प्रतीक्षा में मैं!
- Hashtag Kalakar
- Oct 25
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By Akshay Khandekar
हूं घाव मैं कुरेदता,
ज़ख्म भरते ही नहीं मेरे,
की फिर नई चोट से,
लहू लुहान हूं आज मैं!
है जिस्म तो महफूज़ मगर,
अंतर मेरा छल्लिं सा है,
है वेदना बहुत मुझे,
पर कहूं भी तो कैसे मैं!
है ताप यूं साराबोर,
जीवन क्षण में रस रहित,
क्रंदन मूक जो गूंजते,
हास्य से छुपता मैं!
त्याग दूं मैं बंध सब,
चला जाऊं सब से परे,
पर फिर किसी मूढ़ आस पे,
पग बेड़ियां बांधता हुं मैं!
हैं अल्प ये विराम क्यूँ?
आधे अधूरे ये ख़्वाब यूं,
गंतव्य के प्रवास पर,
असमंजस से लिप्त मै!
है देह ये मर्याद सा,
ये मन है लेकिन अंतहीन,
तुम न आना अब मुड़कर कभी,
हूं चिरंतन प्रतीक्षा में मैं!
By Akshay Khandekar

Words❤️
Beautiful, Akshay.
Wow!
beautiful