमरे में सुलेखा पर पड़ते ही सुलेखा ने उसके सिर में एक डंडे से वार किया और रोशनी बेहोश होकर गिर गई। फिर सुलेखा ने उसे बांध दिया।

और जल्दी से अपने रसम में लग गई।

किसन रिक्शा में बैठा हुआ था। उसी वक्त उसे फिर से कौतिक का फोन आया।

“हां मालिक क्या हुआ?”, किसन ने कहा।

“मेरा फोन बंद पड़ गया था। तुम मेरी बात ध्यान से सुनो। जो कोई भी ऐसा दरवाजा बनाता है मतलब यह समझ लो की वह अब साधारण आत्मा नही रही। बलकि नरक की दुष्ट आत्मा बन गई है। वह नरक की बोहोत सी बुरी ताकदों का भी मालिक बन जाता है।“, कौतिक ने कहा।

“मतलब सुलेखा अब एक नरक की दुष्टात्मा बन गई है?”, किसन ने धीरे आवाज में कहा। शाम का वक्त था इसलिए रिक्शा में किसन को मिलाकर बस दो ही आदमी बैठे हुए थे।

“हां! और दरवाजा बनाने के लिए जैसे बलि देने की जरूरत होती है वैसे ही उसे फिर से बंद करने के लिए भी बलि की जरूरत होती है। अगर सुलेखा को आजाद होना है तो उसे उस शरीर में रहते हुए फिर से अपने हाथ से बलि देनी होगी।“, कौतिक ने कहा।

“क्या एक बलि?”, चौंकते हुए किसन ने कहा। वह धीरे से ही बाते कर रहा था।

“और वो बलि किसी ऐसे इंसान की जो उस व्यक्ति के लिए कुछ मायने रखता हो। यानी मैरी के लिए जो कोई भी मायने रखता है उसमें से ही किसी एक की बलि सुलेखा देने वाली है।“, कौतिक ने कहा।

“ये तो बोहोत बुरा हुआ मालिक। अब हम क्या कर सकते है?”, किसन ने कहा।

“अब बस दो ही रास्ते है। एक तो मैरी को दरवाजा बंद करने का मंत्र पढ़ना होगा जैसा उसने खोलने के लिए पढ़ा था। या फिर मैरी को मरना होगा।“, कौतिक ने कहा।

“क्या?”, किसन ने कहा। वो अब और भी जादा हैरान हो गया था।

“हां। तभी सुलेखा की आत्मा फिर से नरक में जा सकती है और दरवाजा फिर से बंद हो सकता है। लेकिन यह सब होना चाहिए बलि चढ़ाने से पहले।“, कौतिक ने कहा।

“ठीक है मालिक। मैं अभी बस्ती पर ही जा रहा हूं। मैं जरूर कुछ न कुछ करूंगा। आप जल्दी से आ जाओ।“ , किसन ने कहा।

सुलेखा की सारी रस्में पूरी हो गई। अब बस रोशनी की बलि देना बाकी था। श्रीकांत, नीलम, अक्षदा और प्रज्ञा अपने अपने कमरे में बैठे हुए थे। सुलेखा ने रोशनी के मुंह पर पानी मारकर उसे उठाया। उसने उसका मूंह एक फड़के से बांध दिया था ताकि वह चिल्लाए नही। और उसके हाथ पैर भी बांध दिए थे।

सुलेखा ने कहा, “तो रोशनी तुम मैरी के लिए बोहोत मायने रखती हो। है ना?”

रोशनी खुद को आजाद करने के लिए झटपटा रही थी। वह बोहोत डर गई थी।

“डरो मत। बस तुम्हारा खून धीरे धीरे बहेगा और तुम आराम से स्वर्ग जाओगी।“, सुलेखा ने कहा।

यह कहते ही उसने उसका छुरा उठाया और वह रोशनी के पेट में घुसाने गई लेकिन अचानक से उसका हाथ बीच में ही रुक गया। जैसे किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया हो।

“मैरी यह क्या कर रही हो? हमे ये करना होगा। मुझे आजाद होना है।“, सुलेखा ने कहा। वह अब थोड़ा हैरान हो गई। क्योंकि इस बार मैरी उसको खुदपर हांवी होने से रोकने की कोशिश कर रही थी। और वह इसमें सफल भी हो रही थी।

सुलेखा ने कहा, “चुप करो। तुम्हारी मां ने भी मुझे उस वक्त ऐसे ही रोका था जब मैं सुंदरा की बलि चढ़ाने वाली थी। और मैं नाकाम हो गईं। लेकिन इस बार मुझे यह करना होगा। मेरी बेटी मेरी बात सुनो और मुझे यह करने दो।“

“उसे मत मारो।“, मैरी ने रोते हुए कहा।

“ये नहीं हो सकता। ये लोग अच्छे नही है। मैं तुम्हे बचा रही हूं मेरी बेटी। मेरा यकीन करो। मुझे ये करने दो।“, सुलेखा ने कहा।

मैरी और सुलेखा ही अब एक दूसरे से बाते करने लगे थे। सुलेखा ने फिर से चाकू चलाने की कोशिश की और वह उसके नाभी तक पोहंच भी गई लेकिन अचानक फिर से रुक गई। क्योंकि मैरी ने उसे रोक लिया था। मैरी अब खुदको संभाल रही थी। सुलेखा अब और भी जादा चिढ़ गई।

उसी वक्त बाहर से अक्षदा ने दरवाजा खटखटाया। मैरी दरवाजे की ओर बढ़ने लगी थी। लेकिन सुलेखा उसे रोकने की कोशिश कर रही थी।

लेकिन मैरी के मूंह से आवाज निकली, “बचाओ!!!”

यह सुनते ही अक्षदा ने अपने पिताजी को बुलाया। सुलेखा और भी जादा डर गई। वह रोशनी को मारने के अपने काम में फिर से लग गई। लेकिन मैरी खुदको उसे अपने ऊपर पूरी तरह से हांवी नही होने दे रही थी। वह इसलिए की वो इस बार अपने खुद के लिए नही बलकि अपने प्रिय व्यक्ति रोशनी के लिए लढ़ रही थी। वो थक गई थी। वह धीरे धीरे कमजोर पड़ रही थी। लेकिन फिर भी वह रोशनी के जान के लिए झुंज रही थी।

श्रीकांत जोर जोर से दरवाजे को धक्का देने लगा। और आखिर दरवाजे की अंदर की कड़ी टूट गई और दरवाजा खुल गया।

उसने देखा की मैरी के हाथों में चाकू है इसलिए वह तेजी से उसकी ओर दौड़ पड़ा। साथ में नीलम, अक्षदा और प्रज्ञा रोशनी को छुड़ाने के लिए दौड़ पड़ी। आखिर श्रीकांत ने मैरी को काफी संघर्ष के बाद बांध दिया। मैरी अब पूरी तरह से थक चुकी थी इसलिए उसपर अब सुलेखा ही हांवी थीं। वह खुद को बचाने के लिए तड़फड़ा रही थी। श्रीकांत, नीलम और रोशनी मैरी को ऊपर के कमरे में ले गए। ताकि बस्ती वालों को इस बात का और मैरी के इस हालत का पता न चल पाए। उसी वक्त विलास भी फादर डेविड के साथ बंगले में आ गए। उन्होंने बंगले का दरवाजा और खिड़कियां बंद कर दी। अब शाम के आठ बजे थे।

वे सब एकसाथ ऊपर के कमरे में बैठ गए। उसी वक्त किसन भी मैरी को देखने वहा आया। उसने बंगले का दरवाजा खटखटाया। थोड़े ही पल के बाद विलास ने दरवाजा खोला।

विलास ने कहा, “अरे नहीं वहा बस्ती पे मांग लो। आज हम नही दे सकते।“

“नही मैं आज मांगने नही कुछ बताने आया हूं। वो यहां रहने वाले माई के बारे में।“, किसन ने कहा।

यह किसन की बात सुनते ही विलास ने उसे अंदर ले लिया और वे ऊपर के कमरे में गए।

वे सारे अब श्रीकांत और नीलम के कमरे में एकसाथ बैठे हुए थे। सारे दरवाजे और खिड़कियां बंद थी। सुलेखा अब उनके सामने बेड पर बैठी हुई थी। उसके हाथ और पैर उन्होंने बांध दिए थे। उसके मूंह को भी उन्होंने बांध दिया था ताकि वह चिल्लाए ना। फादर उसके पास कुर्सी पर बैठे हुए थे।

विलास ने फादर से कहा, “फादर ये यहां बस्ती पर कुछ दान मांगने आता है। ये मैरी के बारे में कुछ जानता है।“

“क्या जानते हो?”, फादर ने कहा।

किसन ने वह घटी सारी घटना और बाते बताई। उसने अपने थैले में से एक पुरानी किताब निकाली। उसने वह पन्ने खोलकर फादर को दिखाए जिनपर सारी विधियां और मंत्र थे। उसकी यह बाते सुनकर सबके सब चौंक गए।

उसने उन्हे वह दरवाजा कैसे बंद कर सकते है और सुलेखा को फिर से कैसे नरक में भेज सकते है यह भी बताया।

किसन ने कहा, “लेकिन वह दरवाजा बंद करना संभव नहीं है। क्योंकि माई को खुद वह मंत्र पढ़ने होगे पूरी जिज्ञासा के साथ। लेकिन मुझे लगता है सुलेखा उसे अपना नियंत्रण नहीं लेने देगी। यह माई के लिए मुश्किल हो सकता है। और वह प्रयास करेगी तो उसे ही तकलीफ होगी। और दूसरा उपाय यह है की!” इतना कहते ही वह रुक गया।

“क्या है दूसरा उपाय?”, फादर ने कहा।

“या माई को मरना होगा। तभी वह दरवाजा बंद हो सकता है और सुलेखा की आत्मा फिर से नरक जा सकती है।“, किसन ने कहा।

यह सुनकर सारे चौंक गए।

“यह कैसा जादू टोना है। इसलिए मैं लोगों से कहता हूं की ऐसी बातों से दूर रहा करो।“, फादर ने कहा।

सुलेखा हंसने लगी।

फादर ने उसके मूंह पर से कपड़ा हटाया।

फादर ने कहा, “तुम आखिर क्यों इन लोगों को मारना चाहती हों? आखिर क्या वजह है इसके पीछे? और तुम कौन हो और एक आत्मा बनके कैसे आई?”

सुलेखा अब जोर जोर से सांस लेने लगी। और साथ में मुस्कुरा भी रही थी।

फिर उसने कहा, “सुनो!! मेरे बारे में जानकर क्या करोगे? मेरी बेटी के बारे में बताती हूं।“

कमरे में बैठे सारे सुलेखा की ओर गौर से देख रहे थे। उसकी आवाज अब नर्म और दुःख भरी थी। जिसमे अब कोई भी डर नहीं था।

सुलेखा ने अपनी बात आगे बढ़ाई, “मेरे गले में पहनने का ताबीज जिसे मैंने मेरे मृत्यु के वक्त एक दरवाजा बनाया था वो मेरी बेटी के पास बचपन से था। हालाकि कुछ साल तक मैं अपनी बेटी को ठीक से महसूस नहीं कर पाई। और नाही वो मुझे ठीक से सुन पाई। इसकी वजह थी की वह बोहोत खुश थी। शायद उसे प्यार करने वाले, चाहने वाले मिल गए थे। लेकिन जब वो बड़ी हुई और तब उसकी शादी भी हो चुकी थी तब मैने उसे धीरे धीरे महसूस करना शुरू किया क्योंकि तब भी वह गले का ताबीज उसके पास था। इसकी बस एक ही वजह थी की वह बोहोत निराशा में थी। वह अकेलेपन से गुजर रही थी। मैं उसे फिर से पुकारने लगी और फिर उसे मेरी आवाज भी सुनाई देने लगी।

सब हैरनियत से बस सुलेखा की बाते सुन रहे थे।

सुलेखा ने कहा, “सुमित्रा के पति का बाप एक बीमारी से मर गया था। और उसकी पत्नी भी अब बीमारी से गुजर रही थी। कोई दवा उसपर असर नहीं कर रही थी। सुमित्रा बोहोत ही निराशा में थी। बोहोत दुःख में थी। उसके ससुर को उसने मरते देखा था लेकिन वह किसी भी हालात में अपने सास को बचाना चाहती थी। उसे पता था की मैं कौन थी। इसलिए आखिर उसने सोचा की मुझे आजाद करे ताकि उसकी सास बच जाए। पता है उसने वह मंत्र कही लिखकर भी नही रखे थे। बलकि जब से बचपन में वो अनाथ हुई तब से वो हररोज उस मंत्र को कहती थी ताकि वह भूल न जाए। फिर आखिरकार उसने मुझे आजाद कर दिया। फिर मैने सुमित्रा के जरिए अपनी विद्या से उसका इलाज करना शुरू किया। उसके शरीर में बदलाव आना शुरू हुआ था। लेकिन एक दिन वह अचानक से गुजर गई। मैं भी सोच में पड़ गई। फिर मुझे पता चला की यह सब बस्ती के लोगों ने किया था। दगड़ू की पत्नी ही थी जो उन्हे दवाईयां देती थी। फिर मुझे पता चला की वे लोग मंत्र इस्तमाल करते थे। इसी वजह से उसकी सास मर गई थी। मैने सुमित्रा को कुछ नही बताया। मेरी बेटी सुमित्रा रात दिन बस रोती रहती थी। उसके पति ने और मैंने उसे बोहोत समझाया तभी वह थोड़ा अच्छा महसूस करने लगी थी।

अब सुलेखा की भी आंखे भर गई थी।

उसने नर्म आवाज में कहा, “मेरी बेटी के ऊपर और उसके परिवार के ऊपर बरसों से एक काला साया था जो वो समझ नही पाए। बस्ती के वो लोग उनके दिमाग के साथ खेल रहे थे। फिर मैने उर्मिला को और कमला को अपनी विद्या शक्ति से मार दिया। मैं चाहती थी की वे लोग यहां से निकल जाए। लेकिन वे नही गए। क्योंकि उनकी यहां आने से पहले ही कोई बड़ा योजना थी।“

“कैसी योजना?”, फादर ने कहा।

सुलेखा ने बताना शुरू किया, “बताती हूं। फिर मैंने सोचा की मुझे अब आजाद हो जाना चाहिए और फिर मैं उन सबको यहां से हकाल दूंगी। आजाद होने के लिए मुझे ऐसी किसी की बलि देनी थी जो सुमित्रा के लिए मायने रखती थी। और वह थी सुंदरा। मैंने सुंदरा को एक दिन बांध दिया और मैं उसे मारने ही वाली थी की सुमित्रा ने मुझे रोक लिया। बिल्कुल आज की तरह जैसे रोशनी को मारने से मैरी ने मुझे रोका था। उस दौरान दगड़ू को पता चल गया। उसने अपनी बहन को छुड़ाया और मुझे बांध दिया। वे सब बंगले में इकठ्ठा हो गए। उसकी बेटी मैरी स्कूल गई थी। और पति बाहर अपने काम से। उन लोगों को पता नही था की सुमित्रा के अंदर मैं हूं। उन्होंने उसे चुड़ैल कहा और उसे मार डालने की योजना बनाई।“

यह सुनते ही कमरे में बैठे सबके होश उड़ गए।

सुलेखा ने आगे कहा, “उन्होंने सुमित्रा को सब बाते बताई। की यह उनकी योजना यहां आने से पहले ही की थी। उन्होंने सुमित्रा के ससुर को मार डाला फिर उसकी सास को। फिर वह सुमित्रा को और मैरी को भी ऐसे ही मारकर उसके पति से सारी जमीन अपने नाम करवाने वाले थे।“

यह बाते सुनते ही विलास रोने लग गया।

सुलेखा ने आगे कहा, “उन्होंने सुमित्रा को उठाया। एक ने हाथ पकड़े और एक ने दोनो पैर। मेरी बेटी खुदको बचाने के लिए हाथ पैर झटक रही थी। लेकिन उन्होंने उसे उठाया और लकड़ी के एक नुकीले हिस्से पर गिरा दिया। और मेरी बेटी तड़प तड़प कर मर गई। मैं उसके उस दर्द को महसूस कर पा रही थी। मैं बोहोत गुस्सा हो गई थी। लेकिन मैं उसपर हांवी नही हुई। मैं उन्हें खुद के बारे में कुछ नही जानने देना चाहती थी। फिर मरने से पहले मैने दगड़ू को शाप दिया। और सुमित्रा के मरते ही मैं फिर से कैद हो गई और दरवाजा बंद हो गया।“

विलास और रोशनी को आंखो में आंसू थे। अक्षदा और प्रज्ञा एक दूसरे की तरफ देखकर हैरान हो रही थी। फादर भी उसकी यह बाते सुनकर चौंक रहे थे। किसन जहा खड़ा था वहा से वह थोड़ा पीछे हटकर टेबल पर टेक गया था और उसने अपने हाथ में पकड़ी उस मंत्र की किताब को उसी टेबल पर रख दिया था।

सुलेखा ने आगे कहा, “मैरी से मैंने पूछा था की वो उसके बचपन के बारे में क्या क्या जानती है। उसने मुझे सबकुछ बताया। सुमित्रा के पति को सुमित्रा की आवाजे सुनाई देती थी। ऐसी बात बस्ती के लोगों ने फैलाई थी। लेकिन दरअसल यह उनकी विद्या थी। वह कोई सुमित्रा की आत्मा नही बलकि एक शैतानी आत्मा थी। बस्ती के लोगों ने मैरी को ऐसा बताया जिससे उसे लगे की यह सब बस एक बुरा हादसा था और बस्ती के वे लोग अच्छे है।“

फादर ने कहा, “तो अब तुम क्या कर रही हो मैडम के अंदर? तुमने बदला ले लिया ना अपना। सब तो मर गए अब। चली क्यों नहीं जाती अब मैरी के अंदर से।“

“आप नही समझ रहे हो। यह सब बस बदले के बारे में नही था।“, सुलेखा ने कहा।

“तो किस के बारे में था।“, फादर ने कहा।

“मुझे आजाद होना था।“, सुलेखा ने कहा।

सब अब गौर से सुलेखा की बात सुनने लगे।

“मैं आजाद होना चाहती हूं। मैं नरक की और शैतान की ताकद हासिल करना चाहती हूं। मैं उन वेलान कबीले को खत्म करना चाहती हूं। यह दरवाजा तो बस मेरी ताकद का एक हिस्सा है। मैं चाहती हूं की सब जो विद्याएं जानते है और सारे तांत्रिक मेरी पूजा करे और मुझसे डर।“, सुलेखा ने कहा। उसके चेहरे पर अब एक अलग ही डरावनी हसी थी।

“तुम्हे लगता होगा की तुम बोहोत ताकदवान हो लेकिन येशु मसीह से जादा नही। तुम उनके लोगों को कुछ भी नही कर सकती।“, फादर ने कहा।

“हां! मैं वही सोच रही थी की क्यों और आखिर कैसे इस लड़की पर उस धुंवे का कोई असर नहीं हुआ और नही विलास और रोशनी पर।“, सुलेखा ने कहा।

“अब मैं चाहता हूं की तुम इसे छोड़कर चली जाओ। नही तो मुझे तुम्हे नरक में फिर से भेजना पड़ेगा।“, फादर ने कहा।

सुलेखा डर गई। वह खुद को बचाने में लग गई। वह झटपटाने लगीं।

उसने कहा, “मैं बलि दूंगी। उस रोशनी की बलि दूंगी। या फिर किसी की भी जो मैरी के लिए मायने रखता है। मैं मार दूंगी।“ वह चिल्ला रही थी और खुदको छुड़ाने के लिए संघर्ष कर रही थी।

फादर उठ गए। उन्होंने कहा, “चलो! अब निकल जाओ येशु के नाम से मैं तुम्हे आज्ञा देता हूं इसमें से निकल जाओ। क्योंकि शैतान हार चुका है और उसकी आत्माएं भी हार चुकी है।“

यह सुनते ही सुलेखा चिल्लाने लगीं, “मैं जल रही हूं। मुझे छोड़ दो। मुझे दर्द हो रहा है।“

फादर ने कहा, “श्रीकांत, नीलम, विलास, रोशनी, प्रज्ञा तुम मैरी के लिए प्रार्थना करो की उसे ताकद मिले। और अक्षदा तुम यहां मेरे पास आओ।“

अक्षदा फादर के पास जाकर खड़ी हुई। फादर ने उसका हाथ पकड़ा और कहा तुम मेरे लिए प्रार्थना करो। अक्षदा फादर के लिए प्रार्थना करने लगी।

किसन यह सब बस देख रहा था।

फादर ने अपने पहले शब्द फिर से कहे। उन्होंने सुलेखा के सारे अधिकारों को कुचल दिया अपने शब्दों से। सुलेखा को दर्द हो रहा था। वो उस दर्द को महसूस कर पा रही थी।

अब उसका नियंत्रण मैरी के ऊपर से कम होते जा रहा था। धीरे धीरे अब मैरी अपने सामान्य स्तिथि में लौट आई। लेकिन फादर ने कहा, “रुको मत प्रार्थना करो। क्योंकि धोका शैतान का एक बड़ा हथियार है। वो दिखा रही है की वह चली गई है लेकिन वह अभी भी उसके अंदर है।“

वे और जोश के साथ प्रार्थना करने लगे। फादर अपने शब्द दोहरा रहे थे। उसी वक्त सुलेखा फिर से हांवी हो गई। उसे दर्द हो रहा था। उसने दर्द भरी हसी से कहा, “मैं फिर से लौटूंगी। मैं अपने मक़सद को नही भूलूंगी। फिर मुझे कोई रोक नहीं पाएगा। मैं दूसरा रास्ता जरूर ढुंढूंगी।“ फिर वह जोर से चिल्लाई और अचानक से वह चली गई। जैसे ही चली गई। एक पल के लिए सबको वही आवाजे सुनाई दी जैसी मैरी ने, कौतिक ने और किसन ने दरवाजा खुलते वक्त सुनी थी। आग की लपटे और लोगों के चिल्लाने की आवाजे। यह आवाजे काफी भयानक थी।

आखिर सब रुक गए। मैरी अब यहां वहा देख रही थी। वह रोने लगी।

उसने कहा कि, “मुझे माफ कर दो। जो मैंने किया।“

फादर ने उसके हाथ और पैर जो बांध दिए थे उन्हे खोल दिया। रोशनी ने मैरी को जोर से गले लगाया। वे दोनो बोहोत रोने लगी।

फादर ने मैरी से उसका वह लॉकेट ले लिया। फिर फादर, विलास और किसन बंगले के बाहर आ गए। फादर अपनी गाड़ी लेकर चले गए। किसन भी अपनी थैली लेकर चला गया। उसी वक्त सचिन भी मैडम से मिलने वहा आया। क्योंकि उसने बस्ती के बारे में दुःख भरी खबरे सुनी थी।

अक्षदा और प्रज्ञा अपने कमरे में चली गई। प्रज्ञा के हाथ में एक किताब थी। जो उसने टेबल से उठाई थी। उसने उस किताब को अपनी किताबों में रख दिया। उसने उसे किसी को नहीं दिखाया क्योंकि वह उसे देखना चाहती थी।

रोशनी मैरी को उसके कमरे में ले गई। सचिन भी उनके साथ ही था। लेकिन रोशनी ने उसे बताया कि वह थोड़ी बीमार हैं।

श्रीकांत और रोशनी भी थोड़े हैरान ही थे इन सबके बारे में। लेकिन उन्हें अपनी बेटियों पर नाज हो रहा था।

अक्षदा और प्रज्ञा घटी सारी बातों पर फिर एक बार चर्चा करने में लग गई।

किसन अपने घर वापस आ गया। शाम हो गई और कौतिक भी वहा आ गया।

किसन ने घटी सारी बाते अपने गुरु को बताई। कौतिक हैरान रह गया।

उसने किसन से कहा कि, “मतलब इस दरवाजे को बंद करने का एक और भी तरीका है। लेकिन किसन वो लोग और हम अलग है। हमारी प्रथाएं और हमारे सिद्धांत उनसे अलग है।“

कौतिक को अपनी बहन के लिए भी बोहोत दुःख हो रहा था। लेकिन उसे खुशी भी हो रही थी की वो अब ठीक है।

“मालिक अगर क्या होता की सुलेखा उस औरत की बलि देने में कामियाब हो जाती?”, किसन ने कहा।

“तो उसे रोकना बोहोत मुश्किल हो जाता। वह आजाद हो जाती। वह जिसपर चाहे उसपर हांवी होने की कोशिश करती और अपनी योजनाओं को पूरा करती।“, कौतिक ने कहा।

उसी वक्त कौतिक को अचानक से एक आवाज सुनाई दी, “मेरे बेटे।“ कौतिक को गुस्सा आ गया। उसने अपने हाथ में बंधे ताबीज को देखा। उसने उस ताबीज को निकाला और नदी के किनारे जाकर अपनी पूरी ताकद से नदी में फेंक दिया। वह उसी किनारे के पास बैठकर अपने बीते कल के बारे में, वेलान कबीले के और अपने बस्ती के बारे में सोचने लगा। वह सारी बाते उसके दिमाग में घूम रही थी। वह उन सारी बातों को याद कर रहा था जो उसने सुनी थी। अपने कबीले के और वेलान कबीले के बीच घटी सारी घटनाएं। फिर वह उठकर अपने घर में चला गया।


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