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फैशन नामा

By Vijay Kumar Nagar


देखा है मैंने जब से. फैशन परेड को करीब से

होश मेरे उड गए. देख कर लिबास अजीब से.

बनाया लिबास इंसान ने. हिफाज़त ए बदन के लिए

उघड़ने लगे हैं बदन. पहन कर लिबास अजीब से.

फिक्र था ना खौफ़. सर्दी गर्मी या कपड़े का ख्याल

मोडल चले जब मंच पर. सनसनी चलने लगी अजीब से.

दिखाने को आमादा हैं. हसीन दबा ढका हुआ बदन

कैसे कैसे सिलते हैं डिज़ाइनर. कपड़े इनके अजीब से.

खुश फहमी में था मैं. ये सब है सिर्फ खातून के लिए

होश फाख्ता हुए देख कर. मर्दों को लिबास में अजीब से.

छुप कर देखा करते थे. जो रिसालों में बड़े और जवान

टिकट ले कर जाते हैं आज. शो में देखने करीब से.

आई है सिनेमा से उठ. नुमाइश ए नंगे पन की लहर

मिलते हुए हैं लिबास. शायद पत्थर युग के करीब से.

कम कपड़ों में होना. होता था बेअदबी का सबब

होने लगी है शामिल. तहजीब की फेहरिस्त में करीब से.

कसे फबती कोई मनचला. मशवरा दो हुस्न को अगर

जमाल है हमारे पास. देखो बन के दीवाना करीब से.

नसीहत दी घर की किसी नारी को. बारे में पोशाक के

देखेगा कोई कैसे मेरा जमाल. छुपा पर्दे में करीब से.

नायिका करती थी जब अभिनय कम से कम लिबास में

बाक्स ऑफिस की खिड़की टूट गई दर्शक गरीब से.

शौक नहीं हैं हमें दिखाने का. पर्दे पर खूबसूरत बदन

बख्शा है खुदा ने बेहिसाब हुस्न. देखो मुझे करीब से.

पैमाना तो कोई होगा. मंच पर दिखाने जवान जिस्म के जलवे

मंच पर कैट वाक करने के. मौके मिलते है बड़े नसीब से.

जमाने का बस चले तो क़ैद कर दे. हमें मुगलिया लिबास में

तय हम करेंगे कि कब. क्या पहनना है क्यों पूछे रक़ीब से.

रखें जायज पर्दे में अपने जवान जिस्म को हर माँ बहन

कोई करें ना करें नीची. ना करनी पड़े 'नाकाम' को नज़र.


By Vijay Kumar Nagar


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