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पुराना छत

By Monika Sha


बदलाव, प्रकृति का एक सुनहरा सच है। इस धरती पर जो कुछ होता है या हो रहा है, वह बदलाव ही तो है। चाहे निर्जीव हो या सजीव। इस धरती के हर एक कण में बदलाव होता है। फिर इंसान क्यों ना बदले, वह भी तो प्रकृति का ही एक हिस्सा है। इंसान के रूप रंग से लेकर उनकी भावनाएं तक बदलती हैं ।सब बदलते हैं।


बदलाव अच्छी चीज़ है। पर कभी-कभी कुछ बदलाव ऐसे होते हैं , जिन्हें हम पसंद नहीं करते। औरों का नहीं पता पर मैं पसंद नहीं करती हूंँ। क्योंकि वह बदलाव मेरी स्मृतियों से जुड़ी होती है। स्मृति ऐसी चीज़ है जो हसीन पल को याद दिला कर आंँखों में आंँसू ला सकती हैं तो बुरे पल की याद दिला कर हंँसा भी सकती है। यह स्मृतियां भी बड़ी अजीब होती हैं।


पिछले कुछ महीनों से मेरे घर के ऊपर एक मकान बन रहा है। जो पहले छत हुआ करता था अब वह मकान में तब्दील हो गया है। उसके ऊपर एक नया छत बन गया है।




जब छत की ढ़लाई हो रही थी तो परिवार के सदस्यों में एक अलग ही उमंग थी। ऐसा लग रहा था कि दुनिया भर के रिश्तेदार हमारे घर में आकर काम करने लगे हैं। मजदूरों और मशीनों की आवाज़ से पूरा घर गूंँज उठता था। इन सब को चाय पिलाओ, बिस्कुट दिया कि नहीं , जूस लाओ इत्यादि। पूरा घर उस छत की ढ़लाई में लगा हुआ था। उनके लिए एक नया छत बन रहा था। इस बात से सब खुश थे। शाम को जब काम खत्म हुआ तब सब थके-हारे घर में बैठकर उसी छत के बारे में चर्चा करने लगे।


मैं भी खुश होना चाहती थी।पर उस दिन मेरे अंदर कुछ ऐसी स्मृतियांँ हिलोरें ले रही थी जो उस छत को लेकर मुझे खुश नहीं होने दे रही थीं। मुझे बार-बार अपने पुराने छत की याद आ रही थी। ठंड के दिनों में, सब उसी पुराने छत पर बैठ कर बातें करते थे। कोई पढ़ता था, कोई खाना खाता था, मांँ कुछ ना कुछ सुखाती रहती थी इत्यादि। एक बैठक-सी बन जाती थी ।


उस छत पर हमने कई नृत्य सीखे जो कहीं किसी कार्यक्रम में किए जाते थे। मेरे घर में सब ने अपनी दसवीं और बारहवीं परीक्षा की तैयारी उसी छत पर की थी। उसी छत पर मैंने अपनी बारहवीं कक्षा के नोट्स बनाए थे।कभी-कभी बैडमिंटन भी खेला जाता था।नया साल मानना है तो उसी छत पर मनाएंँगे , दोस्तो के साथ पार्टी करनी हो तो उसी छत पर करेंगे।मकर संक्रांति के तिल से लेकर छठ पूजा के लिए गेहूं तक की सुखाने की प्रक्रिया भी उसी छत पर की जाती थी। माँं गर्मियों के दिनों में भी आलू के चिप्स उस छत पर ही सुखाती थी।किसी को एकांत चाहिए तो वह भी उसी छत पर जाते थे।


कितने सारे खेल खेले थे उस छत पर, जैसे कोना - कोना, पकड़म- पकड़ाई इत्यादि। रस्सियों से झूले भी बनाए हैं। तो कहीं फूलों और सब्जियों के बगीचे भी खिले थे ।और पता नहीं क्या-क्या किए हैं।


पर अब उस छत पर कुछ नहीं है और कुछ कर भी नहीं सकते हैं।अब सब इस नए बनते मकान को देखने जाते हैं जहां कभी वह छत हुआ करता था। ईंट लग रहा है चलो देखने , सीमेंट लगा दिया चलो देख के आते हैं।रूम बनने वाले हैं,बाथरूम इत्यादि बातें। पर जब भी मैं उस पुराने छत से गुजर कर नए छत की तरफ जाती हूंँ तो एक पल के लिए मेरे पैर खुद-ब- खुद रुक जाते हैं। मेरी नज़रें उस पुराने छत को खोजने लगती हैं।मेरीे आँंखों के सामने वो सारे दृश्य सामने आ जाते हैं जो मैंने उस पुराने छत पर बिताए थे । एक पल के लिए मेरा मन रुआँसा-सा हो जाता है ।अब अगर छत की बातें भी कही जाएंगी तो सब उस नए छत के बारे में ही होगी।मै यह नहीं कह रही कि मुझे मेरा नया छत पसंद नहीं है।मुझे पसंद है पर जो लगाव , जो स्मृतियां उस पुराने छत से है वह किसी और छत से नहीं हो सकती है। वह छत भले ही चारो तरफ से घिरा हुआ था पर वह छत मेरा था। वहां मैं कुछ भी कर सकती थी । पर वह छत अब नहीं रहा ।और यह बदलाव मुझे अच्छा नहीं लगा।


अब भी मुझे याद आता है वही मेरा पुराना छत।


By Monika Sha




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