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मानवता के पुजारी

By Ramasray Prasad Baranwal


क्या आप में से किसी ने मानवता के पुजारी को कहीं देखा है ? अधिकतर का जवाब होगा नहीं । लेकिन मैंने देखा है ।बात उन दिनों की है जब मैंने परा - स्नातक पूरा करने के बाद नौकरी की तलाश में पूरे देश में घूम घूम कर प्रतियोगी परीक्षाएं दे रहा था, मैंने सोचा भी नहीं था कि एक अदद सरकारी नौकरी मिलना इतना मुश्किल कार्य है, नौकरी की तलाश में काफी समय बीत चुका था। हम चार लोग एकसाथ परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे । चार इसलिए साथ थे की हम सभी सामान्य घर के लड़के थे और हम सभी के बीच आपसी समझ उत्पन्न हो गई थी । कभी किसी के पास पैसे नहीं होते और कभी किसी के पास पैसे कम पड़ते । परंतु हम सभी एक दूसरे की मदद करते और जरूरत पर मदद मांगने में झिझक महसूस नहीं करते । तरह तरह के लोगों से भेंट होती । लेकिन हम सबकी समझ में आ गया था की नौकरी इतनी आसानी से मिलने वाली नहीं है । अभी तो हम सोच रहे थे कि जो थोड़े पैसे हम लोगों के पास बचे थे उन्हे बहुत सोच समझ कर खर्च करने की जरूरत है। इसी बीच एक बार हमें पुनः दिल्ली परीक्षा में सम्मिलित होने जाना था । और साल का अंतिम मास में होने के कारण सबके पास पैसे कम हो रहे थे । फिर भी परीक्षा तो देनी ही थी । बस एक ही बात अच्छी यह थी कि सभी चाहते थे कि परीक्षा साथ - साथ ही देने जाया जाए।

उस समय’ आज के समय जैसी सुविधाएँ नहीं थी की घर पर फोन किया और पैसे खाते में ट्रांसफर हुए। घर पर सूचना का एक ही तरीका था की पहले चिट्ठियाँ जाती तब उधर से मनी ऑर्डर आता और यह सब करने में कम से कम पंद्रह दिन लग जाता था। फिर भी सबके मन में परीक्षा देने की इतनी जबरदस्त इच्छा थी कि सभी उतावले थे और कई बैंकों की संयुक्त परीक्षा होने के कारण सीटें काफी थी।

खैर सभी ने एन केन प्रकारेण पैसे की व्यवस्था की और निकल पड़े परीक्षा देने। वाराणसी से दिल्ली जाना था। दिल्ली पहुँचते ही पहली मुसीबत ये आई कि हममें से एक भाई को बुखार आ गया। वाराणसी में होते तो BHU के हेल्थ सेंटर में दिखाकर दवाइयाँ और इलाज मुफ़्त हो जाता , परंतु यहाँ पता करने पर एक डाक्टर साहब का पता चला, लेकिन उस समय डाक्टर साहब की फीस ही १०० रुपये थी ।अर्थात कि कम से कम ३०० रुपये का चक्कर लगना था । और जैसा मैंने पहले ही बताया की हमारी आर्थिक स्थिति इतने पैसे खर्च करने की बिल्कुल नहीं थी। परीक्षा देने रहने और वापस लौटने भर के पैसे बड़ी मुश्किल से जुट पाए थे। उस समय रेलवे स्टेशन के बगल में ही हमलोगों ने एक डबल बेड रूम का कमरा १००/ रुपये प्रतिदिन के हिसाब से लिया था , और होटल वाले को एक रूम में चारों लोगों के रहने का इजाजत बड़ी मुश्किल से लिया था। हम लोग वहाँ रूम के बाहर चुप चाप मुँह लटका कर बैठे थे ।किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए ।



एक ने कहा की चलो अगली ट्रेन से वापस चला जाए । कम से कम बीमार दोस्त का इलाज तो सही तरीके से हो जाए, परंतु बिना परीक्षा दिए वापस लौटने की इच्छा भी नहीं हो रही थी । और जो भाई बीमार था वह तो बिना परीक्षा दिए न तो डॉक्टर को दिखाना चाह रहा था और न वापस लौटना चाहता था । अभी हम लोग इसी उधेड़बुन में थे कि क्या किया जाए । तभी होटल का मालिक किसी काम से ऊपर आया और हमलोगों को इस तरह बैठा देखकर उसने पूछ लिया की क्या बात है, हम लोग इस तरह से क्यों बैठ रहे हैं ,पढ़ लिख क्यों नहीं रहे हैं । यह वहीं व्यक्ति था जिससे अनुरोध कर हमने एक रूम में चारों के रहने के लिए अनुमति ली थी , इसी लिए उसने पूछा था कि हम लोग पढ़ लिख क्यों नहीं रहे हैं। हमारी परेशानी सुनकर वह व्यक्ति बिना कुछ बोले नीचे चला गया ।

हम लोग उस व्यक्ति से किसी अन्य मदद की उम्मीद नहीं कर रहे थे, क्योंकि उसने बड़ी मुश्किल से हम चारों को एक कमरे में रहने की इजाजत दी थी । तभी नीचे से एक काम करने वाला लड़का उपर आया और बोला कि भैया जी ने हम में से किसी दो को नीचे बुलाया है । हममें से दो लोग यह सोचते हुए नीचे गए कि अब कौन सी मुसीबत आ गई है , कहीं होटल छोड़ने का आदेश तो नहीं आ गया । उस व्यक्ति ने हमें कमरे में बुलाया और कहा, तुम लोग क्या चाहते हो , तो हमने बीमार दोस्त के इलाज दिलाने की बात कही और उसके बाद अगले दिन की परीक्षा देने की बात कही।

उस व्यक्ति ने पहले से ही अपने बगल से एक डॉक्टर को बुला रखा था उसने चार खुराक दवाई दी । हमें तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि स्वभाव का इतना कड़क लगने वाला व्यक्ति इतना कोमल स्वभाव का होगा । हम लोग उपर आ गए और उसके बारे में ही बात कर रहे थे । बीमार दोस्त को दवा दिया । तभी वह होटल वाला लड़का हमलोगों के लिए खाना लेकर आ गया । और यह कहकर चला गया की खाना भैया ने भेजवाया है और जरूरत होगी तो और मंगवा लेना , पैसा नहीं देना है।

यह सुनकर तो हमारी आँखें और भी चौड़ी हो गई । दवा खाकर हमारे बीमार मित्र की तबीयत काफी सुधार आया और अगली सुबह जब हम लोग तैयार होकर निकलने वाले थे तभी एक नौकर हमारे पास आकर बताया की भैया जी ने ऑटो वाले को भेजा है वह हमलोगों को लेकर परीक्षा दिलाने ले जाएगा और वापस भी लाएगा ।

सुनकर हमारी समझ में नहीं आा रहा था कि वह यह सब क्यों कर रहा है। अब तो हमारी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था । हमलोगों ने बढ़िया से परीक्षा दी । उसी दिन शाम को हमारी ट्रेन थी । वहाँ से चलने के पहले हम लोग भैया जी से मिलने गए और हमारी औकात के अनुसार उनको पैसे लेने का अनुरोध किया । लेकिन उन्होंने साफ साफ मना कर दिया । उसने सिर्फ एक बात कही कि इस घटना का जिक्र हम लोग किसी और से न करे । हम लोगों के द्वारा कारण पूछने पर मजाकिया लहजे में कहा की मेरी रोजी रोटी पर इसका उलटा प्रभाव पड़ेगा ।हम लोग समझ गए कि वह हमारी मदद की बात किसी और से बताना नहीं कह रहा था ।

हम लोंगों ने मन ही मन कहा की मानवता के पुजारी शायद ऐसे ही होते हैं , हमने वहाँ से चलते चलते पूरे सम्मान से उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया और हमने उस मानवता के पुजारी को खुद अपनी दोनों आँखों से अश्रु पूर्ण विदाई दी.। आज भी जब कभी उस भैया जी की याद आती है तो उनके सम्मान में आंखें नम हो जाती हैं ।

By Ramasray Prasad Baranwal





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