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प्रेम की परिभाषा

By Kunal Deepak Devre



तह ए दिल से कहता हूँ शीतल .. सच्चा प्रेम क्या होता है ये जब भी मुझे महसूस करना होता है तब मैं तुम्हारी आँखों की झील में गोते लगा लेता हूँ! उस झील की एक - एक बूंद मुझे तुम्हारे - मेरे प्रति समर्पण से ओत प्रोत कर देती है.! जब भी मुझे विश्वास क्या है, महसूस करना होता है, तब मैं तुम्हारे शब्दों की गालियों में घूम आता हूँ, उन गलियों के हर एक मोड़ पर मुझे तुम मेरे इंतज़ार में खड़ी नज़र आती हो, इस विश्वास के साथ के मैं आऊँगा.! जब भी मुझे साहस क्या है जानना होता है तो मैं तुम्हारी मुस्कान से झाँकती उन रेशमी किरणों में केसरिया हो जाता हूँ, जो अमावस्या की काली रात को भेद कर मुझे उम्मीद का नया सूरज दिखाती है..! और



जब भी मुझे समस्या का हल जानना होता है तो मैं तुम्हारे केशों की सुलझी लटों से बंध जाना चाहता हूं जो हर पल लहरा कर हवाओं से अठखेलियाँ करते हुए मुझे समस्या को भी *जीने* का सबक सिखाती है.! और तुम्हारी अंगड़ाई के तो क्या कहने मेरी जान, तुम्हारी अंगड़ाई ही तो है जो बार बार मुझे खुद की गर्दन टेढ़ी कर तुम्हें देखने को मजबूर करती है..! जब जब तुम्हें देखता हूँ तो क्या होता है वो तो कह ही चुका"

" हाँ हाँ बस बस, बहोत हुई ये फिल्मी बातें, इतना बहोत है मुझे मनाने के लिए! हाँ, कोई और मिल भी गई ना तो झेल नहीं पाएगी तुम्हें" कमर पर हाथ रख कर शीतल ने कहा।

"अच्छा अब झगड़ना बस भी करें? यहीं रहना है या कहीं जाना भी है?" सूरज ने पूछा।



By Kunal Deepak Devre




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