“पहला इश्क़”
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“पहला इश्क़”

By ZafarAli Memon


तअर्रुफ़ हुआ था अभी ही उन से

वक़्त कहाँ ज़्यादा गुज़रा है

बातें होती थी बहुत ही उन से

वक़्त कहाँ ज़्यादा सुधरा है


अंकों में दिलचस्पी मुझे

उर्दू का थोड़ा-सा ज्ञान था

वह अंग्रेज़ी से वाक़िफ़ बहुत

लेकिन शून्य सा अभिमान था


पसंद उनकी आँखों में काजल

और उनपर वो चश्मा था

उन्हें पसंद मेरी घनी दाढ़ी

और आँखों में सुरमा था





कभी ये ला दो तो कभी वो ला दो

मैंने की हर ख़्वाहिश पूरी

लेकिन महरम बनाने की

मेरी ख़्वाहिश रह गयी अधूरी


कहा था उन्होंने पहले ही मुझ से

रख दो अपने माँ-बाप को अर्ज़ी

पर ज़फ़र डरता खोने से उनको

और कहा जैसी रब की मर्ज़ी


न जाने कौन सा लज़ीज़ वक़्त था

की इश्क़ की रसोई को हम ने पकाया

अगर अलाहिदा करना ही था मक़्सद

तो फिर क्यूँ हम दोनों को मिलाया


By ZafarAli Memon




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