भारतीय समाज में युवाओं के भविष्य को लेकर बढ़ती समस्याएं और चुनौतियां!
- Hashtag Kalakar
- Apr 14, 2023
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By Anurag Shukla
आज के इस आधुनिक दुनिया में जितना तकनीक के विकसित होने पर जीवन भले ही सरल होता जा रहा है, लेकिन एक स्वास्थ्य पूर्ण मानसिक स्तर पर जीना उतना कठिन भी होता जा रहा है। तकनीकें एक सहायक के रूप में कार्य करती हैं। जिससे जीवन सरलता एवम कुशलता पूर्वक निर्वहन हो। लेकिन आज के इस युग में बढ़ती युवाओं में मानसिक अवसाद लगातार उन्हें क्षिप्त और विक्षिप्त करती जा रही है। जिससे उनके भविष्य में यह चुनौती एक बाधा बनके खड़ी है। इसके हम मूल जड़ पर बात करें तो इसका सबसे बड़ा कारण है- हीनभावना और डर
ये सब भावनाएं और विचार धाराएं आती कहां से है? तो इसका उत्तर यही होगा की हमारा समाज और आस पड़ोस के ही लोग हैं। जिन्होंने बच्चों और युवाओं के मन में कुंठित भावनाओं का विचार भर दिया है। और वह लगातार तुलना पर तुलना करते जा रहे हैं, की देखो वो तुमसे कितना आगे है, तुम्हे कुछ नहीं आता, वो तो सरकारी नौकरी भी पा लिया 50 हजार वाली महीने की।
हम यह सबसे बड़ी भूल करते जा रहें है, युवाओं के प्रति जिनके मन में लगातार डर और हीनभावना का संचार कर रहे हैं। जब युवा अपने मानसिक विकास की प्रक्रिया में होता है, तो उसे एक सही माहौल या एक सही परिवारजन या फिर एक शिक्षित और समझदार माता पिता की जरूरत होती है। जिससे उसे एक सही दिशा मिल सके। उसके जीवन के बनने और बिगड़ने की शुरुआत अभिभावक की यथास्थिति और जमीनी स्तर से होती है।
लेकिन यही बात हम समझ नहीं पाते और जैसे जैसे युवा बड़े स्तर की कक्षा में प्रवेश करते हैं, तो अभिभावक उनके उपर दबाव डालने लगते हैं, कैरियर के चुनाव को लेकर कि आगे तुम्हे किस क्षेत्र में जाना है। यहीं पर सबसे बड़ी गलती कर जाते हैं क्योंकि वे लगातार तुलनात्मक जीवन जी रहे है, उनको बाहरी सब जैसा दिख रहा है उसी सबको पाने की चाहत के कारण वो अपने बेटे पर अपनी जिम्मेदारी का बोझ डाल रहे हैं। की नहीं तुम ऊंचे पद पर जाओ और दुनिया को और समाज को दिखाओ की मैं क्या चीज हूं और मेरे पास ये ये चीजें हो सकती हैं। ये तो बड़े अहंकार की बात हो गई की तुमने अपनी सारी कामनाओं का बोझ उसके सिर पर डाल दिया। उसके भविष्य को और अंधकार में डाल दिया। जो एक युवा जिसमें कई ऊंची संभावनाएं थी जिससे वह मुक्त्तः अपने लक्ष्य की ओर बढ़ सकता था।
और ये बड़ी गंभीरता की बात है की जो लोग अपने आपको सामाजिक कह कर युवाओं को जो इस तरीके के ज्ञान को बांटते फिरते रहते हैं, भविष्य के चुनाव को लेकर चाहे वह भले ही अपने जीवन में ऊंची शिक्षा या फिर कुछ ऐसा ऊंचा काम न किया हो लेकिन उनकी सलाह देने में, किसी से तुलना में और किसी को नीचा दिखाने में उनकी बड़ी रुचि रहती है। अगर मुड़ कर उन्ही सलाहकार का जीवन देखा जाय तो बिल्कुल सड़ा हुआ, निरर्थकता और बेहिशीपन से भरा हुआ होगा। लेकिन उन्हें तो सामाजिकता का चोला पहनकर अपने अहंकार को और प्रतिष्ठित करना है। ऐसे लोग समाज में एक असमानता का भाव पैदा करते हैं। ऐसे लोगों से बचना बहुत जरूरी होता है। इसीलिए एक बच्चे की परवरिश करना बड़ी चुनौती का काम होता है, क्योंकि वही बच्चा कुछ साल बाद एक युवा रूप में विकसित होकर एक समझदार व्यक्ति बनके समाज में उभरेगा, कुछ नई और ऊंची चुनौतियों को स्वीकार करेगा और फिर उसे तोड़ेगा अपने लगन से, अपने मेहनत से।
लेकिन यह समाज उसको कह कहके पहले से ही तोड़ देता है। जब कोई व्यक्ति समझदार या फिर ऊंची शिक्षा ग्रहण किया हो और मानसिक स्तर पर और आध्यात्मिक स्तर पर होके माता पिता बनता है, तो उसके परिवरिश के अनुसार उसके बच्चे में एक सदैव उच्चतम की संभावना बनी रहती है। क्योंकि उसकी शिक्षा दीक्षा शुरुआत से ही एक ऊंचे माहौल में पली हुई रहती है। तो वह युवा समझदार और चेतनशील होता है, जिससे वह दुनिया को समझने और परखने की ताकत की पैदा कर लेता है और इसी कारण वह अपने भविष्य के निर्णयों और चुनावों को एक सही और सार्थक दिशा में करता है।
जब वही शिक्षा शुरुआती से नहीं दी होती है तो वही युवा मन बिल्कुल बुद्धू और ना समझ हो जाता है और वह सौ तरह की मूर्खताएं और चालाकियों को सीख लेता है। और वह समाज के इन तानों से लगातार डरा और सहमा रहता है। भीतर से वह बिल्कुल खोखला हो जाता है, हीनभावना का शिकार हो जाता है। एक युवा में जो क्रांति और जोश की लहर होनी चाहिए वह भी खत्म हो जाती है। और इन्ही सब कारणों से धीरे धीरे वह एक गहरे मानसिक अवसाद में चला जाता है और अंततः वही युवा एक आत्महत्या का शिकारी बन जाता है। और यह घटना लगातार जोर पकड़ी हुई है, कहीं स्कूलों से , कालेजों से और कहीं परीक्षा में फेल होने से ऐसी खबरे अक्सर सनसनी खेज की तरह सुनने को मिलती रहती हैं। और यह कितने दुखद की बात है की जो हमारी युवा पीढ़ी बोध से भरी हुई नहीं होती है तो आगे चलकर उसको कितना बुरा और भयावह परिणाम मिलता है।
और इसी क्रम में देखें तो युवाओं के मन को बिगाड़ने के लिए फिल्मों का बहुत बड़ा हाथ रहा है। जिसे हम कह देते हैं की फिल्में तो समाज की दर्पण होती हैं, की जैसा समाज है बिलकुल उसी तरह की फिल्में बनाई और दिखाई जाती हैं। लेकिन अब ऐसा कहीं नहीं दिखाई देता, सिर्फ उनमें से कुछ ही सीमित और उनकी मात्रा बहुत कम ही है, जो समाज की दर्पण की तरह काम करती हों। ऐसी बहुत कम और मुश्किल फिल्में ही मिलेंगी जिनको आप अपने परिवार के साथ देख पाओ। ऐसी फिल्में अब क्यों नहीं बनाई जाती है? उसका सबसे बड़ा कारण है, मोटी रकम से।
क्योंकि वो आम आदमी के मन को जानते हैं, की कितनी गिरी हुई हालत है और वासना से पूरी तरह ग्रस्त हैं, तो उनको उसी अनुसार वो सारे कंटेंट दिखाएं जाए, जिससे वो प्रभावित हो सकें और उनकें मन में अश्लिलता का उद्वेग बढ़े और पूरी तरह उनको नियंत्रण में कर लो वो सब सारे उत्तेजित चीजें दिखा दिखा के। नहीं तो फिर वो मोटी रकम आम आदमी से कैसे निकलेंगे?
क्योंकि मन की ये तो मूल वृत्ति है, उसका पूरा स्वभाव प्राकृतिक है। उसकों कहीं कुछ उत्तेजक चीज दिखा और कुछ लाभ की पूर्ति की चीज दिखी तो वो निश्चित ही उधर की तरफ भागेगा।
ये जो पूरी एक व्यवस्था चल रही है, कहीं कला और कहीं रोजगार के नाम पर लेकिन इसका परिणाम नहीं देखा जा रहा है की इस तरीके के जो प्रदर्शन किये और दिखाए जा रहे हैं, इसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है? जाहिर सी बात है की अगर कोई चीज व्यापक स्तर पर होती है, तो उसका प्रभाव भी व्यापक स्तर पर होता है क्योंकि समाज वह चीज देख देख के एक व्यक्तिगत और परंपरागत धारणा बना लेता है और जीवन को भी वैसे वैसे जीने भी लगता है। और इसी वजह से हिंसात्मक और उत्तेजक चीजों का प्रभाव युवाओं में सबसे ज्यादा देखा जा सकता है। क्योंकि वे अभी नए जोश में होते हैं। जो कल्पना है, जो नकली है, जो झूठा है, जिसमें कोई दम नहीं है, उसको वो अपने वास्तविक जीवन में उतारने लगते हैं। इसलिए उनमें एक कुकृत्य करने का भाव पैदा हो जाता है। तो इससे चाहे आमजन हो या फिर युवा वर्ग हो, उसके जीवन की बहुत बड़ी बर्बादी होती है। वो फिर एक चुनौती बनके खड़ी हो जाती है, और यही उसकी मूल समस्या बन जाती है। और अंततः युवाओं के पास इन सब अवसादों और विकारों से बचने का उपाय एक ही है की वो अपने भीतर एक समझ पैदा करें। अपने इतिहास को भी जानें और अपने वर्तमान जीवन को भी गौर से देखें की क्या यथास्थिति ठीक राह पर चल रही है की नहीं ? प्रश्न जरूर करें बहुत अनिवार्य है। इस बाहरी संसार से भी कहीं ज्यादा जानना जरूरी है, भीतरी संसार को , इसको जान लिया तो फिर सब कुछ जान लिया। क्योंकि तुम्हारे भीतर जो घटना घटित होती रहती है, वही घटना बाहरी भी घटित होती रहती है। बाहरी का कोई अस्तित्व नहीं है, बिना भीतरी संसार के। एक से एक महान ग्रंथ है, एक से एक महानदर्शनिकों के दर्शन हैं, उनके पास जाइए, उनकी पुस्तकें पढ़िए और उनसे जीवन जीने की कला को सीखिए। यह यात्रा थोड़ा कठिन जरूर है, लेकिन इसकी कठिनाई में बड़ा सुकून है, बड़ा आनंद है। तब धीरे धीरे जाकर कहीं तुम इस पूरे अस्तित्व को समझ पाओगे। और तुम्हे किसी मोटिवेशन की भी जरूरत नहीं होगी क्योंकि तब तुम्हारे भीतर एक बोध से परिपूर्ण एक स्पष्टता होगी। जिससे तुम्हारे भीतर एक स्वतंत्रता और विवेक पूर्वक एक ऊंचे लक्ष्य को चुनने की शक्ति होगी।
By Anurag Shukla

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