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दीक्षांत अनुभव

By Guru Shivam


दीक्षांत तो हो चुका मगर, शिक्षांत नही।

प्रबंधन विशेषज्ञता में, स्नातक स्तर का अंत हुआ है,

प्रबंधन का नहीं।


...गत दिवस (10 दिसंबर 2022) बिड़ला प्रद्योगिकी संस्थान, पटना प्रसार केंद्र के में, दीक्षांत समारोह अंतर्गत, अपने प्रबंधन सत्र के अंतिम दिवस में, आधिकारिक तौर पर, उपस्थिति पुस्तिका में अपनी अंतिम उपस्थिति दर्ज करते हुए, खंड खंडकर क्षत- विक्षत हो रहे मन, उपस्थिति पुस्तिका में सिर्फ एक अक्षर p लिखने के लिए कलम का वो पर्वत सा भारीपन, और अखिल पृथ्वी के पाँचों महासागरों का महासैलाब अपनी आँखो में जब्द कर हौसलों के चंद तिनके समेटने में शायद यही कुछ उपर्युक्त शब्द थे, जिसने अपने गुरुत्व बल से बांध कर हमें बल- संबल देने में मददगार सिद्ध हुए।

बेशक दिन बड़ा था, और मैं अकेला ! एक बार फिर से अकेला पड़ गया था, उस बड़े दिन को संभालने के लिए...

...शायद अभिभावकों के उपस्थिति अभाव में ! पर उनकी दी गयी कुछेक सीख मन की छोटी सी पोटली में शायद कुछ शेष बची थी, जो व्यथित मन के लिए एक बड़ी मर्ज की औषधि साबित हुईं।

मेरे श्रधेय चाचाजी (श्री देवनील कर्ण) का वो कथन, अनायास ही संजीविनी सरीखे मानस पटल पर उभर आया ;

सघन वन, रात अँधेरी, मूक निमंत्रण छलना है

अरे अभी आराम कहाँ, दूर तलक अभी चलना है।



गतिशील जीवन यात्रा क्रम में, मिलन और विरह तो प्रकृति की नियति है, ऐसे में एक शिक्षण संस्थान के प्रांगण परिसर में बिताए तीन वर्षों में उस संस्थान से लगाव होना तो प्राकृतिक ही है। और अगर लगाव की लगन लगी तो शायद अलगाव के लिए भी उतनी ही हिम्मत जुटानी पड़ती है। चाहे कीमत जो भी चुकानी पड़े। क्योंकि गीतिशीलता ही जीवन है...निर्झर ही जीवन है...

आदरणीय श्री सुनील पाण्डेय सर् (सहायक प्रोफेसर, प्रबंधन विभाग, बिड़ला प्रौद्योगिकी संस्थान, पटना प्रसार केंद्र) के सीख- शब्दों में ;

हमें हमेशा ही व्यक्तिगत तौर पर सजग, संवेदनशील, एवं परिस्थिति जन्य भावा-वेशों से मन को अप्रभावित रख कर निरंतर ही स्व- चेतना को ऊँचाई देते रहना चाहिये, यह इसलिए अत्यावश्यक है क्योंकि यह हमें सदैव स्मरण दिलाता रहता है, कि हमारे पास वक्त बहुत अल्प शेष है। जन्मोउपरांत हर बीतते वक्त के साथ शनैः शनैः हम अपने ही मृत्यु के करीब पहुचते जा रहे हैं। उच्च शिक्षा का अर्थ ही है; सादा जीवन और उच्च विचार। एक प्रतिबद्धता के संग कि, बस ! रुकना नहीं है...और यही सही अर्थों में दीक्षांत समारोह का समूल निष्कर्ष है ।

इन्हीं सब समझ- सीखों को हथियार बनाए, जीवन यात्रा के शैक्षिक हिस्से के एक अहम पड़ाव की इति श्री के साथ, नए आयाम का श्री गणेश किए जीवन रण-संघर्ष के रण क्षेत्र में, निकल पड़े हैं...रण विजय करने एक जंगी- योद्धा सरीखे कवच- कुंडल पहने, उस आदियोगी वैरागी, शमशानवासी शिव के संस्मरण के साथ, एक प्रतिबद्धता के सँग ये सरे आम एलान करते हुए..

जिस दिन उसके दहलीज पर पाँव रखे,

उसदिन से ही हम बिड़ला के हो गए।

बड़े करीने से सँवारा/तराशा है हमें,

आज से हम उसके कर्जदार हो गए।

इस कर्ज की अदायगी होगी एक दिन !

देर सवेर ही सही, पर लाऊँगा सुनहरा दिन वो,

बन बिड़ला के उन बिरलों में बेशुमार लौटूंगा,

जिन पर बिड़ला फख्र करता हो ।।

______***______


By Guru Shivam




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