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पिंजरा

By Monika Sha


सुबह का सूरज अपने किरणें चारों तरफ बिखेर रहा था और हवाएं भी अपनी ताल में झूम रहे थे। इस खिलखिलाती सुबह ने सोई हुई कविता के चेहरे पर भी मुस्कान ला दी थी। और जब सूरज की किरणें धीरे-धीरे उसके चेहरे की तरफ बढी तो उसका चेहरा जगमगा उठा। चिड़ियों ने इस तरह चहचहाना शुरू किया मानो कविता को उठा रही हो,'अब तो उठ जाओ, सुबह हो गई है।'


कविता उठकर अपने बिस्तर पर बैठ गई। बाल बिखरे हुए थे और जोरो से उबासियां लेने के बाद कविता कुछ सोचने लगी। अचानक उसे ख्याल आया कि आज के दिन उसके लिए बेहद ख़ास है। तभी उसकी मां ने पुकार कर कहा,'कविता उठ जा, सुबह हो गई है। बाज़ार भी जाना है। जल्दी कर बेटा।


कविता ने कहा,' उठ गई मां, बस आधा घंटा दे दो मुझे।'


यह कहकर वह नहाने के लिए चली गई। ठीक आधे घंटे बाद, कविता अपने कमरे से निकली। उसके लंबे बालों से अभी भी पानी टपक रहे थे जिसके कारण उसकी काली कुर्ती थोड़ी भीग गई थी। उसे बाहर आते देख उसकी मां ने कहा,'जल्दी से खाना खा ले फिर बाज़ार चलेंगे।'


कविता ने हामी भरते हुए खाना खाने लगी। खाना खाते वक्त उसे ध्यान आया कि पापा नज़र नहीं आ रहे हैं। उसने अपनी मां से पूछा तो उन्होंने कहा,'उनको कुछ काम था इसलिए सुबह जल्दी निकल गए।'फिर उसकी मां जल्दी-जल्दी अपना काम निपटाने में लगी रही।


कविता के पापा एक व्यापारी थे इसलिए व्यापार के सिलसिले में अकसर उन्हें बाहर जाना होता था। उनकी भगवान पर एक अलग ही आस्था है जिसके कारण लंबे समय तक पूजा-अर्चना करते रहते थे। कविता उनकी इकलौती बेटी थी या यूं कहें इकलौती संतान थी। इसलिए वह अपनी बेटी से बहुत ज्यादा प्यार करते थे।


कविता और उसकी मां ने जल्दी-जल्दी अपना काम निपटा कर बाज़ार के लिए चली गईं। वैसे कविता बहुत बार अपनी मां के साथ बाज़ार गई हैं पर जितनी खुशी उसे आज बाज़ार जाते समय हो रही थी उतना पहले कभी नहीं हुआ था। आज वह सिर्फ घर के सामान के लिए बाज़ार नहीं जा रही है बल्कि एक ऐसी ख़ास वज़ह के लिए बाज़ार जा रही है जिससे वह कब से पूरा करना चाहती थी। बचपन से ही उसका मन था कि वह भी एक चिड़िया को अपने घर लाए। जब कविता छोटी थी तब से उसे चिड़ियों से अलग ही लगाव था। जब भी वह अपने छत पर चिड़ियों को उड़ते देखती थी तो उन चिड़ियों की उड़ान में वह गुम हो जाती थी और फिर मुस्कुराने लगती थी। कभी-कभी कबूतर को पकड़ने के इरादे से वह उसके पीछे भी भागती थी। यह अलग बात है की वह कभी पकड़ नहीं पाई। आज उसका यह सपना पूरा हो रहा है ।उसकी खुशी की तो कोई सीमा ही नहीं है। उस सपने को पूरा करने लिए उसको कितने पापड़ बेलने पड़े थे। मां को उसने चुटकी में मना लिया था पर पापा को मनाने में कई दिन लगे।


इस बात पर हमेशा उसके पापा कहा करते थे,'चिड़ियों को पकड़ कर क्या करोगी बेटा। उसे तो भगवान ने बनाया ही है आसमान में उड़ने के लिए।'


पर कविता चिड़ियों के मामले में कुछ सुनना नहीं चाहती थी। उसे चिड़िया चाहिए तो चाहिए। इकलौती संतान होने के कारण माता-पिता को उसके आगे झुकना ही पड़ा।


बाज़ार का दृश्य मेले के दृश्य से कम नहीं लग रहा था। इतनी भीड़ थी जैसे पूरा गांव उठ कर यहीं पर आ गया है और ऊपर से यह शोर। कोई किसी को गालियां दे रहा है, तो कोई दुकानदार से सामान को लेकर नापतोल कर रहा है। कुछ दुकानदार तो अपने में ही मस्त है। दूसरी ओर छोटे-छोटे बच्चों की किलकारियां भी सुनाई दे रही हैं पर बाज़ार का रौनक तो 'शोर' ही है वरना बाज़ार भी फीका लगने लगता है।


कविता इस भीड़ का हिस्सा बनकर ,लोगों को धक्का देकर, उस भीड़ को चीरते हुए आगे निकली और जब भीड़ से पीछा छूटा तो उसके पूरे चेहरे पर पसीने आने लगी। उसे ऐसा एहसास हुआ कि जैसे गर्मी और बढ़ गई हो। उसने अपने पर्स से रुमाल निकाल कर बड़ी तेजी से अपना पसीना पोछा और अपने बालों को बांधते हुए दुकान की तरफ चल दिए। घर का सारा सामान खरीदने के बाद, कविता चिड़ियों की दुकान में गई ।


यह दुकान दिखने में उतनी अच्छी नहीं थी पर पिंजरे में अनेक प्रकार की बहुत सी चिड़िया जरूर थी। इतने सारे चिड़ियों को देखकर कविता दंग रह गई। देर तक उन्हें देखती रह गई। समझ नहीं आ रहा था कि किस चिड़िया को वह अपने घर ले जाए। उसका बस चलता तो वह सभी को अपने घर ले जाती । वह सोच में निमग्न ही थी कि अचानक उसकी नज़र एक तोते पर पड़ी जो बाकी पिंजरे से अलग रखी गई थी। कविता को वह हरे रंग का तोता बड़ा ही मनोहर लगा। वह उसे बड़े प्यार से निहार रही थी।। तोता अपने छोटे-छोटे पैरों से यहां वहां चल रहा था। छोटी-छोटी आंखों से सब पर निगाहें डाल रहा था। कभी वह अपना चोंच खोलता, तो कभी इठलाकर अपना पंख पसारता, तो कभी-कभी कई तरह की आवाज़ निकाल रहा था।


कविता ने यह सोच लिया था कि वह उस तोते को ही अपने घर लेकर जाएगी। कविता ने दुकानदार से कहा,'इस तोते का दाम कितना होगा।'


दुकानदार ने सीधा उत्तर दिया,'हजार का है बहन।'


कविता की मां ने तुरंत उस दुकानदार को पैसे दे दिए। तोता को देते वक्त दुकानदार ने कविता से कहा,'इस तोते पर नज़र रखिएगा। पिंजरा खुला ना छोड़िएगा वरना भाग जाएगा। तोते का मिज़ाज अच्छा नहीं है। फिलहाल कुछ दिन पहले ही एक इंसान ने इस तोते को पकड़ा था और मुझे बेच दिया था। तब से बहुत तंग कर रखा था मुझे इसने और हां यह अभी-अभी जंगल से पकड़ा गया है इसलिए यह अभी बोल नहीं सकता। इससे पिंजरे में रहना पसंद नहीं है इसलिए पिंजरे को बंद रखिएगा।'


दुकानदार का यह मशवरा लेकर कविता और उसकी मां शाम तक घर पहुंच गए। रात को जब उसके पिता घर आए तो उसने इतनी प्रसन्नता से अपना तोता दिखाया जैसे एक छोटी बच्ची अपना खिलौना दिखाती है। उसी रात उस तोते का नामकरण भी हुआ। नाम रखा गया मिट्ठू।


अगली सुबह चिड़ियों की चहचहाहट के साथ कविता भी उठ गई। सुबह उठते ही वह सबसे पहले मिट्ठू से मिली जो उसी के कमरे के खिड़की पर रखी गई थी। मिट्ठू मियां पता नहीं क्यों मुंह फूला कर बैठा था। कविता इस बात पर ज्यादा ध्यान ना दे कर रोज़ की तरह नहाने चली गई।


कुछ देर बाद वह अपने कमरे से निकली तो देखा कि हॉल में पापा समाचार देख रहे थे। रोज़ की तरह वही कोरोना वायरस का समाचार था। चीन की तरफ से निकला यह वायरस भारत की तरफ तेजी से बढ़ रहा है। कविता को इस बात से कोई लेना-देना नहीं था। उसे तो बस इंतजार था कॉलेज खुलने का जो दस दिन के लिए बंद था।


हमेशा की तरह कविता नाश्ता लेकर टीवी के सामने बैठ गई। हालांकि उसे न्यूज़ में कोई दिलचस्पी नहीं थी पर अपने पापा की वज़ह से उसे न्यूज़ देखना पड़ रहा था। जैसे-जैसे न्यूज़ बढ़ता जा रहा था वैसे-वैसे उसके पिता गंभीर होते जा रहे थे। फिर अचानक यह ख़बर मिली कि कोरोना को महामारी घोषित कर दिया गया है। यह खबर सुनकर उसके पिता ने चीन को भरकर गालियां दी और फिर अपने काम के लिए निकल गए।


नाश्ता करने के बाद कविता अपने कमरे में आई और मिट्ठू को खिलाने के लिए कुछ मिर्ची भी लाई थी। जैसे कविता ने मिर्ची मिट्ठू को खिलाने के लिए पिंजरा का दरवाज़ा खोलने ही वाली थी कि उसने मिट्ठू को देखा कि कैसे वह उसे देख रहा है। वह समझ गई कि मिट्ठू उड़ने की फ़िराक में है।


उसने जल्दी से मिर्ची रखी और तेज़ी से पिंजरा का दरवाज़ा बंद कर दिया। इस भागने के चक्कर में मिट्ठू को थोड़ी चोट भी लग गई। वह असफल रहा। मिर्ची को देख कर भी उसे कोई खुशी नहीं हुई। बल्कि वह मिर्ची की ओर पीठ करके बैठ गया। कविता उसके हाव-भाव समझ रही‌ थी। एक बच्चे की तरह प्यार करती थी वह अपने मिट्ठू को।




कविता उसे मनाते हुए बोली,'मिट्ठू मियां! क्यों नाराज़ हो? देखो मैं तुम्हारे लिए खाना लेकर आई हूं। अब इससे जल्दी से खाओ फिर हम खेलेंगे, खूब सारी बातें भी करेंगे। मैं तुम्हें बोलना सिखाऊंगी।'


मिट्ठू हमेशा की तरह मौन भाव मे बैठा रहा। ऐसा लग रहा था जैसे मिट्ठू ने कविता की बात सुनी ही नहीं।


कविता ने फिर प्रयास किया,'हम छत पर बैठकर आसमान को देखेंगे। ठंडी-ठंडी हवाएं बहेगी।'


पर उसने पहले की तरह ही कोई उत्तर नहीं दिया। तभी कविता को अपनी सहेली स्नेहा का फोन आया ।उसने तुरंत फोन उठाया और कहां,'हां स्नेहा बोल।'


स्नेहा ने कहा,'तुझे पता है कॉलेज और कुछ दिन के लिए बंद हो रहा है!कॉलेज के व्हाट्सएप ग्रुप में यह मैसेज आया है।'


यह सुनते ही कविता ने स्नेहा का फोन काटा और मैसेज पढ़ने लगी। यह ख़बर शत-प्रतिशत सत्य निकली। पहले कविता को लगा स्नेहा उससे मज़ाक कर रही हैं पर जब व्हाट्सएप का मोहर उस ख़बर पर लगा तो उसे विश्वास आया। उसने लंबी सांस ली और अपने बिस्तर पर बैठ गई। बिल्कुल मिट्ठू की तरह वह भी मौन हो गई थी। पूरे कमरे में सन्नाटा छा गया था।


कविता की मां ने छत से सुखाए हुए कुछ कपड़े लेकर उसके कमरे में आई थी। आते ही उसने कविता को मौन भाव में बैठे देखा तो पूछ पड़ी,'क्या हुआ? इतनी शांत क्यों हो?'उसके बाद कविता ने अपनी मां को सारा माज़रा बताया।


मां ने कहा,'इसमें क्या है? कुछ दिन की ही तो बात है। उसके बाद कॉलेज खुल जाएगा।'


'कुछ दिन की ही तो बात है। फिर कॉलेज खुल जाएगा।'यह वाक्य कविता के कानों में मिश्री की तरह घुल गई। कविता को उसके खुशियों की चाबी मिल गयी जो कुछ देर पहले गुम हो गई थी।


कविता ने खुश होकर कहा,'हां , कुछ दिन का ही तो बात है। फिर कॉलेज खुल जाएगा। तब तक मैं अपने मिट्ठू के साथ वक्त बिताऊंगी।'


यह कहकर कविता मिट्ठू की ओर इशारा करता है पर मिट्ठू अभी भी मौन ही था। मिट्ठू को इन लोगों से कोई लेना-देना नहीं था। वह तो यहां से जल्द से जल्द फरार होना चाहता था। कविता फिर से मिट्ठू को मनाने में लग गई। उसकी मां भी अपना काम करने लगी।


कविता सेकंड ईयर में थी और उसने हिंदी लिया था क्योंकि उसे हिंदी पढ़ना बेहद अच्छा लगता है। उसे घर से ज्यादा कॉलेज में दोस्तों के साथ वक्त बिताना अच्छा लगता था पर इस महामारी के कारण उसके कॉलेज ने यह ऐलान किया कि कुछ दिन और उसका कॉलेज बंद रहेगा।


दोपहर में कविता अपने कॉलेज काम पूरा करने में लगी रही। काम को पूरा करते-करते शाम हो गया। जब काम करके उठी तो उसने देखा कि मिट्ठू उदास बैठा था। कविता को लगा एक जगह पर बैठे-बैठे उसका मन ऊब गया होगा। उसने फ़ौरन पिंजरा को उठाया और छत की तरफ चल दिए।


छत पर एक खटिया रखा हुआ था और उस पर चादर भी बिछी हुई थी। कविता ने पिंजरा को खटिया पे रखा और उसके पास बैठ गई।


कविता आसमान की तरफ एकटक देखतीे रही फिर उसने मिट्ठू की ओर देखा। मिट्ठू भी आसमान की तरफ ही देख रहा था। ऐसे में कविता ने कहा,'चलो कुछ तो मिला जो मुझे भी पसंद है और तुम्हें भी। तुम्हें भी आसमान देखना अच्छा लगता है और मुझे भी।'


ज़ाहिर है मिट्ठू को आसमान अच्छा ही लगेगा आखिर वह भी तो एक चिड़िया ही हैं। पर कविता यह बात नहीं समझ सकती। उसने मिट्ठू को अपने बारे में, अपने परिवार के बारे में, कॉलेज के बारे में, चिड़ियों से लगाव के बारे में इत्यादि बातें करने लगी। मिट्ठू कुछ सुन नहीं रहा था। वह तो बस आसमान में उड़ती उस चिड़िया को देख रहा था जो दाना चुग कर अपने घोसले में वापस जा रही थी। वह उदास भाव से उन्हें देखे जा रहा था।


रात को जब कविता के पिता घर आए तो कविता उन्हें अपनी पूरे दिन की कथा सुनाई। यह सब सुनने के बाद उसके पिता फिर पूजा में लीन हो गए।


कविता खाना खाकर अपने कमरे में सोने के लिए चली। कमरे में पहुंचकर उसने देखा कि मिट्ठू उसी भाव से रात्रि को निहार रहा था। उसने उसे टोका नहीं। अपने बिस्तर पर बैठकर कविता पहले अपने दोस्तों को व्हाट्सएप पर मैसेज करने लगी। फिर थोड़ी ही देर बाद वह सो गई।


कुछ हफ्ते इसी तरह बीते थे। तब कविता भगवान से यही दुआ करती थी कि जल्दी से जल्दी कॉलेज खुल जाए।इस मुसीबत के समय में उसका एकमात्र सहारा मिट्ठू ही था जिससे वह अपनी सारी बात बताती थी। पर मिट्ठू पहले से भी ज्यादा उदास रहने लगा था। जो कविता से बिल्कुल नहीं देखा जा रहा था। वह उसे खुश रखने की भरपूर कोशिश करती थी पर सब असफल रहा।


जैसे-जैसे कॉलेज खुलने का दिन सामने आता था वैसे वैसे कॉलेज को और कुछ दिन के लिए कॉलेज बंद रखने का भी मैसेज आता था। कविता को समझ नहीं आ रहा था की हो क्या रहा है। एक कोरोना वायरस की वज़ह से कॉलेज को बंद रखने का नियम बढ़ता ही जा रहा था। पर अभी भी कविता को उम्मीद थी कि बहुत जल्द कॉलेज खुल जाएगा। और इस तरह एक महीना बीत गया।


हमेशा की तरह फिर एक नया सवेरा आया। इस सवेरे में पहले जैसी बात नहीं थी। इतने दिनों तक घर में रहने के कारण कविता को देर से उठने की आदत हो गई थी। अब तो ना चिड़ियों की चहचहाहट ना हीं सूरज की किरणे उसे जगा पाती है। सूरज की किरणे उसकी चेहरे की ओर पहुंच पाए उससे पहले ही कविता उससे मुंह मोड़ लेती हैं। अब तो सिर्फ मां की डांट से ही वह बिस्तर से उठती है। फिर भी उसका सारा दिन बेकार ही जाता है। मिट्ठू के साथ अभी पहले वाली कविता ही रहती है। उसके साथ हंसती हैं, बातें करती हैं ,आसमान को निहारती है इत्यादि।


मिट्ठू अब पहले की तरह मौन नहीं रहता था। वह भी बोलता है, खुशियों के मारे नहीं बल्कि कविता के घरवालों को तंग करने के इरादे से। या यूं कह सकते हैं कि बोलता कम था चिल्लाता ज्यादा था। अकसर रात को चिल्ला चिल्ला कर घरवालों को सोने नहीं देता था। ख़ासकर कविता को। जब घरवाले मिट्ठू के पास आ जाते थे तब वह चुप हो जाता था। घरवाले जब वापस अपने कमरे में चले जाते थे तब वह फिर से चिल्लाने लगता था।


कई बार मिट्ठू अपने पिंजरा से भागने की कोशिश भी करता था। पर हर बार नाकाम होता था। जब सुबह कविता उठती थी तो देखती कि पिंजरा नीचे गिरा हुआ है। फिर से वह पिंजरा को अपनी सही जगह पर रख देती थी। कई बार जब कविता पढ़ने बैठती थी तो मिट्ठू उसके सामने चिल्ला चिल्ला कर उसे पढ़ने नहीं देता था। और भी कई सारी हरकतें करके उसने घरवालों को तंग कर रखा था फिर भी कविता उससे बहुत प्यार करती थी। उसका ख्याल रखती थी। कभी-कभी मां की तरह समझाती भी थी पर मिट्ठू कुछ नहीं सुनता था उसके लिए जैसे कविता है ही नहीं।


कविता मिट्ठू को लाड़ प्यार नहीं करती तो उसके घर वाले कब के‌ मिट्ठू को अपने घर से निकाल देते ।


उस दिन भी कविता इसी उम्मीद से उठी थी की कुछ दिन में कॉलेज खुल जाएगा। वह नहा कर बाहर आई थी की उसके पिता ने कहा,'सुना, आज का समाचार?'


कविता गंभीर होकर बोली,'क्यों ,क्या हुआ?


पिता ने बताया की कोरोना वायरस से इतने ज्यादा लोग संक्रमित हो रहे हैं कि भारत सरकार ने 15 दिनों का लॉकडाउन का ऐलान किया है। कोई भी दुकान, कॉलेज, होटल इत्यादि नहीं खुलेगी। सब घर के अंदर ही रहेंगे। यह सब कहने के बाद, उन्होंने फिर से चीन को गालियां देना शुरू कर दिया।


कविता के लिए यह नई बात नहीं थी। फर्क सिर्फ इतना था कि पहले यह कॉलेज वालों के मुंह से सुनती थी अब भारत सरकार के मुंह से। पर अब भी उसने अपने दिल को यही कहकर दिलासा दिया कि और 15 दिन बस।


इसी में कविता की मां, उसे रोटी परोसते हुए कहा,'फिर तो हमें सारा सामान इकट्ठा करके रख लेना चाहिए। बाद में नहीं मिला तब।'


इस बात पर उसके पिता ने कहा,'तुम लोग घर की सारी जरूरत की सामग्री की सूची बना लो। मैं शाम को ले आऊंगा।'


इतने में ही मिट्ठू फिर से शोर मचाने लगा। शोर सुनकर उसकी मां ने कहा,'कोई उसे चुप करवाए । सारी रात सोने नहीं दिया इस मिट्ठू ने ।'


पिता ने एक गहरी सोच में कहा,'हमारा भरपेट खाने का कोई भरोसा नहीं है ।इसे कहां से संतुष्ट करें। एक बोझ बन गया है।'


यह वाक्य शायद कविता को अच्छी नहीं लगी पर उसने कुछ नहीं कहा। मिट्ठू को चुप कराने के बहाने से वह वहां से चली गई।


पूरे दिन कविता और उसकी मां ने सारी चीज़ों की सूची बनाई। बड़ी मुश्किल से तैयार हुआ वरना मिट्ठू तो उन्हें परेशान कर रखा था।


शाम को जब पिता आए तो सारी जरूरतमंद चीज़ें लेकर आए । पिता ने थके हुए कहा,'आज बाज़ार में कितनी भीड़ थी। पैर रखने के लिए भी जगह नहीं थी।'


रात को खाना बना ।सब खाए और सो गए पर कविता को नींद ही नहीं आ रही थी। उसने जब करवटें बदली तो सामने देखा की मिट्ठू चुपचाप आसमान को देख रहा है। वह अपने मन ही मन सोचने लगी,'अभी तो चुप है। पर जब सो जाऊंगी तब चिल्लाने लगेगा। फिर भी कितना प्यारा है मिट्ठू।'


फिर वह भी अपनी बिस्तर से उठी और जाकर खिड़की के पास खड़ी हो गई। वह भी मधुर चांदनी रात्रि को देखने लगी। यूं ही कुछ देर तक देखने के बाद कविता को नींद आने लगी और वह थक कर अपने बिस्तर पर सो गई।


कविता के लिए जिंदगी की परिभाषा ही बदल गई थी। वह कब जागती थी कब सोती थी। इसका उसे होश ही नहीं था। बस इतना पता था कि वह कैसे भी करके बस अपना दिन काट रही है। जो इतने दिनों से अपने दिल को दिलासा देते आ रही थी वह भी अब कमज़ोर होने लगी थी। उसे अपनी जिंदगी बेकार सी लगने लगी थी।


दिन से दिन और महीने से महीने बीतता जा रहा था और लॉकडाउन भी बढ़ता ही जा रहा था। लॉकडाउन के बाद यह तीसरा महीना था और उसकी उम्मीद का अंतिम दिन था।


कविता जब सुबह उठी तो सबसे पहले उसने भगवान से प्रार्थना किया कि आज उसे कोई लॉकडाउन की खबर ना आए। पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। आज भी वही ऐलान हुआ। यह ख़बर सुनते ही कविता अपना सिर पकड़ कर बैठ गई। उसे भगवान पर से भरोसा ही उठ गया था ।


शाम होते ही कविता के घरवालों को यह ख़बर मिली कि उसके इलाके को कंटेनमेंट जोन घोषित कर दिया गया है क्योंकि उसके इलाके में एक कोरोना पॉजिटिव पाया गया है। उसके बाद ना तो कविता और उसके घर वाले घर से बाहर जा सकते थे और ना ही कोई अंदर आ सकता था।


धीरे-धीरे वक्त बीत रहा था। इन दिनों कविता हमेशा मिट्ठू से ही अपनी दिल की बातें किया करती थी। पर मिट्ठू शांत सा हो गया था। उसने कविता के घर वालों को भी तंग करना छोड़ ही दिया था। उसे विश्वास हो गया था कि अब वह आज़ाद नहीं हो सकता। कभी नहीं।


वक्त के साथ कविता का भी स्वभाव बदलता जा रहा था। खुश रहने वाली कविता अब मौन रहने लगी थी। उसे कभी-कभी गुस्सा भी आने लगा था। आख़िर इतने समय तक एक ही जगह पर रहने के कारण मन ऊब ही जाता है और खुशियां भी दुख सा लगने लगता है। यह सब उसके माता-पिता समझ रहे थे पर कर भी क्या सकते थे। अंदर उदासी थी तो बाहर कोरोना वायरस। इंसान जाए तो जाए कहां। सब अपना दिन किसी तरह से भी काट ही रहे थे।


अब हर शाम को कविता अपने मिट्ठू को लेकर छत पर आ जाती है। एक यही जगह है जिसे देख कर वह खुश होती है। यह जानकर कि वह खुले आसमान के नीचे खड़ी हैं ।


कविता और मिट्ठू दोनों खटिया पर बैठे थे। आसमान की ओर देखते हुए कविता ने कहा,'अंदर कितनी घुटन महसूस होती है। ऐसा लगता है जैसे किसी जेल में बंद हो गई हूं जहां से निकलना नामुमकिन है। इस नीले गगन के नीचे कितना स्वतंत्र महसूस कर रही हूं मैं।'


यह सुनकर पहली बार मिट्ठू ने कविता की ओर उम्मीद भरी नज़रों से देखा और फिर आसमान की ओर देखने लगा। वही चिड़ियों को जो दाना लेकर अपने घर वापस जा रहे थे। उन्हें खुले आसमान में उड़ते देखकर मिट्ठू की आंखें आंसू से भर गए।


कविता ने अपनी बात पूरी करके मिट्ठू की ओर देखा। उसने क्या देखा कि मिट्ठू रो रहा है। उसे रोते देख कविता सोच में पड़ गई। कविता उसी ओर देखने लगी जिस तरफ मिट्ठू देख रहा था। जिस चिड़िया को वह निहार रहा था। उस समय कविता को ऐसा लगा जैसे उसने कितना बड़ा पाप कर दिया है। अपने दिल में एक अजीब सी दर्द को महसूस कर रही थी जिसका सामना वह नहीं कर पाई। इसलिए वह तुरंत मिट्ठू को लेकर नीचे चली गई।


नीचे उसके माता-पिता अपने अपने कामों में लगे थे। कविता को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। अपने को उस दर्द से पीछा छुड़ाने के लिए कविता किताब पढ़ने लगी। पर उसका मन किताब में लगा ही नहीं।


शाम बीती तो रात आई। कविता अपने माता-पिता के साथ बैठकर खाना खाने लगी। उसने अपने माता-पिता से प्रश्न किया,'क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आप बाहर जाना चाहते हो और कोई आपको जाने नहीं दे रहा हो ?उस समय आप कैसा महसूस करेंगे?'


मां ने उत्तर दिया,'ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ पर अब हो रहा है। बाहर जाना चाहते हैं पर कोरोना वायरस के डर से नहीं जा सकते।'


उसके पिता ने इस बात का समर्थन करते हुए कहा,'देखो बेटा, इस दुनिया में हर इंसान को आज़ादी से जीने का हक़ है। वरना वह मनुष्य एक कैदी जैसा महसूस करने लगेगा और इंसान को तब कैदी बनाते हैं जब उसने कुछ गलत काम किया हो। मनुष्यों को स्वतंत्र रहना ही पसंद है।'


खाना खाने के बाद, कविता अपने कमरे में गई। उसने मिट्ठू को देखा जो रात्रि को रोज़ की तरह निहार रहा था। अब उसे मिट्ठू से बातें करने में भी डर लगने लगा था। वह सीधा बिस्तर पर गई और लेटी ही थी कि उसे सारी बातें याद आने लगी। क्यों मिट्ठू शुरुआती दिनों में उन लोगों से बात नहीं करता था? बंदी बनाकर रखने के लिए। क्यों वह कविता को और उसके घर वालों को हमेशा तंग करता रहता था? अपने को आज़ाद करने के लिए। आज़ाद शब्द से उसे अपने पापा की बातें याद आने लगी की सब को आज़ाद रहने का हक है और कैदी तब बनता है जब उस इंसान ने गलत किया हो। फिर मिट्ठू ने कौन-सा गलत काम किया है। यही कि वह आज़ादी से आसमान में उड़ रहा था। क्या उसे आजाद रहने का भी हक नहीं है?


कविता के आंखों के सामने शाम का वही दृश्य मंडराने लगा था। उसे एहसास हुआ कि पिंजरे में बंद रहना कितना दर्दनाक होता है। पिंजरा में बंद रहना या किसी की जान लेना एक ही बात है क्योंकि इसमें जरूर कोई ना कोई मरता ही है। फर्क इतना है कि एक अंदर ही अंदर मरता है तो दूसरा इस दुनिया से।


कविता ने अपने आप से ही बातें करते हुए कहा,'इस तीन महीने के लॉकडाउन में मुझे एहसास हुआ कि पिंजरा में रहना क्या होता है। मुझे माफ़ करना मिट्ठू मैंने तुम्हारी आज़ादी छीन ली। माफ़ करना।'यही सब सोचते सोचते कविता सो गई।


अगली सुबह सूरज यूं ही खिल खिला रहा था । हवाओं में एक ताज़गी थी जो फूलों के बगीचे को अपने साथ नचा कर चली जाती थी। कविता अपने बिस्तर से उठी एक नई कविता के साथ जिसके दिल में फिर से एक नई उमंग जाग गई थी। नहाने के बाद, उसने मिट्ठू को लिया और छत की ओर चल दी। साथ में उसने अपने माता-पिता को भी जगाया और अपने साथ छत पर ले आई।


उसकी मां ने कहा,'क्या बात है क्यों लेकर आई हैं?


उत्तर में कविता ने कहा,'किसी को कैद से रिहा करना है आज और खुशी की बात यह है कि उसने ऐसा कोई काम ही नहीं किया जिसकी वज़ह से उसे कैद में रखा जाए।'


कविता अपने पापा की तरफ देखते हुए कहा,'पापा आपको याद है आपने कल ही कहा था कि हर मनुष्य को स्वतंत्रता पसंद है पर मेरे हिसाब से हर एक प्राणी को स्वतंत्र रहने का हक़ है।'


अपने बेटी से यह उत्तर पाकर उनके चेहरे पर एक अलग ही मुस्कान झलक पड़ी और उन्होंने कहा,' शाबाश बेटे! तुमने बिल्कुल सही निर्णय लिया है।'


यह सुनकर कविता ने अपने पिता की कही बात दोहराई,'भगवान ने चिड़ियों को बनाया ही है खुले आसमान में उड़ने के लिए।'


यह कहते ही कविता ने मिट्ठू की तरफ जी भर के देखा। उसके बाद उसने मिट्ठू का पिंजरा खोल दिया। मिट्ठू कुछ देर तक वहीं खड़ा था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था । फिर अपने नन्हें-नन्हें पैरों को बढ़ाते हुए मिट्ठू पिंजरे से बाहर आया। अपने पंख को इस तरह फैलाया जैसे अंगड़ाई ले रहा हो। धीरे-धीरे आगे बढ़ कर ‌वह उड़ने ही वाला था कि वह फिर से ज़मीन पर आ गिरा। उसका कोशिश असफल रहा। उसकी असफलता देखकर सब दंग रहे गए।


पापा ने कहा,'शायद इतने दिनों से पिंजरे में बंद रहने के कारण उसे उड़ने में कठिनाई हो रही होगी।'


यह सुनकर कविता अपने आप को दोषी मानने लगी थी। पर अब उसने ठान लिया था कि वह मिट्ठू को उड़ना सिखाएगी। उसने कहा,'मेरा मिट्ठू जरूर उड़ेगा।'


कविता मिट्ठू का मनोबल बढ़ाने में लगी रही,'तुम कर सकते हो, थोड़ा और प्रयास की जरूरत है।'


वक्त बीत रहा था । और हर बार मिट्ठू का प्रयास असफल जा रहा था। पर कविता ने हार नहीं मानी थी। वह मिट्ठू के हर असफल प्रयास पर दिलासा दिला रही थी कि वह कर सकता है।


हर दिन अपनी गति से बीत रहा था । मिट्ठू की उड़ान भी उसी गति के साथ बेहतर होता जा रहा था । आखिर वह शाम भी आ ही गई जब मिट्ठू पूरी तरह से उड़ना सीख गया था। कविता को यह जानकर बहुत खुशी हुई ।


आखिरी बार कविता ने उसे पंख फैलाते हुए, पूरी उम्मीद के साथ उड़ान भरते हुए देखा तो उसकी आंखों में आंसू आ गए। उसके साथ उसके माता-पिता की भी आंखें नम हो गई थी।तीनों वहां खड़े होकर अपने मिट्ठू को विदा कर रहे थे।


कविता रोते हुए अपने मिट्ठू को आसमान में ऊंचा उड़ते हुए देखकर कहा,'मुझे तुम्हारी बहुत याद आएगी। सलामत रहना मेरे दोस्त।'


कविता वहीं पर खड़ी होकर अपने हाथ हिलाते हुए अपने मिट्ठू को अलविदा कर रही थी। वह तब तक खड़ी रही जब तक मिट्ठू उसकी आंखों के सामने से ओझल ना हो गया और मिट्ठू खुले आसमान में और ऊंचा उड़ता ही गया, उड़ता ही गया।


By Monika Sha



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