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बड़े शहर के ख़्वाब

By Ishani Gupta


ख़्वाब तो देखे थे बहुत मैंने,

एक नए शहर के,

नई नौकरी के,

नए लोगों के साथ, नई दोस्ती के।


पर मुझे क्या पता था,

कि उस ख़्वाब को जीने के लिए,

छूट जाएँगे मेरे अपने।


छूट गया वो शहर, जो अपना-सा लगता था,

वो दोस्त, जो परिवार-सा लगता था,

वो मम्मी के हाथ के परांठे,

वो पापा की डाँट में छिपा प्यार,

और वो भाई-बहन की प्यारी नोक-झोंक।


कहते हैं न, कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है।


अब समझ आया —

ऊपर से तो सब अच्छा लगता है,

बड़े शहर की चकाचौंध को देखकर।


सोचा था —

बड़े शहर जाऊँगी,

बड़ी नौकरी पाऊँगी,

परिवार का नाम रोशन करूँगी।


पर क्या पता था,


कि इस बड़े शहर की भागदौड़ में

अपनापन खो दूँगी,

और अकेलापन सच्चा साथी बन जाएगा।।


By Ishani Gupta

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