परिचय की तलाश
- Hashtag Kalakar
- Jan 23
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By Manjeet Kumar
कण हूँ या सलिल हूँ , या कहने को अंत है ,
छाया सा में , या खोजत में खुद का आधार है ,
बंधा में अपने ही विचारों में , खोजता एक श्रृंगार है ,
अमृत जो आत्मसान हो , ऐसा एक परिचय की तलाश है।
समाज उगलता ज़हर , दिन रात और पहर ,
शून्य को तिरस्कार करता , पर है तो एक झंकार ,
भटकन होती है आत्मचिनत्न को, कैसा फैला अन्धकार ,
अब मुझे में है आग, करने को निकला में एक चमत्कार।
एक वक़्त था जब ज्योति जलती थी ,
रात को एक विश्वास सी जगती थी ,
जीतने को कई बार मर चुकी थी ,
कुछ पाने को यह ज़िन्दगी आगे बढ़ चुकी थी।
कहीं दूर एक कलि मुस्कुरा उठी थी ,
काल इस जीवन में एक सुबह खिल चुकी थी ,
लहराते उसके बाल जैसे वन की बेसुध हवा थी ,
ज़ख्मो में मेरे जैसे कोई लेप थी।
फिर वह जलन सी , अब मुस्कान में बदल गयी ,
जो हाय थी इस ज़माने की , अब मोहब्बत में घुल गयी ,
मिल गया था रास्ता एक मंज़िल का , एक ज्योति जल गयी ,
अब परिचय की तलाश थी , अब वह एक देवी में दिख गयी।
मधुर जीवन अब परिचित हुआ, खुद का
,व्यथा का भार जो ढोता था , अब उसके छुअन से कोमल हुआ ,
रुदन जो स्वर थी , अब उसमे एक गान का मिश्रण हुआ ,
नीरस जीवन में अब जाके एक स्वर्ण सुबह उदय हुआ।
अब गर्व है खुद के जीवन पे , खुद के आत्मसम्मान पर ,
जग गया में एक सुबह , उसके आँचल , उसके आँखों के सुबह पर ,
कहती थी वह मुझसे जीतने को , इस समाज की आवेलेना भूलने को ,
परचम की और चला अब में , उसके हाथ में जग को रखने को।
अब देखे भी मुझे यह विश्व घृणा से ,
प्रेमी में , कृष्ण में राधा का साथ में ,
पुजारी में उस प्रेमिका का अब वह साथ में ,
प्रकिमा लगाऊं में ऐसे उच्च आशीर्वाद से।
अब सुनेगा गर्जन मेरी , परिचय की अंगार मेरी ,
युग धर्म को तैयार में , अब चाल में हुंकार मेरी ,
कर चला में अब असलियत को , मेहनत को ,
सब भूल अब जगत में एक पहचान बनाने को।
अब बन बैठा प्रेम में एक अगन में ,
जो मौन था बन बैठा वह हुंकार में ,
संभाली मुझे प्रियतम ने वह संसार में ,
अब आगे बढ़ने को तैयार में।
अब लाचारी को टांगा मेने अलमारी में ,
उठाया किताब अब सपने पुरे करने को ,
आग जो थी अब ताप देती है ,
बन जाने को कुछ मुझे ललकारती है।
सुध -बुध खोकर अब चला में आगे ,
मंज़िल पाने को छोड़ ज़माने को पीछे ,
हर दिन और रात आँखें जलती रही ,
सपने को साकार करने में कोशिश करती रही।
अब जो सूखा रस , अब बुझी प्यास विष पी कर ,
निकट है अब मंज़िल , राजा की पदवी पाने को ,
अब आ गया है परीक्षा का वो दिन ,
अब आ गया है वक़्त कम हो गए अब दिन।
मनुज-वंश के आँशु जो गिरे थे तिरस्कार में ,
गिरी जैसा मेरे ह्रदय टुटा , पाने को हर अधिकार में ,
अब आने वाला है वह पल जो सच होगा ,
बन के अधिकारी एक युग -निर्माण करना होगा।
अब समय -दूह में सिसकते गान अब मन को भाते ,
आज सफलता के वक़्त देखो वर्तमान नाचते आये ,
अब आएगा वह पल जब प्रियतम संग वक़्त बिताये ,
देखो कैसे अब वही समाज शीश झुकाने को आये।
अब रण सालों की अब बंद हुई ,
अब विराजे महाराज अपने सिंहासन पर ,
आहुति जो कुण्ड में थी सालों से ,
अब धड़क रही बन के अंगारों में।
अब परिचय मिल गया मुझे एक अधिकारी का ,
संग में प्रियतम और इज़्ज़त पाता में वही समाज का ,
अब परिचय की तलाश खत्म हुई है ,
अब जाके ज़िन्दगी में एक मुकाम आयी।
अब मेरे उठती दाह है , सम्मुख ये समाज का मरुथल है,
अकेला संसार में , जो एक परिचय को विकल है ,
अब बन जायेगा वह व्योम के बैठा चमकीला तारा ,
अब जीतेगा वह जो अब तक सिर्फ हारा।
By Manjeet Kumar

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