बाबूजी
- Hashtag Kalakar
- Jan 13
- 2 min read
Updated: Jul 16
By Asha Rani Sharan
मेरे पिताजी एक सीधे-साधे, सच्चे, ईमानदार और कर्तव्य परायण व्यक्ति थे। इतने बड़े पद पर रहते हुए भी उन्हे थोड़ा भी अभिमान नहीं था। हम पाँचों भाई बहनों में वह मुझे सबसे ज्यादा प्यार करते थे। मेरे पति को ब्रेन स्ट्रोक होकर पैरालिसिस हो गया। मेरे पिताजी आहत हो गए। उनके जीवन को विषाद ने घेर लिया। कुछ दिनों बाद जब वे मृत्यु शैय्या पर थे तो मैं उन्हें देखने भी नहीं जा सकी। उनकी मृत्यु हो गई और मैं अंतिम दर्शन के लिये भी नहीं जा सकी। मैं जिंदा लाश के समान हो गयी थी। कुछ दिनों बाद पश्चाताप में मैंने श्रद्धांजलि के रूप में बाबूजी पर यह कविता लिखी। उन्हें सादर समर्पित है।
बाबूजी मेरे बाबूजी
भोले भाले सीधे-साधे
तन सुंदर था मन निर्मल था
छल कपट से थे कोसों दूर
सादा जीवन उच्च विचार
जीवन का था यही मूलाधार
शांत, सौम्य और स्नेहिल थे वो
बाबूजी मेरे बाबूजी
क्रोध उन्हें छू न सका था
कटु बोल ना थे उनके
सबसे मिलते अपनों जैसा
ऊंचे पद का गर्व न था
किसी चीज का लोभ ना था
संत सरीखे बाबूजी थे
बाबूजी मेरे बाबूजी
कष्टमय था सारा जीवन उनका
दुबली पतली काया थी उनकी
अदम्य साहस व अद्भुत शक्ति
इनसे भरपूर थे बाबूजी
कभी ना डरते, कभी ना हारे
बाबूजी मेरे बाबूजी
सेवा भी कोई उनसे सीखे
पहले पक्षाघात ग्रसित पिता की
उन्होंने अद्भुत सेवा की
फिर अस्सी वर्ष की वृद्धावस्था में
सात वर्ष तक शैयाग्रस्त पत्नी की
बहुत कष्टप्रद सेवा की
तनिक न ऊबे बाबूजी
बाबूजी मेरे बाबूजी
जीवन के उस अंत समय में
मार्मिक व असहनीय पीड़ा में
स्वयं पड़े थे बाबूजी
रोते बच्चे, घबराए परिजनों को
ढ़ाढ़स देते और समझाते
पर तनिक न रोए बाबूजी
बाबूजी मेरे बाबूजी
आखिर वह क्षण आ ही गया
काल के गाल में समा गए बाबूजी
मैं चरमरा गई, हो गई धराशायी
उजड़ गई मेरे सपनों की दुनिया
तड़पती रही मैं एक क्षण मिलने को
अंतिम दर्शन करने को
पर हालात की ऐसी मजबूरी
कि हो ना सकी ये आस पूरी
और चले गए मेरे बाबूजी
बाबूजी मेरे बाबूजी
मेरे रोम रोम में बसते थे वो
उनके रोम रोम में रहती थी मैं
अपने मन की मुझसॆ कहते
मेरे मन की सुनते थे वो
अब तक था एहसास
उनके इस साथ का
और इस प्यार का
पर यह क्या, अब कुछ नहीं
शब्दों के बाण है मुझे चुभते
अपनों के दिए घाव नहीं सूखते
हृदय में मेरे हाहाकार है
और मन में है चित्कार
ढ़ाढ़स देने को नहीं रहे अब
बाबूजी मेरे बाबूजी
चरणस्पर्श
By Asha Rani Sharan

Comments