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फिल्म जगत

By Swati Sharma 'Bhumika'


फ़िल्म जगत वैसे तो मनोरंजन करने का एक माध्यम मात्र है।

परन्तु, मनुष्य जीवन को उत्कृष्टता एवं निकृष्टता प्रदान करने में भी

बहुत सहायक सिद्ध होता आया है। व्यक्ति फ़िल्म इसीलिए देखता है

ताकि वह दिनभर किए हुए कार्यों एवं व्यस्थता से हुई थकान को दूर

कर सके। अपने कार्यों से थोड़ा हटकर, थोड़ा हंसकर स्वयं को तनावमुक्त

कर सके। परिवार के साथ बैठकर कुछ क्षणों का आनंद ले सके।

               परन्तु, क्या फ़िल्म जगत सच में हमें सिर्फ़ और सिर्फ़

मनोरंजन ही प्रदान कर रहा है? या उसके कारण कुछ और भी कार्य

सिद्ध हो रहे हैं!

               यदि हम  फ़िल्म जगत का आरम्भ से ही विष्लेषण करें तो

पाएंगे कि फ़िल्म जगत मात्र मनोरंजन नहीं, अपितु हमें एवं हमारी

जीवन शैली, हमारे सोच विचार और भावनाओं को भी काफ़ी हद तक

प्रभावित करता आया है। यदि हम हमारे बुजुर्गों के समय की बात करें,

उस समय की; जब वे युवा थे। सभी ने कहीं ना कहीं फ़िल्म जगत का

अनुसरण अपने जीवन में अवश्य किया है, यह कहने में कोई

अतिशयोक्ति नहीं होगी।

                 हमारा पहनावा, बोलचाल एवं हमारा सम्पूर्ण व्यक्तित्व

ही कहीं ना कहीं फ़िल्म जगत से जुड़ा रहा है। जैसे-जैसे फ़िल्म जगत के

उपर्युक्त व्यवहार में बदलाव आता है। वह बदलाव धीरे-धीरे मनुष्य

जीवन पर भी अपना अधिकार करता चला जाता है।

                  मनुष्य जीवन की आधार शिला उसके देखने, सुनने,

महसूस करने एवं विचार करने पर आधारित होती है। हमारे पहनावे से

लेकर हमारे विचार एवं प्रत्येक व्यवहार में फ़िल्म जगत का योगदान

महत्वपूर्ण  भूमिका निभा रहा है। अब जो चीज़ पूरे मानव जाति को

प्रभावित कर रही है, तो उसका यह दायित्व बनता है कि वह एक

सकारात्मक ढंग से हर बात को सबके समक्ष प्रस्तुत करें।

                   फ़िल्म जगत से मनुष्य बहुत कुछ शिक्षा ले सकता है।

यदि हम कोई सकारात्मक प्रेरणादाई फ़िल्में देखते हैं, तो कुछ दिनों तक

हमारे भीतर एक जोश, एक जुनून भरा होता है। उसी प्रकार यदि हम

कोई नकारात्मकता से परिपूर्ण फ़िल्म देख लें, तो कई दिनों तक हमारे

भीतर कुछ ऐसी भावना घूमती रहती है, जो हमें अच्छा महसूस नहीं

करवाती।



                   परन्तु, हम हमारे जीवन में घटने वाली अप्रिय घटनाओं

के लिए सिर्फ़ फ़िल्म जगत को ही दोषी नहीं ठहरा सकते। क्योंकि यह

मनुष्य पर भी काफ़ी हद तक निर्भर करता है कि वह फ़िल्म में दिखने

वाले कौनसे किरदार को अपने व्यवहार में उतारना चाहता है। क्योंकि

फ़िल्म में तो कई किरदार होते हैं, जिनमें कुछ सकारात्मक एवं कुछ

नकारात्मक होते हैं। समझना हमें होता है, चुनना हमें होता है, सीखना

हमें ही होता है।

                   फ़िल्म जगत का मनुष्य जीवन में लाभ यही है कि फ़िल्में

एक तरह से हमें हमारे समाज का आईना दिखाती हैं। वे हमें हमारे

समाज की विभिन्न प्रकार की मानसिकता एवं रीति नीतियों से अवगत

करवाती हैं। इसीलिए फ़िल्म जगत की यह सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी बनती

है कि वे लोगों के समक्ष वही उदाहरण प्रस्तुत करें, जिससे लोगों में एक

सकारात्मक संदेश पहुंचे।

                    परन्तु, कई बार फ़िल्म जगत का मनुष्य के जीवन पर

दुष्प्रभाव भी देखने को मिलता है। विशेषकर बच्चे एवं किशोरों पर।

क्योंकि यही दोनों आयुवर्ग ऐसे हैं जिनमें किसी भी बात को समझने हेतु

धैर्य एवं स्पष्टीकरण की आवश्यकता अधिक होती है। यदि ये दोनों बातें

चूक जाएं तो इन दोनों ही आयुवर्ग के लिए घातक एवं विनाशकारी

सिद्ध हो सकता है, अथवा हो भी रहा है।

                    आज फ़िल्म जगत ने बहुत ही ज्यादा नियंत्रण हर आयु

वर्ग पर किया हुआ है, जिसके चलते बच्चे एवं किशोर सबसे अधिक

मात्रा में भटक रहे हैं। उनका जीवन एवं भविष्य संकट में झूल रहा है,

और इसी कारण हमारे समाज, अर्थव्यवस्था एवं देश का भविष्य भी

अंधकार की ओर अग्रसर है।

                     ऐसे में हमारी भी यह बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी हो जाती

है कि इन दोनों ही आयु वर्ग के लोगों पर ध्यान दें कि किसी भी माध्यम

से कोई गलत या नकारात्मक संदेश इन तक प्रेषित ना हो।


By Swati Sharma 'Bhumika'




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