न ये उजाला होगा,
- Hashtag Kalakar
- Oct 18
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By Deepak Kulshrestha
महज चरागों की रौशनी का न ये उजाला होगा,
रात आस्माँ ने चाँद का सदक़ा निकाला होगा.
मुमकिन है कि सूखे गुलाबों से फिर खुशबू आये,
मेरे महबूब ने इस क़दर उनको संभाला होगा.
यूँ निगाहें मिलाने से भी कोई मर जाता है भला,
उसकी आँखों में छिपा कोई तो रिसाला होगा.
वो कमबख्त जो राह तक रहे हैं मेरे मर जाने की,
उनके जीने में भी देखना मेरा ही हवाला होगा.
ऐसे ही नहीं टूट कर गिरा वो सितारा ज़मीन पर,
ये फूल आस्माँ ने इस ज़मीं पर उछाला होगा.
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By Deepak Kulshrestha

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