'ऐ ज़िंदगी' - अभिमन्यु बक्शी की कविताओं से इंस्पायर्ड
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ऐ ज़िंदगी

Updated: Dec 22, 2023

By Abhimanyu Bakshi


तुम अगर ऐ ज़िंदगी आसान हो पाती,

हम तुम पर एक कविता लिख देते।


ये मिलना ये बिछड़ना क्या है आख़िर,

दिल रखना दिल लगना क्या है आख़िर,

बताना था कि ग़म-गीन ही है किसी से भी हिज्र,

हम दिल में नाम ही चुनिंदा लिख देते।


कोई मोड़ कभी भी कहीं भी अचानक आ जाता है,

आफ़ताबी दिन में कहीं से तूफ़ानी मौसम छा जाता है,

वक़्त की इन करवटों का ग़र ज़रा भी अंदाज़ा होता,

हम अपनी उम्मीदें ज़रा आहिस्ता लिख देते।


एक ही जिस्म से अदा लाखों किरदार कैसे हों,

दो ही आँखों से इतने अश्क़ों को क़रार कैसे हो,

गणित ज़िंदगी की भी दो और दो चार होती अगर,

हम बड़ी होशियारी के साथ ये परीक्षा लिख देते।



कितना वक़्त लगता है एक अवस्था को पाने में,

चंद ही पल लगते हैं सब कुछ गवाने में,

होता अगर ये वक़्त ज़रा भी नर्म-दिल,

इस के लिए भी एक क़सीदा लिख देते।


चाँद-तारों से दिल बहलाना आसान है क्या,

हर तन्हाई का इलाज आसमान है क्या,

काश तुम में होता फ़न-ए-सुख़न, मनु,

तुम भी हौसला-अफ़ज़ाई का कोई ज़रिया लिख देते।


तुमसे अगर ऐ ज़िंदगी हमारा इतना ही राब्ता था,

तो बुला लेती हमारे असल को जो एक उम्र से लापता था,

जगाया होता एक चिराग़ हमने अपने अंदर तो,

दास्तान-ए-बहिश्त की कम-से-कम इब्तिदा लिख देते।।…


By Abhimanyu Bakshi





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