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दीदी मां

By Nisha Shahi


हमारी बड़ी बहन यह दीदी कहने से काम नहीं चलेगा यह तो हमारी "दीदी मां" है। मां के जैसा दुलार प्यार चिंता फिकर हालांकि हमारे बीच उम्र का इतना अधिक फासला भी नहीं है। पर उस वक्त हालात ऐसे थे कि उसे वक्त पहले ही बड़ा बनना पड़ा हम तीन बहने, मां सिंगल पैरंट, पिताजी नहीं थे मां को पेंशन मिलती थी उसी में हमारा गुजारा होता था दीदी अक्सर मां के साथ कड़ी मेहनत करती वह मां के साथ खेतों में जाती खेतों में पानी देती फसल की कटाई में मां की मदद करती धान व गेहूं से लदी बोरियां खेतों की घाटियां चढ़ाकर घर तक लाती और जितना हो सके हम दोनों छोटी बहनों को इन सब से दूर रखती।

उसकी अभी खेतों की थकान भी पूरी ना होती घर आकर खाना बनाती उस वक्त वह मुश्किल से छठवीं या सातवीं कक्षा में होगी छोटी दीदी यही कोई पांचवी में शायद मैं यानी सबसे छोटी दूसरी या तीसरी कक्षा में उस वक्त दीदी का स्कूल दोपहर की शिफ्ट में लगता था और हम दो छोटी बहनें सुबह की शिफ्ट में पढ़ाई कर कर 12:00 बजे तक घर आ जाते और दीदी उससे पहले हमारे लिए खाना पकाकर अपने स्कूल के लिए तैयार होकर 12:00 बजे अपने स्कूल पहुंचती। क्योंकि मां खेती बाड़ी का काम निपटाने के बाद गाय के लिए चारा और चूल्हे के लिए सूखी लकड़ियां लेकर आती थी तो मां को घर आने में देर होती थी इसीलिए दीदी को ही दिन का खाना बनाना पड़ता था।




और फिर शाम को जब स्कूल से लौटती तो घर आकर हमें पढ़ाती और खुद भी पढ़ती उसके बाद घर के काम में मां का हाथ बटाती वह हमारी हर जरूरत को ध्यान में रखती खुद खाने से पहले पहला निवाला हमें ही खिलाती उसके हाथों में जैसे मां अन्नपूर्णा का वास हो वह कुछ भी पकाती तो उसकी खुशबू दूर तक जाती हम बीमार पड़ते तो मां के साथ वह भी रात भर जागती और हमारी देखभाल करती।

उसके होते हुए आज तक पापा या भाई की कमी महसूस नहीं हुई जब भी कुछ विपत्ति आती थी या आज भी आती है तो लगता है कि दीदी है ना! सब संभाल लेगी।

दीदी हमारी सभी जरूरतों का ख्याल रखती हमारे कपड़ों से लेकर बाल बनाने तक का सारा कुछ संभालती।

वह आज भी जीवन के हर मोड़ दुख हो या सुख हमारे साथ अटल पर्वत सी खड़ी रहती है। "Love You Didi Maa"


By Nisha Shahi




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